नार्वे में 1300 अध्यापकों की हड़ताल जारी

शिक्षण का नया सत्र शुरू होते ही नार्वे में 22 अगस्त से 1300 अध्यापक हड़ताल पर चले गये हैं।

इन अध्यापकों की मुख्य मांग अपने वेतन बढ़ाने की है। इसके अलावा योग्य अध्यापकों को भर्ती करने की भी इनकी मांग है।

इस हड़ताल के कारण 14 म्युनिसिपेलिटी और 10 काउंटी में स्कूलों ने शिक्षण कार्य बाधित रहेगा।

वैसे तो हड़ताल जून में सत्र के ख़त्म होने से कुछ समय पहले शुरू हो गयी थी। लेकिन तब हड़ताल का ज्यादा असर नहीं हुआ लेकिन अब स्कूल शुरू होने के साथ ही हड़ताल की शुरुआत हो गयी है।

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नार्वे की राजधानी ऑस्लों में अध्यापकों है मांगें मान लेने के कारण वे हड़ताल में शामिल नहीं हो रहे हैं।

नॉर्वे में काउंटी हाईस्कूलों और मुनिसिपेलिटी छोटे स्कूलों की देखभाल का काम करती है।

अध्यापकों की भर्ती की कर रहे है मांग

अध्यापकों की शिकायत है कि उनका काम बच्चों को पढ़ाने का है जो कि महत्वपूर्ण है लेकिन उनकी तन्ख्वाह सबसे कम है और वृद्धि भी कम होती है। इसके अलावा योग्य अध्यापकों की भर्ती भी उनकी मांग है क्योंकि उनका कहना है कि वहाँ 5 में से 1 अयोग्य अध्यापक है।

यूनियन का कहना है कि अगर उनकी मांग नहीं मानी जाती है तो 29 अगस्त से और भी अध्यापक इसमें शामिल हो जाएंगे। और आंदोलन को और तेज़ करेंगे। अध्यापकों का कहना है कि उनकी तन्खाह में कई सालों से वृद्धि नहीं हुई है।

नॉर्वे उन देशों में है जहाँ माना जाता है कि वहाँ एक बेहतर जन कल्याणकारी राज्य है। लेकिन अध्यापकों की हड़ताल दिखाती है कि वहां भी कुछ बेहतर नहीं है। केवल अध्यापक ही नहीं वरन और भी क्षेत्र जैसे तेल उत्पादन में भी मज़दूरों की हड़ताल होती रही है।

आज दुनिया में चल रहे आर्थिक संकट का असर उन देशों पर भी पड़ रहा है जहाँ की सरकारें अपने नागरिकों को कुछ सुविधायें प्रदान करती थीं। लेकिन आज वे जन कल्याणकारी राज्य का चोला उतार रही हैं। और यह फिर साबित करता है कि पूंजीवाद का असली चेहरा यही है।

(नागरिक अखबार के फेसबुक पेज से साभार)

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