महिला मज़दूर की हत्या ने कपड़ा फैक्टरी में हो रहे यौन हिंसा को उजागर किया

H&M

 ग्लोबल ब्रांड H&M ‘ ने  से ‘कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न ‘ के सन्दर्भ में पूछताछ करने का आश्वासन दिया है

नाची अपैरल नाम की एक फैक्ट्री,  जिसके मालिक ईस्टमैन एक्सपोर्ट्स हैं, में काम करने वाली एक महिला मज़दूर की हत्या जनवरी महीने के शुरू में कर दी गयी थी।  वह महज 20 साल की थी और एक दलित परिवार की लड़की थी ।

जयश्री कथिरावेल 1 जनवरी से लापता थी और कुछ दिन बाद ही उसका शव मिला । पुलिस ने फैक्ट्री में काम करने वाले एक सुपरवाइजर को गिरफ्तार किया, जिसके अनुसार  उसने जयश्री का अपहरण और हत्या करने की बात स्वीकार की है।

वही के परिवार वालों का कहना है कि ये संभव है की हत्या से पहले सुपरवाइजर ने उसका बलात्कार भी किया हो।

जयश्री ने फैक्ट्री में कोविड लॉकडाउन हटने के बाद से ही काम करना शुरू किया था।

फैक्ट्री में जयश्री के साथ काम करने वाली उसकी एक दोस्त जो इसी फैक्ट्री में कुछ महीने पहले तक काम करती थी  ने बताया की ‘वह फैक्ट्री में इसी सुपरवाइजर द्वारा यौन हिंसा की शिकार हुई थी।’

वह 1 जनवरी को घर से निकली थी और उसके माता पिता इस बात पर कायम हैं की वह फैक्ट्री जाने के लिए ही निकली थी। जब वह रात में वापस नहीं आयी तब उन्होंने स्थानीय पुलिस थाने में इसकी सूचना दी, अगले कुछ दिन ढूंढने के बाद उसका क्षत-विक्षत शव दूर के एक खेत में मिला।

अपराध स्वीकार करने के आधार पर पुलिस ने सुपरवाइजर और उसके एक साथी को आरोपित किया है। पुलिस इसे आरोपी और पीड़िता के बीच का मुद्दा  मानते हुए  फैक्ट्री प्रबन्धन से पूछताछ की मनाही कर रही है।

हालाँकि महिला के परिवार और ट्रेड यूनियन ( तमिलनाडु टेक्सटाइल एंड कॉमन लेबर यूनियन ) का ये दावा है की ये अपराध लम्बे अंतराल से कार्यस्थल पर हो रहे यौन उत्पीड़न ,जिसकी कंपनी द्वारा लगातार उपेक्षा की जाती रही है, का ही परिणाम है।

यूनियन ने साक्ष्यों के साथ ये भी शिकायत की है की कंपनी ने उनपर पैसो की सहायता के बदले में शिकायत वापस लेने के लिए दबाव बनाने की कोशिश भी की है।

उसके बाद एक  भीड़ ने भी पीड़िता के  घर आकर उन्हें शिकायत वापस लेने और समझौता करने  के लिए धमकी दी है।

वही कंपनी ने इस बात को खारिज करते हुए कहा है की वो केवल परिवार की आर्थिक तंगी दूर करने के लिए मदद करने की कोशिश कर रहे थे।

यूनियन के लोगों का कहना है कि “कपड़ा उद्योग में काम कर रही महिलाओं का उनके कार्यस्थलों पर  यौन शोषण बेहद आम है, लेकिन अक्सर इन मामलों में कोई कारवाई नहीं होती है।  हमें इसके बारे में जानकारी तभी मिल पाती है जब वहाँ काम करने वाले कर्मचारियों के साथ अनौपचारिक बातचीत करते है।  फैक्ट्री में काम कर रहे  लोग अपराधियों के खिलाफ कभी-कभार ही इसकी शिकायत दर्ज करवाते है ,उन्हें डर होता है कि कही उनका  रोज़गार न चला जाए या इस बात का भय होता है कहीं उनके साथ कुछ बुरा न हो जाए।”

लेबर यूनियन के सदस्यों ने कर्मचारियों के   शिकायत न कर पाने कि वजहों की जानकारी देते बताया की “इन फैक्ट्रियों में इस तरह के शिकायतों को दर्ज  करने के लिए एक अनुकूल तंत्र की कमी हैं। न्याय या फिर अन्य किसी तरह की राहत मिलने की संभावना अत्यंत काम होती है।  महिला कर्मचारियों के उचित रूप से संगठित न होना भी इसकी एक बड़ी वजह है।”

एशिया वेज फ्लोर अलायंस(AFWA) की राष्ट्रीय समन्वयक नंदिता शिवकुमार बताती है” कपड़ा उद्योग एक ऐसा क्षेत्र होता है जिसमें महिला कर्मचारियों की संख्या ज्यादा होती है और उनकी कामों के लिए रखे जाने वाले सुपरवाइजर मुख्य रुप से पुरुष ही होते है। श्रमिक संघों द्वारा भी इस क्षेत्र में संगठित करने का काम बहुत कम किया जाता है। यदि कुछ संगठन काम भी कर रहे है तो उसमें भी पुरुषों का ही वर्चस्व होता है और इनको भी यौन उत्पीड़न के मुद्दों में संलग्न होना मुश्किल लगता है।”

ऐसे में टीटीसीयू जैसे संगठन ऐसे मामलों को लेकर काम कर रहे है और राज्य अधिकारीयों एवं ग्लोबल ब्रांड्स के ऊपर यह दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं की फैक्ट्रियों में लिंग आधारित हिंसा और कार्यस्थल पर होने वाले उत्पीड़न पर नियंत्रण पर रोक लगाई जाए।  इस तरह की घटनाओं की पुनरावृति    सीधे तौर पर यह इशारा कर रही है की प्रबंधन द्वारा कार्यस्थल पर हो रहे अपराधों को नज़रअंदाज किया जा रहा है।

टीटीसीयू एवं एफवा के मिले जुले प्रयासों ने ग्लोबल ब्रांड को इस मामले का संज्ञान लेने के लिए मजबूर कर दिया।

गार्डियन एवं अल जज़ीरा ने इस मामले पर अपने रिपोर्ट में लिखा कि  एच & एम  एक अंतर्राष्ट्रीय फैशन ब्रांड , जो ईस्टमैन स्पोर्ट्स का एक मुख्या ग्राहक है , इस केस की तथा अपने सप्लायर फैक्टरी में यौन उत्पीड़न होने की सम्भावनों की जांच करनी चाहिए। निष्पक्ष जांच निश्चित रूप से यहाँ होने वाले यौन हिंसा को कम करने में सहायता करेगा।  लेकिन ऐसी घटनाएं समस्या का एक छोर मात्र है,यदि कार्यस्थलों को जेंडर आधारित हिंसा से सुरक्षित रखना है तो एक समन्वित तथा सभी पहलुओं को ध्यान में रखने वाले दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना होगा।

AFWA  के लोगों ने बताया की वैश्विक एकजुटता दिखाने और संगठित होने से खास तौर पर कपड़ा उद्योग जैसे क्षेत्रों में  जिन पर ग्लोबल ब्रांड्स की सम्प्रभुता है, कर्मचारियों की मांगो को पूरा करवाने में एक बड़ी जीत दिला सकती है ।

नंदिता शिवकुमार कहती हैं ” दरअसल ये ग्लोबल ब्रांड्स अपनी ब्रांड की छवि को लेकर काफी सतर्क रहती हैं और साथ ही यूरोपीय तथा अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक मंच के प्रति इनकी जवाबदेही भी होती है |ये एक तथ्य इन पर अपनी सप्लाई चैन में काम करने की परिस्थितियों को सुधारने के लिए दबाव डालने में कारगर सिद्ध हो सकता है।”

AFWA तथा GLJ –ILRF  द्वारा एच& एम के सप्लाई चेन में जेंडर के आधार पर होने वाली यौन हिंसा पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रकशित करी जिसके बाद 2018 में एच & एम की सप्लाई चेनों में इस तरह के अपराधों की तरफ सबका ध्यान आकृष्ठ हुआ।

लेकिन संगठनों का कहना है की इसके बाद भी ज़मीनी तौर पर कुछ खास अंतर नहीं आया है।  यह अभी देखना बाकि है की हाल में हुयी इस घटना का प्रभाव ग्लोबल ब्रांड्स को उनकी सप्लाई चैन की परिस्थितियों के प्रति जवाबदेह बनाने में कितना मज़बूर करता है।

टीटीसीयू एवं एफवा ने इंफोरसेबल बाइंडिंग एग्रीमेंट का प्रस्ताव रखा है जो काम करने के परिस्थितियों  के सुरक्षा मानक, श्रमिक संघ, शिकायत दर्ज करने के उचित माध्यम एवं उनके निरीक्षण को तय करेगा।

हांलाकि यह भी महत्वपूर्ण है की भारत में राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय सरकारें कार्य स्थल को सुरक्षित बनाने के लिए ज़िम्मेदारी लेती हैं।

महिलाओं की सुरक्षा और कार्यस्थल पर होने वाले एवं यौन उत्पीड़न को रोकने एवं उचित दंड के लिए बहुत सारे अदालतीय निर्णय एवं कानून पारित हो चुके हैं।

लेकिन इस केस में पुलिस ने कंपनी की भूमिका तथा वहां काम की परिस्थितीयों जिसकी वजह से ये घटना इस वीभत्स रूप घटी की जांच से परहेज़ कर रहा है।

‘द सेक्सुअल हरैसमेंटऑफ वीमेन एट वर्कप्लेस(प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन, एंड रेड्रेसल ) एक्ट , 2013’ का लागू होना अभी मंद गति में है।

प्रतिशोध  लिए जाने के भय से महिलाएं आंतरिक शिकायत समिति में शिकायत भी नहीं दर्ज करा पाती हैं , ना ही वो आसानी से जिला स्तर की शिकायत समिति से सम्पर्क कर पाती हैं।

यह क्षेत्र जिसमें बहुतायत में संविदा या अस्थायी महिला कर्मचारी ही काम करती हैं , इसमें कर्मचारी संघ की उपस्थिति ना के बराबर ही है। और जो थोड़े बहुत संघ हैं भी उनके पास ऐसा कोई अधिकार नहीं जिसके आधार पर वह फैक्ट्रीज को उनसे बातचीत करने के लिए बाध्य कर सकें।

राज्य सरकार भी ‘कारोबार सुगमता’ पूरा करने के चक्कर इन मुद्दों का उचित निरीक्षण नही करती है।

यह स्थिति और भी बुरी ही होगी यदि श्रमिक वर्ग संगठित होकर अपने अधिकारों के लिये नही लड़ता है तो।

वेंकट टी. ( an activist and co-editor of TNLabour)

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