नई पेंशन स्कीम का अरबों रुपये कौन खा रहा है? क्यों बढ़ रही है ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने की मांग?

By  सुरेंद्र सिंह चौधरी

केवल बंगाल एकमात्र ऐसा राज्य था जिसने वाजपेई सरकार द्वारा 2004 में उठाए गए कुठाराघाती कदमों को पहचान लिया और केंद्र द्वारा समर्पित इस जन-विरोधी नीति को अपने यहां लागू नहीं होने दिया।

भारत में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा छाया हुआ है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने नई और पुरानी पेंशन योजना के अंतर को समझते हुए, पुरानी पेंशन योजना लागू करने की घोषणा की।

पुरानी पेंशन को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बताते हुए अशोक गहलोत का कहना है कि पुरानी पेंशन योजना ने केवल रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को सामाजिक सुरक्षा देती है।

बल्कि नई पेंशन योजना के अंतर्गत कर्मचारी और सरकार का जो पैसा केंद्र के माध्यम से शेयर मार्केट और कॉरपोरेट घरानों को जा रहा था वह पैसा अब राज्य सरकार के पास रहेगा और उस पैसे का इस्तेमाल सरकार अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं में करेगी।

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OPS लागू करने के लिया संघर्ष

18 साल बाद यूं ही अचानक कोई पुरानी पेंशन योजना लागू नहीं हुई है। न्यू पेंशन स्कीम एंप्लाइज फेडरेशन ऑफ राजस्थान के बैनर तले राजस्थान के 7 लाख कर्मचारियों ने सड़क से लेकर विधानसभा तक संघर्ष किया।

उसने रिसर्च कर आंकड़े जुटाए, सरकार के सामने तथ्य रखे और सच का आइना दिखाया कि पुरानी पेंशन योजना केवल कर्मचारियों के लिए घाटे का सौदा नहीं है, कर्मचारियों के 10% के साथ-साथ सरकार का 10% योगदान भी कॉरपोरेट्स के माध्यम से म्यूचुअल फंड में लगाया जा रहा है जिसमें निर्धारित रिटर्न की कोई गारंटी नहीं है और उसमें से भी निर्धारित हिस्सा हमेशा हमेशा के लिए कॉरपोरेट घरानों के पास मौज उड़ाने के लिए रहेगा जिसे वापस कभी हासिल नहीं किया जा सकता। संगठन के माध्यम से सरकार तक हकीकत पहुंचाई गई कि नई पेंशन योजना के तहत रिटायर होने वाले कर्मचारी किस प्रकार 700/800 रुपए की मासिक पेंशन से अपने दवाई का खर्च भी नहीं निकाल पा रहे हैं, मजबूरन उन्हें चाय और मूंगफली बेच कर अपना घर चलाना पड़ रहा है।

सरकार को ब्लॉक स्तर से लेकर राज्य स्तर तक भेजे जाने वाले ज्ञापन की मुख्यमंत्री द्वारा स्टडी करवाई गई और आरती डोगरा और खेमराज कमेटी के माध्यम से NPSEFR ने जो अपना इनपुट सरकार को दिया, उससे पुरानी पेंशन बहाली का मार्ग प्रशस्त हुआ।

छत्तीसगढ़ और झारखंड में OPS लागू

मीडिया के सामने मुख्यमंत्री जी ने यह बात कबूली की, कि कर्मचारी और राज्य सरकार के पैसे पर कॉरपोरेट मौज उड़ाए यह न्यायोचित नहीं है।

छत्तीसगढ़ और झारखंड को राजस्थान सरकार के फैसले से हिम्मत मिली और उन्होंने एनपीएस को अपने यहां बंद कर 1972 की पेंशन योजना को बहाल करने की घोषणा कर दी।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी वित्त विभाग को इस मामले का परीक्षण करने के लिए कहा है। गुजरात में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने वादों में इसे दोहरा रही हैं।

स्पष्ट है पुरानी पेंशन ना केवल कर्मचारियों का रिटायरमेंट के बाद बुढ़ापा सुरक्षित करती है साथ ही राज्य के पैसे को केंद्र में और म्यूचुअल फंड में जाने से रोकती है। यह सब के लिए फायदे का सौदा है।

गोदी मीडिया OPS को बता रही जोखिमपूर्ण

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कुछ लेखक और समाचार पत्र जनता को बेवकूफ बनाने का काम कर रहे हैं। उनका कहना है कि पुरानी पेंशन देना आर्थिक रूप से एक जोखिमपूर्ण नीति है।

जबकि हकीकत यह है कि यह जोखिम पूर्ण सरकार के लिए नहीं बल्कि एसबीआई के लिए है क्योंकि कर्मचारी और सरकार के कुल योगदान (जिसपर PFRDA कुंडली मार कर बैठा है) के 33.33% पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया मौज उड़ा रहा है।

अगर इसी तरह धीरे-धीरे सभी राज्य पुरानी पेंशन योजना लागू करने लग जाएं तो एसबीआई को यह पैसा पुनः पीएफआरडीए को लौटाना पड़ेगा।

राजस्थान के जिस 41000 करोड रुपए पर पीएफआरडीए कुंडली मार कर बैठा है उसमें पीएफआरडीए के पास तो केवल हैंडलिंग इत्यादि के नाम पर आया हुआ कमीशन ही है बाकी इस पैसे पर असली मौज एलआईसी और एसबीआई उड़ा रही है।

SBI की रिपोर्ट फर्जी

एक तरफ एसबीआई फर्जी रिपोर्ट निकालकर जनता को भड़का रही है और दूसरी तरफ पीएफआरडीए पर दबाव बना रही है कि यह पैसा किसी भी सूरत में वापस राज्य के हाथ में नहीं जाना चाहिए।

अगर यह पैसा वापस राज्य और उसके कर्मचारियों के पास चला गया तो फिर बैंक कॉरपोरेट घरानों के हजारों करोड़ के लोन कैसे माफ करेगा?

जिस समय राजस्थान छत्तीसगढ़ झारखंड पुरानी पेंशन योजना लागू कर चुके हैं और पंजाब हिमाचल प्रदेश में सुगबुगाहट होने लगी है वही बिहार और उत्तर प्रदेश में अभी तक इस मसले पर चुप्पी है।

दैनिक जागरण उत्तर प्रदेश और बिहार का प्रमुख अखबार है, ऐसा लगता है जनता को सच बताने का अपना दायित्व भूलकर सत्ता से सांठगांठ कर चंद पैसों बदले जनता को गुमराह कर रहा है।

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बिहार और उत्तर प्रदेश के कर्मचारियों को ऐसे अखबारों की होली जलाने चाहिए और उन्हें एहसास कराना चाहिए कि जो उन्हें नंबर वन के शिखर पर बिठा सकता है वह रोड पर भी ला सकता है।

अखबारों का काम सत्ता की चमचागिरी ना कर हकीकत को जनता के सामने लाना होता है, वरना याद रहे जब अखबार चमचागिरी और चाटुकारिता पर उतर आते हैं तो या तो सरकार गिर जाती है या अखबार बंद हो जाते हैं।

(प्रस्तुत लेख में दिए गए विचार लेखक के हैं।)

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