कोरोना: रोजगार देने में सुस्त हुई मनरेगा, कहीं जेसीबी से हो रहा काम तो कहीं कम मजदूरी में काम को मजबूर मजदूर

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2021/05/mgnrega.jpg

पंचायत चुनाव के ठीक बाद कोरोना की दूसरी लहर मनरेगा को भी प्रभावित कर रही है। सुल्तानपुर में संक्रमण की वजह से सिर्फ 566 प्रधानमंत्री आवास पर ही मनरेगा का काम चल रहा है। इसमें छह हजार मजदूरों को रोजगार मिल रहा है। काम में ढील पड़ने से गांवों में भी बेरोजगारी बढ़ी है। फरवरी से जिले (सुल्तानपुर) में कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने से मनरेगा का कार्य धीरे-धीरे पस्त होता गया। इस बीच पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण व बाद में निर्वाचन कार्यक्रमों की घोषणा के बाद मनरेगा के काम और भी सुस्त हो गए। इस सूरत में जॉब कार्डधारकों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। जिससे मजदूरों के सामने उनके परिवार का खर्च चलाने की समस्या सामने आ रही है। जिले में करीब 1.46 लाख सक्रिय जॉब कार्डधारक हैं।

वहीं बिहार के मुजफ्फरपुर से एक खबर सामने आई है जिसमें मनरेगा में जेसीबी से काम हो रहा है। खबर के अनुसार, महामारी के समय में औराई प्रखंड के प्रवासी मजदूर अपने घरों की तरफ वापस लौट रहे हैं। लेकिन गांवों में काम न मिलने से वे काफी परेशान हैं। वहीं मनरेगा द्वारा प्रखंड की राजखंड दक्षिणी पंचायत के कोकिलवारा गांव स्थित सुरकाही पोखर की उड़ाही में जेसीबी व ट्रैक्टर द्वारा अंधाधुंध कार्य चल रहा है। इसे लेकर मनरेगा मजदूरों ने पंचायत समिति के समक्ष अपनी शिकायत की है।

वहीं झारखंड में मनरेगा मजदूर कम मजदूरी में काम करने के लिए मजबूर हैं। जामताड़ा में मनरेगा योजना में काम कर रहे निबंधित मजदूरों को पिछले 42 दिनों से मजदूरी राशि भुगतान नहीं हुआ है जिसके चलते वे परेशान हैं। हालत ऐसी है कि वे नमक-चावल खाने को मजबूर हैं। जबकि मनरेगा फंड में राशि नहीं रहने के कारण मजदूरों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है। हालत ऐसी है कि दुकानदार भी उधार राशन देने से इंकार करने लगे हैं। वहीं निबंधित मजदूर कम मजदूरी राशि पर ही किसान व महाजन के घर काम करने को मजबूर हैं। वैसे तो मनरेगा कानून के मुताबिक स्पष्ट प्रावधान है कि सात दिनों के भीतर मजदूरों का भुगतान किया जाना चाहिए। यदि किसी परिस्थिति में भुगतान नहीं किया जाता है तो 15 दिनों के अंदर अवश्य भुगतान हो जाए नहीं तो प्रत्येक मजदूर को मुआवजा राशि देनी होगी। हालांकि यहां मुआवजा छोड़िए मजदूरी का ही अता-पता नहीं है।

ये तो सिर्फ कुछ घटनाएं हैं जो सुर्खियों में जगह बना पाई हैं। देश भर में तमाम ऐसे जिले हैं जहां मजूदर होली में घर पहुंचे और कोरोना की दूसरी लहर के चलते वह शहर जाने की अब सोच नहीं सकते हैं और गांवों में उसे या तो काम नहीं मिल रहा या फिर वे मजूदरी न मिलने या कम मजदूरी मिलने से परेशान हैं।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.