उत्तराखंड ऑनर किलिंगः जगदीश के साथ बेटी की भी हत्या करना चाहते थे मां बाप

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By मेघा आर्या, रामनगर

आखिरकार जातिगत अहंकार ने उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के प्रखर व जुझारू नेता जगदीश चंद्र को अपना एक और शिकार बना लिया। जगदीश चंद्र दो बार विधानसभा प्रत्याशी रह चुके थे।

उत्तराखंड में दलित पृष्ठभूमि से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश चंद्र की ऑनर किलिंग मामले में पुलिस ने कई गंभीर खुलासे किए हैं। पुलिस का दावा है कि जगदीश की हत्या करने के बाद बेटी गीता को भी मार डालने का हत्यारे मंसूबा बनाए हुए थे।

जगदीश को जानने वालों अनुसार, वो एक जुझारू तथा ईमानदार व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। जगदीश चंद्र अल्मोड़ा जिले की पनुवाध्योखन गाँव के निवासी थे। लेकिन काम के सिलसिले में अक्सर भिक्यासैण रहा करते थे।

कुछ महीने पहले उनकी जान पहचान गीता उर्फ गुड्डी से हुई। गीता अपने सौतेले पिता तथा सौतेले भाई द्वारा अपने साथ किए जा रहे प्रताड़नाओं का जिक्र अक्सर जगदीश से किया करती थी। और इसी कारण जगदीश के मन में गीता के प्रति सहानुभूति का भाव उमड़ पड़ा।

समय के चलते यह सब उनके बीच प्रेम में तब्दील हो गया। गीता और जगदीश ने एक-दूसरे से विवाह करने का निर्णय लिया। गीता भागकर जगदीश के पास आ गई।

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पुलिस अधीक्षक से सुरक्षा मांगी, पर नहीं मिली

21 अगस्त को जगदीश और गीता ने अल्मोड़ा के गैराड़ मंदिर में विधिवत विवाह किया और वे कानूनन विवाह करने की तैयारी कर रहे थे।

इस बीच गीता के परिवार वालों से लगातार जान से मारने की धमकियां मिलने के कारण 27 अगस्त को गीता और जगदीश ने पुलिस अधीक्षक को अपनी सुरक्षा की मांग की थी।

गीता के पिता जोगा सिंह जगदीश के गांव में जाकर पूरे गांव को धमकी देकर भी आ चुके थे। एक  सितंबर को जगदीश अपनी ठेकेदार कविता मनराल के बुलाने पर बौली न्याय पंचायत क्षेत्र में “हर घर नल”, “हर घर जल” अभियान के तहत काम करने गया था।

लेकिन जगदीश चंद्र को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि भिक्यासैण में गीता के परिवार वालों ने जगदीश को मौत के घाट उतारने के लिए पूरा जाल बिछाया हुआ है।

गीता के परिवार वालों को जैसे ही भनक लगी कि जगदीश चंद्र इस वक्त भिक्यासैण में है, उन्होंने जगदीश चंद्र का अपहरण कर लिया। शाम करीब 7:00 बजे ठेकेदार कविता मनराल ने सेलापानी नामक स्थान से जगदीश चंद्र के अपहरण होने की आशंका की सूचना प्रशासन को दी।

और जब तक प्रशासन नींद से जागता तब तक गीता के माता पिता व भाई ने जगदीश को हथौड़ेनुमा हथियार से मार कर निर्मम हत्या कर दी।

जगदीश के शरीर पर 28 जख्म

जब वे जगदीश चंद्र को ठिकाने लगाने ले जा रहे थे, रात 10:00 बजे सिनार मोटर मार्ग पर एक वैन में पुलिस ने गीता के सौतेले पिता, सौतेले भाई व सगी मां के साथ जगदीश चंद्र की लाश के साथ पकड़ लिया।

जगदीश चंद्र को नजदीक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में ले जाया गया जहां डॉक्टर ने जगदीश चंद्र को मृत घोषित कर दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, जगदीश चंद्र के शरीर पर चोटों के 28 निशान हैं। जगदीश चंद्र के मरने तक बेरहमी से उनकी पिटाई की गई है।

हालांकि गीता के माता – पिता व भाई गीता को भी जीवित नहीं छोड़ते, लेकिन अपने संदेह के मुताबिक जिस घर में गीता को तलाश करने आए उस वक्त गीता इत्तेफाकन उस घर में मौजूद नहीं थी।  इसलिए गीता इस ऑनर किलिंग का शिकार होने से बच गई।

उत्तराखंड में इस जातिवादी कुकृत्य के प्रति भयंकर आक्रोश है। जगह जगह प्रदर्शन हो रहे हैं और जातिवादी जहर को समाज से मिटाने की मांग कर रहे हैं।

तमाम चेतनशील सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश की पत्नी गीता के मान सम्मान के लिए लगातार संघर्षरत हैं। पनुवाध्योखन गाँव के लोगों का आक्रोश इस वक्त चरम सीमा पर है। गाँव के लोग पूरी तरह से सड़कों पर हैं।

जातिवाद का यह घिनौना रूप सरकार को दिखाने के लिए लोग लगातार संघर्षरत हैं। इतनी बड़ी घटना के बावजूद शासन- प्रशासन की चुप्पी तथा लापरवाही पर सवाल उठा रहे हैं।

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पुलिस की फुर्ती पर सवाल

सामाजिक कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि जितने पुलिसकर्मी तथा अधिकारी प्रशासन ने जगदीश चंद्र की अंत्येष्ठि में लगाई अगर यही तत्परता जगदीश और गीता को उनकी सुरक्षा के लिए लगाई होती तो आज जगदीश चंद्र जिंदा होते।

उत्तराखंड के कई जगहों पर छात्र तथा सामाजिक कार्यकर्ता अपने-अपने तरीके से इस घटना का विरोध कर रहे हैं।

देहरादून,अल्मोड़ा, हरिद्वार,भवाली हल्दवानी ,नैनीताल, रामनगर,रुद्रपुर समेत कई जगहों पर छात्र तथा सामाजिक राजनीतिक संगठन के लोग अपना विरोध और क्रोध दर्ज कर रहे हैं।

लेकिन शर्म की बात ये है कि सरकार के कानों में अभी तक जूं तक नहीं रेंगी। सरकार के इस रवैये और लापरवाही पर सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्त्ता मुख्यमंत्री के पद से उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

एक वाक्य जो कि हम जाति के विषय में अक्सर सुनते हैं कि ,”जाति है कि जाती ही नहीं”। इस बात को जस का तस बनाए रखने में वर्तमान सरकार और तमाम हिंदूवादी होने का दंभ भरने वाले शायद ही कोई मौका चूकते हों।

दलितों पर हो रहे एक के बाद एक प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हमले इस बात का प्रमाण है। कुछ महीने पहले चंपावत जिले में सवर्ण छात्र छात्राओं ने अपने विद्यालय की दलित भोजन माता के हाथ का पका भोजन खाने से इंकार कर दिया था।

राजस्थान के जालोर जिले में बच्चे द्वारा स्कूल में रखे मटके से पानी पीने पर शिक्षक छैल सिंह ने उसे इसकदर पीटा कि बच्चे की मृत्यु हो गई।

हाल ही का यह जगदीश हत्याकांड हम सबके सामने हैं। ऐसे में सरकार सिर्फ और सिर्फ अपने तमाशाई होने का परिचय दे रही है।

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