युद्ध कोरोना के खिलाफ चल रहा है कि मजदूरों के !

workers walking through jaipur agra

By आशीष सक्सेना

विश्व महामारी का इलाज ऐसे अनोखे तरीके से हो रहा है कि युद्ध कोरोना के खिलाफ न होकर मजदूरों-मजलूमों के खिलाफ हो रहा है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद किराए के घरों से निकाले गए मजदूर जब सडक़ों पर थे तो भूख-प्यास या फिर गाडिय़ों से तीन दर्जन कुचलकर मारे गए। जैसे-तैसे जो अपने गांवों-कस्बों में पहुंचे हैं, वे भी हालात से तंग आकर जान देने को मजबूर हो चले हैं।

ताजा दुखद सूचना ये है कि उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के सेंथल कस्बा में आर्थिक तंगी से आजिज आकर फेरी लगाकर परिवार पालने वाले 32 वर्षीय मुजाहिद ने आत्महत्या कर ली। दो बच्चों के पिता मुजाहिद किराए के मकान में पत्नी के साथ रहते थे। लॉकडाउन के चलते वह फेरी के लिए नहीं जा सके और परिवार भूखे मरने की कगार पर आ गया।

ये पहली घटना नहीं। इससे पहले कुछ दिन पहले लखीमपुर खीरी में गुरुग्राम से बमुश्किल घर पहुंचे 21 साल के रोशनलाल को लॉकडाउन नियम तोडऩे के आरोप में पीटा, जिससे आहत होकर रोशनलाल ने खुदकुशी कर ली।

रोशनलाल की खता इतनी ही थी कि प्राइमरी स्कूल के आइसोलेशन सेंटर में खाने की व्यवस्था नहीं थी और घर पर भी आटा खत्म हो गया। वह खाना खाने घर गया और फिर आटा पिसाने चक्की पर चला गया। पुलिस ने उसे सरेआम चक्की पर आकर ही पीटा। दलित पृष्ठभूमि के रोशनलाल ने घर के हालात और घटना पर सुसाइड नोट भी छोड़ा है।

एक ऐसी सूचना आगरा से भी है। रेस्टोरेंट की छत पर मेघालय के रहने वाले युवा कर्मचारी ने लॉकडाउन में फांकाकशी के चलते आत्महत्या कर ली। उसने सुसाइड नोट में रेस्टोरेंट मालकिन से बस इतनी ही गुजारिश की कि उसके शव को उसके गांव तक पहुंचवा दिया जाए।

ऐसे ही न जाने कितने ही लोग हालात से गुजर रहे हैं और सरकार सिर्फ दावों के सहारे राहत बांटने की बात कर रही है। हकीकत ये है कि शहर से देहात पहुंचे मजदूरों को बिना व्यवस्था आइसोलेशन सेंटर में डाल दिया गया है या फिर घरों को कोरंटाइन करके भूखे रहने की मजबूरी पैदा कर दी है।

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