नए लेबर कोड फिर से अटके, कुछ राज्यों ने नहीं तैयार किये हैं नियम

1 जुलाई से लागू होने वाले नए लेबर कोड फिर से ठंडे बस्ते में चले गए हैं। कुछ राज्यों ने अभी भी अपने नियम तैयार नहीं किये हैं।

केंद्र सरकार देश भर में एक झटके में इसे लागू करना चाहती है। हालांकि पहले महामारी और फिर मजदूर व ट्रेड यूनियनों के विरोध से नए लेबर कोड पहले से ही बाधित हैं।

लेबर कोड लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार, दोनों को अपने हिसाब से नियम ड्राफ्ट करने होंगे।

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अब तक 30 राज्यों ने वेतन कोड के लिए अपना प्रारूप तैयार कर लिया है।

औद्योगिक रिश्तों के कोड में 26 राज्यों ने, सामाजिक सुरक्षा और पेशेवर सुरक्षा के लिए 24 राज्यों ने नियम ड्राफ्ट कर लिए हैं।

आंध्र प्रदेश, मेघालय और नागालैंड में अभी तक नियम ड्राफ्ट किया जाना बाकी है।

मोदी सरकार के साथ ही मिलीभगत मीडिया भी लेबर कोडों के प्रचार में ज़ोरों से लगा हुआ है यह कहकर कि हफ्ते में तीन दिन छुट्टी मिलेगी।

लेकिन इन नियमों के तहत काम का समय बढ़ कर 12 घंटे तक हो सकता है और साथ ही वेतन संरचना बदलने से इन-हैन्ड वेतन कम होने की संभावना है।

सदियों के संघर्ष के बाद दिन के केवल 8 घंटे काम के हक पर आखिरकार मोदी सरकार ने कुठाराघात कर ही दिया।

यह गौर करने वाली बात है कि ज्यादातर क्षेत्रों में मजदूर पहले से ही 12 घंटे काम करने को बाध्य हैं। हमारे देश में लेबर लॉ कितने असरदार हैं, ये बात जगजाहिर है।

अब इस पर 12 घंटे काम कराने को अगर सरकार  वैध करार दे देती है, तो शोषक हफ्ते में ना सिर्फ चार दिन के हिसाब से 48 घंटे, बल्कि कम से कम छह दिन में मजदूरों से 72 घंटे काम लेगा।

बताते चलें कि 29 श्रम कानूनों को हटा कर चार लेबर कोड लागू किये जाएंगे जिसमें वेतन, सामाजिक कल्याण, औद्योगिक रिश्ते और मजदूरों की स्वास्थ और सुरक्षा के नियमों में बदलाव लाए गए हैं।

इसके अलावा सिर्फ आपात स्थिति में श्रम कानूनों को तब्दील करने के सरकार के अधिकार को बदल कर अब किसी भी समय तबदीली की पूरी छूट दे दी गई है।

सामाजिक सुरक्षा कोड की धारा 96 के तहत सरकार किसी भी श्रम कानून को बदल सकती है या समाप्त कर सकती है। ऐसा करने के लिए सरकार को संसद में विधेयक लाने की जरुरत भी नहीं पड़ेगी।

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