कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग फ्राड: किसानों का पैसा हड़प कंपनी हुई फरार, सरकार-प्रशासन का कोई सहयोग नही मिल रहा किसानों को

कृषि कानूनों के पक्ष में तमाम तरह की बातें की जाए लेकिन हर बार जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।

केंद्र सरकार का मानना है कि नए कृषि कानूनों के तहत कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग लागू होने से किसानों की आय बढ़ेगी और किसानों की ज्यादातर समस्याएं खत्म हो जाएंगी, लेकिन मध्य प्रदेश के बैतूल में जो मामला सामने आया है, उससे इन दावों पर सवाल खड़ा होता है।

बैतूल के सैकड़ों किसानों ने 2018 में सहजन (ड्रमस्टिक) की खेती करने के लिए एक कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट किया था। अब ये कंपनी किसानों को धोखा देकर गायब हो चुकी है।

कंपनी से कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है और कॉन्ट्रैक्ट करने वाले सैकड़ों किसान कंपनी के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

बैतूल जिले के ग्राम भैसदेही में पांच एकड़ जमीन के मालिक नदीम खान (30) ने बताया कि राज्य के हॉर्टिकल्चरल डिपार्टमेंट ने यूडब्ल्यूईजीओ एग्री सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड (UWEGO Agri Solutions Private Limited ) नाम की कंपनी के बारे में किसानों को बताया था।

नदीम खान ने बताया, “मैंने ड्रमस्टिक फार्मिंग के लिए राज्य के हार्टिकल्चरल विभाग की सिफारिशों के आधार पर सितंबर 2018 में कंपनी के साथ एक अनुबंध पर दस्तखत किया था। अनुबंध के एक हिस्से के रूप में हस्ताक्षर करने के समय मुझे पौधारोपण के लिए 20,000 रुपये प्रति एकड़ का भुगतान करना था। मैंने दो एकड़ जमीन का रजिस्ट्रेशन कराया था और 40,000 रुपये जमा किए थे। कंपनी को शुरू में पौधे और तकनीकी जानकारी देनी थी। साथ ही कंपनी ने उपज खरीदने का आश्वासन दिया था। मुझे पौधे नहीं मिले और इस बारे में मैंने पहली बार 17 सितंबर, 2019 को जिला कलेक्टर के यहां शिकायत की थी। इसके बाद मैंने कई बार शि‍कायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ.”

बैतूल जिले में नदीम जैसे किसानों की संख्या करीब 200 है जिन्होंने सहजन की खेती के लिए कॉन्ट्रैक्ट किया था। उन्हें या तो पौधे ही नहीं मिले या ऐसे पौधे मिले जो जल्दी ही सूख गए।

एक और किसान ने बताया, “खरीद के आश्वासन का सवाल ही नहीं उठा क्योंकि ज्यादातर किसानों को पौधे ही नहीं मिले। जिन्हें मिले भी, उनके पौधे सर्वाइव नहीं कर पाए।”

बैतूल जिला प्रशासन ने कृषि विभाग से जांच कराने के लिए कहा लेकिन इस जांच का कुछ भी नतीजा नहीं निकला। जांच टीम का हिस्सा रहे डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर केपी भगत ने कहा, “किसानों ने जिला कलेक्टर से संपर्क किया था। उनके निर्देश पर हम जांच कर रहे हैं। हमें 97 किसानों की सूची मिली है और हमने कंपनी को समन भेजा है।”

कृषि विभाग द्वारा तैयार की गई सूची के अनुसार, कंपनी ने 125 एकड़ भूमि पर सहजन की खेती के लिए अनुबंध पर हस्ताक्षर किए और किसान से 20,000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से पैसा जमा कराया।

हालांकि, किसानों का आरोप है कि कंपनी के अधिकारियों ने उनके फोन उठाना बंद कर दिया है और कंपनी के इंदौर स्थि‍त रजिस्टर्ड कार्यालय को भेजे गए पत्र लौटकर वापस आ गए हैं।

जब इंदौर स्थित कंपनी के रजिस्टर्ड पते की जांच की गई तो पाया गया कि कंपनी कई महीने पहले ही अपनी दुकान बंद कर चुकी है।

तथ्यों से अवगत होने के बाद राज्य के स्वास्थ्य मंत्री कमल पटेल ने आश्वासन दिया है कि जल्द ही एफआईआर दर्ज की जाएगी लेकिन किसानों के पैसों का क्या होगा, इस बारे में कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है

अब आलाम ये है कि किसानों को कुछ समझ नही आ रहा है कि वे क्या करें।सरकार और प्रशासन से उन्हें सिर्फ कारवाई का आश्वासन ही मिल रहा है।

(इंडिया टुडे की खबर से साभार)

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