उत्तराखंड की 60 हजार भोजन माताओं और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को मिली राहत

By सलीम मलिक

उत्तराखण्ड प्रदेश में कार्यरत 60 हजार से अधिक भोजनमाताओं व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को मार्च माह तक का वेतन न दिए जाने के संवेदनशील मामले में महिला एकता मंच द्वारा उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल किए जाने और याचिका पर कोर्ट में सुनवाई से सकपकाई सरकार ने भोजनमाताओं को वेतन दिए जाने की कवायद शुरू कर दी है।

मामला कोर्ट में होने के कारण सरकार इतने दबाव में हैं कि वेतन दिए जाने के अधिकारियों द्वारा अधीनस्थों को दिए गए आदेश में भी जनहित याचिका का हवाला देते हुए इस मामले में रूटीन ‘सरकारी लापरवाही’ से दूर रहकर वेतन दिए जाने के निर्देश गए हैं।

यहां बताते चलें कि कोरोना वायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के कारण केंद्र सरकार ने निजी संस्थाओं सहित उद्योगों आदि को अपने कर्मचारियों को पूरा वेतन दिए जाने सहित उनकी हर सुविधा का ख्याल रखने के निर्देश दिए थे। लेकिन केंद्र की इस हिदायत पर उत्तराखंड सरकार ने अतिरिक्त अमल करना तो बहुत दूर की बात, भोजनमाताओं व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को बीते मार्च माह तक का वेतन नहीं दिया था।

ऐसे में परेशान हाल भोजनमाताओं व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों ने महिला एकता मंच की ललिता रावत, कौशल्या चुनियाल, सरस्वती जोशी को अपनी पीड़ा बताते हुए मदद मांगी।

लॉकडाउन अवधि में कोई सरकार के समक्ष कोई सुनवाई न होने के कारण महिला एकता मंच ने वेतन दिलाये जाने की इस लड़ाई को न्यायालय के माध्यम से लाने का निश्चय करते हुए दिल्ली सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश कुमार से संपर्क किया।

अधिवक्ता कमलेश के माध्यम से महिला एकता मंच की ओर से नैनीताल उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिका में अधिवक्ता कमलेश ने वीडियो कॉन्फ्रेंंसिंग के माध्यम से न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ के सम्मुख सभी तथ्यों को सामने रखते हुए राज्य सरकार को वेतन दिए जाने के आदेश पारित किए जाने की पैरवी की।

दोनों पक्षों को सुनते हुए न्यायालय ने राज्य सरकार को दो दिन के अंदर वेतन दिए जाने के मामले में स्थिति स्पष्ट करने और मामले की अगली सुनवाई 24 अप्रैल को ही करने के आदेश पारित कर दिए। सरकार द्वारा वेतन न दिए जाने पर जनहित याचिका लगते ही सरकारी अमले में हड़कंप मच गया।

न्यायालय द्वारा सरकार से जवाब तलब किये जाने की अवधि से पहले ही सरकार की ओर से भोजनमाताओं व आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को वेतन दिए जाने की कवायद शुरू कर दी गयी। कोर्ट का रुख भांपते हुए अधिकारियों के स्तर से अपने को बचाने के लिए भोजनमाताओं को तत्काल वेतन दिए जाने के निर्देश जारी कर दिए गए।

ऐसे ही जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक शिक्षा) गोपाल स्वरूप ने अपने अधीनस्थों को सभी भोजनमाताओं का मार्च माह का वेतन तत्काल उनके बैंक खाते में डालने का न केवल आदेश दिया है बल्कि आदेश की पहली ही लाइन में जनहित याचिका का उल्लेख करते हुए रूटीन तौर पर होने वाली ‘सरकारी लापरवाही’ से बचने की भी हिदायत दी है।

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