दिल्ली में कर्फ्यू के बावजूद मोदी के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा में काम जारी, आवश्यक सेवाओं की श्रेणी में डाला

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कोरोना की दूसरी लहर में जब दिल्ली का स्वस्थ्य ढांचा बुरी तरह चरमराया हुआ है, देश की राजधानी में बीस हज़ार करोड़ रुपये की लागत से  बन रहा केंद्र सरकार का सेंट्रल विस्टा (नई संसद) प्रोजेक्ट पर काम युद्ध स्तर पर जारी है और मोदी सरकार ने इसे आवश्यक श्रेणी के काम में डाल दिया है।

बीते सप्ताह ऑक्सीजन और बेड की कमी की वजह से राजधानी में 2267 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई लेकिन इस प्रोजेक्ट का काम जारी रहा।

मनीकंट्रोल वेबसाइट के मुताबिक, मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का निर्माण कार्य जनवरी 2021 में शुरू हुआ था, जिसकी निगरानी केंद्रीय लोक निर्माण विभाग सीधे कर रहा है।

इस प्रोजेक्ट की घोषणा पिछले साल सितंबर में हुई थी, जिसमें एक नए त्रिभुजाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है।

20,000 करोड़ की अनुमानित लागत के इस प्रोजेक्ट के निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है। नए संसद भवन के अलावा इसमें सेंट्रल विस्टा एवेन्यू भी बनेगा, जिसमें नया केंद्रीय सचिवालय बनेगा, इस बिल्डिंग का काम अभी शुरू होना बाकी है।

यह प्रोजेक्ट लुटियंस दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से लेकर इंडिया गेट तक तीन किलोमीटर लंबे दायरे में फैला हुआ है।

दिल्ली में लगातार दो सप्ताह के कर्फ्यू के बावजूद सेंट्रल विस्टा का काम रुका नहीं, बल्कि इसमें काम करने के लिए मजदूरों को आने जाने के लिए बकायदा पास जारी किए गए।

16 अप्रैल को केंद्रीय लोक कल्याण विभाग ने दिल्ली पुलिस को पत्र लिखकर कहा कि कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का काम समयबद्ध प्रकृति का है और 30 नवंबर, 2021 से पहले पूरा होना है।

पत्र में पुलिस से अनुरोध किया गया था कि कफ्र्यू अवधि के दौरान कंपनी को उसके कर्मचारियों को उसके स्वयं के बसों के माध्यम से सराय काले खां में श्रमिकों को फेरी लगाने के लिए अनुमति दी जाए।

इसके जवाब में 19 अप्रैल, जिस दिन राजधानी में हफ्ते भर के लिए लॉकडाउन लगाया गया था, को नई दिल्ली जिले के डीसीपी ने लॉकडाउन के दौरान प्रोजेक्ट के काम में लगे 180 वाहनों के लिए लॉकडाउन पास जारी किए।

डिप्टी कमिश्नर के पत्र में कहा गया है कि लॉकडाउन पास आवश्यक सेवाओं श्रेणी में प्रदान किया गया था। इस प्रोजेक्ट पर रोक लगाने के लिए पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की गई थी।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि कोविड-19 के दौरान सिर्फ बहुत जरूरी मामलों पर ही सुनवाई होगी और ये अतिआवश्यक मामला नहीं है।

कांग्रेस समेत कई अन्य विपक्षी दल पिछले साल से ही इस प्रोजेक्ट पर हजारों करोड़ रुपये खर्च करने का विरोध करते रहे हैं। हालांकि इसे अपनी प्रतिष्ठा और अहंकार का सवाल बना चुकी मोदी सरकार प्रोजेक्ट पर पीछे हटने को तैयार नहीं हुई।

ऐसे समय में जब देश के लोगों को दवाईयों, ऑक्सीजन, अस्पतालों में बेड की जरुरत है, सरकार का इस प्रोजेक्ट को ‘आवश्यक सेवाओं’ की लिस्ट में डालकर उसका निर्माण कार्य जारी रखना उस कथन की याद दिलाता है कि ‘जब रोम जल रहा था, तब नीरो बांसुरी बजा रहा था।’

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