विस्ट्रॉन में मैनेजमेंट की मनमानी और ज़बरदस्ती वेतन कटौती से उपजे गुस्से की कहानीः स्वयंस्फूर्त विद्रोह-2

wistron attack banglore

By एम. असीम

मीडिया में आई विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार पुलिस व ट्रेड यूनियनों दोनों द्वारा की गई शुरुआती जाँच में पता चला है कि अगस्त से दिसंबर 2020 में कंपनी ने ठेका मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ाकर लगभग 3500 से 8500 कर दी थी।

इन्हें ठेका मजदूर आपूर्ति करने वाली 6 कंपनियों के जरिये भर्ती किया गया था और वेतन का भुगतान भी उनके जरिये ही किया जाता था।

लेकिन किए गए करार और वेतन भुगतान की वास्तविक रकम में विसंगति के कारण प्रेशरकुकर जैसी स्थिति तैयार हो गई थी।

ऊपर से कंपनी ने शिफ्ट के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 कर दिये थे जिसके लिए कोई अतिरिक्त मजदूरी नहीं दी जा रही थी।

उसके बाद मजदूरों ने यह भी पाया कि कंपनी की हाजरी व्यवस्था में गड़बड़ थी और मजदूरों के काम के घंटे पूरे रिकॉर्ड नहीं किए जा रहे थे और इस फर्जी कम हाजरी के नाम पर भी मजदूरी में कटौती की जा रही थी।

करार किए गए वेतन में 22 हजार से 8 हजार तक जैसी कमी, ओवरटाइम के लिए कोई मजदूरी नहीं,हाजरी व्यवस्था में हेराफेरी और महीने की तनख्वाह का भुगतान 10-12 दिन देर से किया जाना और मालिकों-प्रबंधन द्वारा शिकायतों की किसी सुनवाई तक से इंकार – इन्हीं सब वजहों से आखिर 12 दिसंबर को मजदूरों के सब्र का बांध टूट गया।

डेकक्न हेराल्ड की  खबर है कि खुद सरकारी जाँच में पाया गया है कि विस्ट्रॉन में श्रम क़ानूनों के तमाम किस्म के उल्लंघन किए जा रहे थे।

ठेका मजदूरी कानून की धारा 76 के अनुसार मजदूरों को रोजगार के पक्के दस्तावेज़ नहीं दिये गए थे। विस्ट्रोन ने जिन कंपनियों के जरिये ये ठेका मजदूर काम पर रखे थे वे कंपनियाँ इस कानून की धारा 78 के अनुसार उचित हाजरी रजिस्टर भी नहीं रख रही थीं।

प्रातः 6 से शाम 6 व शाम 6 से सुबह 6 बजे की काम की शिफ्ट भी फैक्टरी कानून 1948 की धारा 51 व 54 का उल्लंघन करते हुये चलाई जा रहीं थीं।

स्त्री मजदूरों से कराया जा रहा ओवरटाइम भी कानून के प्रावधानों के विपरीत था। अक्तूबर के वेतन में अंतर की शिकायत कंपनी के एचआर व ठेका कंपनियों से की गई थी व एचआर विभाग ने इस गलती को सुधारने व कमी का भुगतान नवंबर के वेतन के साथ करने का भरोसा दिया था पर 11 दिसंबर को जब नवंबर का वेतन मिला तो मजदूरों ने पाया कि ऐसा नहीं किया गया था।

12 दिसंबर की घटना के बाद से ही मजदूरों की हिंसा व तोड़फोड़ दिखाते हुए बहुत से विडियो मीडिया में आने लगे।

किन्तु इन सब को ध्यान से देखा जाये तो इन सब में जो असली बात दिखाई देती है वह है इस कंपनी के घोर शोषण और ठगी के खिलाफ मजदूरों का सामूहिक विक्षोभ।

द न्यूज़ मिनट (टीएनएम) ने नाम अज्ञात रखने की शर्त पर कई मजदूरों से  बात जिन्होंने बताया कि देर से भुगतान और ओवरटाइम के लिए कोई मजदूरी न दिये जाने पर मजदूरों की शिकायत पर मालिकों द्वारा कोई सुनवाई न किए जाने से मजदूरों में यह गुस्सा महीनों से धधक रहा था।

25 साल के गगन ने जब डाटा एंट्री कर्मी के रूप में काम शुरू किया था तो 8 घंटे की पाली में काम करने के लिए 11,475 रु महीना बेसिक सैलरी मिलनी तय हुई थी। गगन ने काम शुरू करने के बाद एक दिन भी छुट्टी नहीं ली और त्यौहारों के दिन भी काम किया। गगन के अनुसार,“कंपनी ने त्यौहार के दो दिन काम करने के लिए 3,500 रु देने की पेशकश की थी जिसे बहुत से श्रमिकों ने मंजूर किया था।“ मगर पहले महीने की समाप्ति पर ही गगन ने पाया कि छुट्टी के दो दिन का भुगतान तो दूर गैरहाजरी के नाम पर उसका 3 दिन का वेतन काट लिया गया था।

अब तक कुल मिलाकर हाजरी में हेराफेरी कर उसका 20 दिन का वेतन 7,600 रु काटा जा चुका है। उसने हर बार शिकायत की तो उसे अगली बार अंतर चुका देने का भरोसा दिया गया मगर ऐसा किया नहीं गया।

परमेश नामक एक और श्रमिक ने बताया कि जब अक्तूबर में काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 किए गए तो ओवरटाइम के लिए प्रति मजदूर प्रतिदिन 100 रु देने का वादा किया गया था। दिन में मिलने वाले दो विश्राम अवकाश छोड़ने पर भी 300 रु प्रतिदिन अतिरिक्त भुगतान का वादा एक नोटिस निकालकर किया गया था। क्रमश:

(प्रस्तुत विचार लेखक के निजी हैं। ज़रूरी नहीं कि वर्कर्स यूनिटी सहमत हो।)

(यथार्थ पत्रिका से साभार)

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