मध्य प्रदेश : स्वास्थ्य विभाग की सच्चाई दिखाई तो तीन पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज

मध्य प्रदेश के भिंड जिले में पत्रकारों ने स्वास्थ्य विभाग की पोल खोलने की एक खबर दिखाई थी, इसे लेकर भिंड जिला प्रशासन द्वारा तीन पत्रकारों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज किये गये हैं।

मध्य प्रदेश मे लगातार पत्रकारों पर हमले और सरकारी दमन बढ़ा है। ताज़ा मामला 15 अगस्त का है।

जब देश आज़ादी का अमृतकाल मना रहा था, उसी समय प्रदेश के भिंड जिले में स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही को दिखाने और बताने के लिए तीन पत्रकारों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर लिया गया।

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

घटना 15 अगस्त की है जब पत्रकारों ने भिंड जिले के एक गांव के 76 वर्षीय ज्ञान प्रसाद विश्वकर्मा का वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया।

पत्रकारों ने दावा किया है कि 108 पर कॉल करने के बाद भी एम्बुलेंस मौके पर नहीं पहुंची, जिसके बाद परिवार के सदस्य मरीज को ठेले पर बैठाकर 5 किमी दूर अस्पताल ले जाने को मजबूर हुए। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि पीड़िता सरकारी योजनाओं की लाभार्थी नहीं है। सरकार की स्वास्थ्य चिकित्सा की खुलती पोल की खबरें रोज अखबारों व सोशल मीडिया पर दिख जाती हैं।

वीडियो वायरल होने के बाद भिंड के जिलाधिकारी ने फर्जी जांच कर इस खबर को झूठा बताया। उन्होंने स्थानीय अखबार के तीनों पत्रकारों के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 505 (2) के तहत प्राथमिकी दर्ज की है।

पीड़ित परिवार को दी रहीं हैं धमकियां

वहीं, पीड़ित पत्रकारों ने प्रशासन पर गंभीर आरोप आरोप लगाया है कि प्रशासनिक अधिकारियों ने पीड़ित परिवार से एक कोरे कागज पर उसके हस्ताक्षर लिए हैं और उन्होंने (अधिकारियों ने) पीड़ितों को धमकी दी कि अगर वे मीडिया से कुछ भी बोलेंगे तो वे उनको मिल रही सरकार की योजनाओं को रोक देंगे ।

फ्रीलांस पत्रकार पवन जायसवाल को कौन भुला सकता है जिन्होंने 2019 में उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में छात्रों को नमक की रोटी खिलाने का खुलासा किया था।

उनके ऊपर आईपीसी की धारा 186 (स्वेच्छा से अपने कार्य के निर्वहन में लोक सेवक को बाधित करना), 193 (झूठे सबूत), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

जब देश इस में इस तानाशाहीपूर्ण कार्यवाही की निंदा हुई तब जाकर जायसवाल को दोषमुक्त कर दिया गया। हाथरस कांड में स्वतंत्र पत्रकार सिद्दीक कप्पन व भीमा कोरेगांव घटना में पत्रकार-बुद्धिजीवी आदि जेलों में बंद हैं।

बीते 10 सालों से बढ़ने लगे हैं पत्रकारों पर हमले

मध्य प्रदेश ही नहीं पिछले 10-12 सालों में पूरे देश में ही पत्रकारों पर हमले बढ़े है। जहां कांग्रेस के शासन काल में 2009 से 2013 के बीच 22 पत्रकारों की हत्या हुई थी वहीं मोदी सरकार में 2014 से 2020 के बीच 27 पत्रकार मारे गए हैं।

मध्य प्रदेश देश में पत्रकारों पर हमले में टॉप 3 में है। राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (आरआरएजी) की भारतीय प्रेस स्वतंत्रता रिपोर्ट 2021 बताती है कि में में इस दौरान कम से कम छह पत्रकारों की हत्या हुई, 108 पर हमला हुआ और 13 मीडिया संस्थानों या अखबारों को निशाना बनाया गया।

जम्मू कश्मीर में 25 पत्रकारों या मीडिया संस्थानों को सबसे ज्यादा निशाना बनाया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश (23), मध्य प्रदेश(16), त्रिपुरा (15), दिल्ली , बिहार (6), असम (5), हरियाणा और महाराष्ट्र (4-4),गोवा और मणिपुर (3-3), कर्नाटक, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल (प्रत्येक में 2 मामले) और आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और केरल (प्रत्येक में 1 मामला) का नंबर आता है ।

इसी तरह रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की एक रिपोर्ट में भी भारत को पत्रकारिता के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में शामिल किया गया था। संस्था द्वारा जारी 2021 वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत को 180 देशों में 142 वा स्थान मिला है, जो मीडिया स्वतंत्रता की खराब स्थिति को जाहिर करता है।

संघी सरकार द्वारा बची-खुुची अभिव्यक्ति की आज़ादी को लगातार कुचला जा रहा है।

(नागरिक अखबार के फेसबुक से साभार)

(वर्कर्स यूनिटी के फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर सकते हैं। टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें। मोबाइल पर सीधे और आसानी से पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.