“हम आज भी बिजली लागत का पांच गुना क़ीमत चुका रहे हैं, मौजूदा बिल अगर लागू होता है तो ये कई गुना बढ़ जाएगा ” : विद्युत संशोधन अधिनियम-2020:भाग -5

By एस. वी. सिंह

पंजाब के किसानों द्वारा बिजली संशोधन बिल के विरुद्ध शानदार आन्दोलन

सरकारें किस तरह विद्युत उत्पादन की सरकारी कंपनियों की क्षमता कम कर निजी कंपनियों को मुनाफ़ा कमाने में मदद कर रही हैं, ये रहस्य पंजाब के जागरुक किसानों ने अपने आन्दोलन से उजागर कर दिया है।

द प्रिंट’ ने एक बेहतरीन जाँच रिपोर्ट में इस धोखाधड़ी को उजागर किया है। पंजाब में कुल 5 विद्युत उत्पादन प्लांट हैं। दो सरकारी;लेहेरामोहब्बत और रोपड़ में जिनकी कुल क्षमता 1760 मेगावाट है और तीन निजी;तलवंडीसाब,राजपुरा तथा गोविन्दवलसाब जिनकी कुल क्षमता 3920 मेगावाट है और 1300 मेगावाट अक्षय ऊर्जा का योगदान है।

कुल क्षमता 7000 मेगावाट है और पंजाब ज़रूरत से अधिक बिजली पैदा करने वाला राज्य है।

भारतीय किसान यूनियन (उग्राहां) ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया है। उनका पहला आरोप है कि पंजाब दिल्ली को रु 2 की दर से दिल्ली को बिजली बेच रहा है जबकि किसानों को रु 8 प्रति यूनिट की दर से बिजली बेची जा रही है।

उनका दूसरा आरोप बहुत गंभीर है। पंजाब की काँग्रेसी सरकार ने, जो किसान आन्दोलन का समर्थन कर रही है, निजी बिजली उत्पादकों को मुनाफ़ा पहुँचाने की नीयत से रोपड़ के सरकारी बिजली संयंत्र को बंद किया हुआ है।

यूनियन के महामंत्री सुखदेव कोकरी का कहना है,“अगर सरकारी संयंत्र अपनी पूरी क्षमता में चलते हैं और फिर भी बिजली की कमी रहती है तो हम तुरंत अपना धरना समाप्त कर देंगे।”

सरकार के सरकारी रोपड़ बिजली संयंत्र को बंद करने के जवाब में किसानों ने वेदांता कंपनी द्वारा संचालित तलवंडी साहब और एल & टी द्वारा संचालित राजपुरा संयंत्र के सामने धरना देकर उन्हें बंद करा  दिया।

यूनियन के प्रवक्ता ने बताया कि “हम  1अक्तूबर से रेल की पटरियों पर धरना दे रहे थे जिससे इन संयंत्रों को कोयले की सप्लाई ना होने पाए लेकिन जब सरकार ने गाड़ियाँ ही बंद कर दीं तो हमने रेल लाइन खाली कर दीं और अपना धरना, प्लांट के गेट पर शिफ्ट कर लिया। किसानों को बहकाया जा रहा है’ अगर कोई आज भी ऐसा आरोप लगाता है तो उसे मानसिक विक्षिप्त ही कहा जाएगा, किसानों को अब बहकाया जाना संभव नहीं हो रहा, यही तो सरकार की असल समस्या है। किसान जागरुक हैं, उन्हें कोई नहीं बरगला सकता।

यूनियन के प्रधान जोगिन्दर उग्राहां का कहना है,“हम प्रस्तावित बिजली संशोधन बिल, 2020 का भी विरोध कर रहे हैं जो किसानों से बिजली की ज्यादा क़ीमत वसूलकर निजी कंपनियों के मुनाफ़े के कफ़न भरना चाहते हैं।”

जैसे शांता कुमार समिति ने काले किसान विरोधी बिलों को जन्म दिया ठीक उसी तरह पंजाब के इस आन्दोलन ने मौजूदा ऐतिहासिक किसान आन्दोलन का मार्ग प्रशस्त किया।

यू पी के बिजली कर्मियों का सफल आन्दोलन

बिजली विभाग के लाखों कर्मचारी तथा इंजीनियर मौजूदा बिजली बिल का विरोध कर रहे हैं क्योंकि इससे स्वाभाविक रूप से ही उनकी नौकरी की सुरक्षा खतरे में है।

यू पी में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर से योगी सरकार द्वारा पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लि. को निजी कंपनियों को सोंपने के विरुद्ध जोरदार आन्दोलन किया।

5 अक्तूबर को यू पी भर में कुल 15 लाख से भी अधिक कर्मचारियों ने हड़ताल में भाग लिया और सरकार को अपने क़दम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।

हम आज भी बिजली लागत का पांच गुना क़ीमत चुका रहे हैं, मौजूदा बिल अगर लागू होता है तो ये कई गुना बढ़ जाएगा 

नेशनल हेराल्ड अखबार में दिनांक 25 जुलाई को छपी रिपोर्ट के अनुसार, भारत के नागरिक सारे दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा दर से बिजली का भुगतान कर रहे हैं जबकि यहाँ बिजली उत्पादन की लागत दुनिया में सबसे कम है।

हम दुनिया में ऐसे अकेले देश हैं जहाँ सौर ऊर्जा उत्पादन लागत ताप बिजलीघर के मुकाबले 14% कम है और इससे कोई प्रदूषण भी नहीं होता है।

मुनाफ़ाखोर सरमाएदारों की मुनाफ़े की अज़गरी भूख और उनकी ताबेदार सरकार नहीं चाहतीं कि सौर ऊर्जा दूसरे तरह की ऊर्जा की जगह ले वरना सौर ऊर्जा से हमारे देश में असीमित मात्रा में बिजली पैदा हो सकती है क्योंकि सूर्यप्रकाश यहाँ सालभर असीमित मात्रा में उपलब्ध है।

निजी बिजली आपूर्ति कंपनियां लागत से 4 गुना दर पर बिजली बेचती हैं फिर भी ये कंपनियां बेशर्मी से अपने खातों में हेराफेरी करके घाटा दिखाती हैं जिससे ‘राहत पैकेज’ मिलते रहें, कर में छूट मिलती रहे।

ये कंपनियां अपने खातों का ऑडिट नहीं होने देतीं और मनमानी करने के लिए बिजली आपूर्ति ठप्प करने की धमकियां देकर, सरकार की बांह मरोड़कर ब्लैक मेल करने में विशेष योग्यता रखती हैं।

सरकार ने कुछ समय पहले ही इन कंपनियों को 9000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज मंज़ूर किया था लेकिन ना इनकी भूख मिटती है और ना सरकार इस काम में देर करती है। धन्नासेठों को सरकारी खजाना लुटाने से खजाने पर कोई बोझ नहीं पड़ता।

क्रमश: 

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