यूपी में ऑक्सीजन सिलेंडर न देने का तुगलकी फरमान, दिल्ली में वेल्डिंग वाले भर रहे ऑक्सीजन

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जैसे जैसे ऑक्सीजन की किल्लत बढ़ती जा रही है और केंद्र सरकार के तमाम दावों के बावजूद बिना ऑक्सीजन लोगों की बड़े पैमाने पर जानें जा रही हैं, यूपी में निजी ऑक्सीजन सिलेंडर देने पर पाबंदी लगा दी गई है।

उधर दिल्ली में लोग ऑक्सीजन के लिए वेल्डिंग करने वाली छोटी दुकानों की ओर रुख कर रहे हैं, जहां छोटे पैमाने पर ही ऑक्सीजन बनती है।

योगी सरकार के इस आदेश का विरोध होना भी शुरू हो गया है। ऑल इंडिया पीपुल्स् फ्रंट एक बयान जारी कर कहा है कि ने कहा है कि किसी को भी व्यक्तिगत रूप से आक्सीजन सिलेंडर न देने का मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का तुगलकी फरमान प्रदेश में कोरोना से होने वाली मौतों को बढ़ाएगा।

बयान के अनुसार, पहले से अस्पताल में भर्ती होने से वंचित होम कोंरटाइन कोविड पीडितों को मौत के मुंह में ढकेलेगा। इस आदेश को तत्काल सरकार को वापस लेना चाहिए और प्रदेश के हर नागरिक के लिए ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड और कोरोना से बचाव की दवाओं का इंतजाम करना चाहिए।

आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एसआर दारापुरी ने उन्नाव मेडिकल कालेज में बुधवार को ऑक्सीजन के अभाव में 9 लोगों की मौत होने पर गहरी चिंता व्यक्त की।

आइपीएफ ने एक प्रस्ताव में कहा है कि लखनऊ में लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान और विवेकानंद अस्पताल मेंऑक्सीजन की कमी के कारण आधा दर्जन लोगों की मृत्यु हुई व बलरामपुर अस्पताल समेत पूरे प्रदेश में ऑक्सीजन की किल्लत बनी हुई है।

दारापुरी ने कहा कि आम आदमी की कौन कहे समाज के सम्भ्रांत हिस्से की भी जान सुरक्षित नहीं है। इलाहाबाद के स्वरूपरानी अस्पताल में पांच दशक तक इलाज करने वाले डा. जेके मिश्रा तक को ऑक्सीजन व समुचित इलाज तक नहीं मिला और उनकी मृत्यु हो गई। कानपुर के जिला जज को इलाज नहीं मिल सका, पदमश्री से सम्मानित योगेश प्रवीन को सरकार के कानून मंत्री की सिफारिश के बावजूद इलाज न मिला और उनकी मृत्यु हो गई। यही स्थिति वरिष्ठ पत्रकार विनय श्रीवास्तव के साथ भी हुई इलाज के अभाव में तड़प तड़प कर उन्होंने दम तोड़ा।

उनके अनुसार, लखनऊ, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी, गोरखपुर समेत पूरे प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में हाहाकार मचा हुआ है लेकिन सरकार सिर्फ अखबारी बयानबाजी करने में लगी है। सरकार का दावा है कि चार साल में यूपी दमदार हुआ है पर वास्तविकता यह है कि चार साल के योगी कार्यकाल में यूपी बेकार और बदतर हालत में गया है।

यूपी में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई है जिसे हाईकोर्ट तक ने नोट किया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में आम आदमी को इलाज की सुविधा देना और उसकी जिदंगी बचाना सरकार का संवैधानिक कर्तव्य है जिसे पूरा करने में मौजूदा सरकार विफल रही है। हाईकोर्ट की संस्तुतियों पर विचार कर अमल करके लोगों की जिदंगी बचाने की जगह योगी सरकार उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे स्टे करा वीर बहादुर बन रही है।

हद तो यह है कि इन बुरी हालतों में सरकारी अस्पतालों में ओपीडी और आईपीडी तक बंद कर दी गई परिणामस्वरूप कोविड के अलावा अन्य बीमारियों से पीड़ित लोग इलाज के अभाव में बेमौत मरने के लिए मजबूर हैं।

इन परिस्थितियों में जनता की मदद के लिए आइपीएफ ने कोविड हेल्प डेस्क शुरू किया है और जो लोग भी इलाज के अभाव में परेशान है उनकी दिक्कतों को शासन प्रशासन के समक्ष उठाया जा रहा है। आइपीएफ हेल्प डेस्क के जरिए जिलों में कोरोना की वास्तविक हालत, पीड़ितों की समस्याओं, वर्तमान में उपलब्ध सुविधाओं, अस्पताल में भर्ती मरीजों की हालत, सरकार द्वारा घोषित और वास्तविक रूप से हो रही मौतों के अंतर, दवाईयों व ऑक्सीजन की उपलब्धता आदि पर सूचनाएं एकत्र कर रिपोर्ट हाईकोर्ट में लम्बित जनहित याचिका में दाखिल करेगा।

आइपीएफ के प्रस्ताव में जनता से अपील की गई की वह सरकारी दुव्र्यवस्था में अपने को असहाय न महसूस करे बल्कि बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के लिए लामबंद हो।

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