भारत अब चुनावी निरंकुशता वाले देश में बदल गया है, हालात बांग्लादेश और नेपाल से भी बदतर-स्वीडिश रिपोर्ट

स्वीडिश संस्थान की रिपोर्ट शोध संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार ने नागरिक समाज को संयमित किया है और धर्मनिरपेक्षता के प्रति संविधान की प्रतिबद्धता का उल्लंघन किया है।

स्वीडन स्थित वेराइटी ऑफ डेमोक्रेसी (वी-डेम) संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का लोकतंत्र एक “चुनावी निरंकुशता” में  बदल गया है।और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद  सेंसरशिप के मामले बेहद आम हो गये हैं।

दुनिया में लोकतांत्रकि पैमानों को मापने वाली इसी संस्थान ने पिछले बताया था कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कार्यशैली शासन करने वाली एक निरंकुश पार्टी से मिलती-जुलती है ।

रिपोर्ट में कहा गया है, “भारत की ने पिछले दस वर्षों में उन देशों के लिए विशिष्ट पैटर्न का काफी हद तक पालन किया है जहां लोगों के लोकतांत्रिक अधिकार पूरी तरह से समाप्त हो गये हैं। यहां मीडिया, शिक्षा और नागरिक समाज की स्वतंत्रता में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक अपने लोकतांत्रिक पहलूओं के मामले में बिल्कुल पाकिस्तान की तरह बनता जा रहा है और उसकी स्थिती अपने पड़ोसी देशों नेपाल और बांग्लादेश से भी बदतर हो गई है।

यह रिपोर्ट बीते 10 मार्च को स्वीडन के उप विदेश मंत्री रॉबर्ट राइडबर्ग की मौजूदगी में जारी की गई ।

पिछले साल भारत को लोकतांत्रिक पैमानों पर बेहद अनिश्चित देश के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जबकि इस साल देश को “चुनावी निरंकुशता” के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि भारत में इतने बुरे हालात कभी नहीं रहे है, और  पिछली सरकारों ने इतनी ज्यादा सेंसरशिप का इस्तेमाल कभी नहीं किया था जितनी ये सरकार कर रही है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने आलोचकों को चुप कराने के लिए राजद्रोह, मानहानि और आतंकवाद विरोधी कानूनों का जमकर इस्तेमाल कर रही है।

आकड़ों के हवाले से रिपोर्ट में बताया गया है कि भाजपा के सत्ता संभालने के बाद 7000 से अधिक लोगों पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है और ज्यादातर आरोपी सत्तारूढ़ पार्टी के आलोचक हैं।

शोध संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरकार ने नागरिक समाज को नियंत्रित किया है और धर्मनिरपेक्षता के प्रति संविधान की प्रतिबद्धता का उल्लंघन किया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा ने विदेशी नागरिक समाज संगठनों के प्रवेश, निकास और कामकाज को प्रतिबंधित करने के लिए विदेशी योगदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) का तेजी से इस्तेमाल किया है।

इसमें यह भी दावा किया गया है कि गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) का इस्तेमाल “परेशान करने, डराने और राजनीतिक विरोधियों को कैद करने” के साथ-साथ सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों के खिलाफ किया जा रहा है।

उन्होंने कहा, ‘यूएपीए का इस्तेमाल शिक्षा जगत में असहमति को शांत करने के लिए भी किया गया है।

शोधकर्ताओं ने आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए बताया कि लोकतांत्रिक मुल्यों को नियंत्रित करने का एक खास पैटर्न दिख रहा है। उन्होंने बताया कि सबसे पहले, शिक्षा और नागरिक समाज पर अंकुश लगाते हुए मीडिया को प्रतिबंधित और नियंत्रित करने की कोशिश की जा रही है।

राजनीतिक विरोधियों का दुष्प्रचार करने के लिए ध्रुवीकरण करने वाले मुद्दों को फैलाने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है।    ।

पिछले हफ्ते, राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं पर फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट पर भारत का दर्जा विश्व रैंकिंग में संयुक्त राज्य सरकार द्वारा वित्तपोषित गैर-सरकारी संगठन की वार्षिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में भी बहुत ही बुरी बताई गई थी।

रिपोर्ट में कहा गया है, 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से देश में राजनीतिक अधिकार और नागरिक स्वतंत्रताएं खत्म हो रही हैं, मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ाया जा रहा है, शिक्षाविदों और पत्रकारों की बढ़ती धमकियों और लिंचिंग सहित अलोकतांत्रिक मामलों की बाढ़ आ गई है।

रिपोर्ट बताता है कि 2019 में मोदी के दुबारा प्रधानमंत्री बनने के बाद इन मामलों में जबरदस्त तेजी देखी जा रही है।

(द लॉजिकल इंडियन की खबर से साभार)

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