हिटलरशाही का खतरा बढ़ा, 2024 के पहले बड़े आंदोलन की सख़्त ज़रूरतः SKM नेता दर्शनपाल

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By डॉ. दर्शनपाल 

किसान आंदोलन ऐसे समय में शुरू हुआ जब विपक्ष ने हथियार डाल दिए थे, कलम को चुप करा दिया गया था। कोरोना के दौरान ही किसान प्रदर्शन करने लगे थे। बढ़ते कर्ज और उसके कारण आत्महत्या ने कृषि संकट और गहरा कर दिया था। जब तीन कृषि कानून आए तो किसान यूनियनों ने वृहद जनजागरण अभियान चलाया।

किसानों ने तय किया कि केंद्र सरकार की सिंबल रेलवे को बिल्कुल ठप कर दिया जाएगा। गांवों और क्षेत्रों में बीजेपी नेताओं को घुसने नहीं दिया जाएगा, अडानी अम्बानी के ठिकानों पर धरना लगाया जाएगा और टोल प्लाजों को मुक्त कर दिया जाएगा। ये चारों निर्णय पंजाब में पूरी तरह लागू किए गए।

यह आंदोलन 25 सितम्बर 2020 को अपने पूरे उभार पर आ गया जब बंद के आह्वान पर पूरा पंजाब का चक्का जाम हो गया। तमाम राजनीतिक दल, संप्रदाय, समुदाय, वर्ग, तबके इस आंदोलन के साथ आकर खड़े हो गए।

और इसमें कहना न होगा कि अगर इस आंदोलन में सिखों की भागीदारी नहीं होती तो ये आंदोलन नहीं हो पाता। आंदोलन में लंगरों के मार्फत सिख समुदाय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूरे आंदोलन के दौरान देश और दुनिया के हर गुरुद्वारे में अरदास के दौरान इस आंदोलन की सफलता की कामना की जाती थी।

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हिटलरशाही का खतरा

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। यहां तक कि पूरे देश में जो किसान सभाएं आयोजित होती थीं, उसमें सिख किसान नेताओं को खास कर बुलाया जाता था।

जिन परिस्थितियों में 2020 में ये आंदोलन शुरू हुआ उसमें मोदी सरकार के लिए बहुत मुश्किल खड़ी हो गई थी।

सरकार के पास तीन विकल्प थे। पहला, दिल्ली तक आने के रास्ते में खाई खोदने से लेकर भयंकर ठंड में पानी की बौछारें, आंसू गैस के गोले, कैंटर और ट्रकों से सड़कें जाम करने की भरपूर कोशिश की गई।

लेकिन जब किसान दिल्ली बार्डर पर पहुंच गए तो दूसरा उपाय था, किसानों को यहां से बलपूर्वक खदेड़ा जाए और इसके लिए टैंकों और फौजों को उतारा जाए। वो ये कर नहीं सकते थे, क्योंकि इससे देश और दुनिया में भारी बदनामी होती।

और तीसरा, तीनों कृषि कानून वापस न लें, लेकिन इससे पूरे देश में आंदोलन और फैलता और 2021 के यूपी चुनाव और 2024 के आम चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता था।

आज हमारे सामने आंदोलन के पहले जैसी चुनौतियां फिर हैं।

देश में अगर पूरी तरह हिटलरशाही आ गई तो न तो कोई आवाज़ उठा पाएगा न ही अन्याय के खिलाफ संघर्ष हो सकेगा।

फासीवाद को रोकना है तो किसानों, मजदूरों, छात्रों-युवाओं को एकजुट होकर 2024 से पहले एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना होगा।  चार लेबर कोड और नई शिक्षा नीति को लेकर मजदूरों और छात्रों में काफी आक्रोश है।

किसान आंदोलन में भूमि सुधार का मुद्दा अहमः पावेल कुस्सा, द जर्नी ऑफ फार्मर्स रिबेलियन के विमोचन पर

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डिमांड चार्टर के साथ किसान फिर मैदान में

आगामी आम चुनाव से पहले डेढ़ साल का वक्त है और बाकी समुदाय अपने मुद्दों को लेकर एकता बनाएं, संगठन का प्रसार करें और एक व्यापक मोर्चा बनाकर वर्तमान राजनीतिक माहौल में कोई हस्तक्षेप करें तभी एक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने चार्टर ऑफ़ डिमांड को आगे बढ़ाया है।

कर्ज मुक्ति, एमएसपी और बिजली संशोधन बिल के साथ अन्य मुद्दों को शामिल करते हुए संयुक्त किसान मोर्चे ने काल दी है कि तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के शहीदों की बरसी के अवसर पर पूरे देश में किसान हर तहसील और जिला मुख्यालयों पर शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे।

साथ ही मोदी सरकार के पुतले जलाएंगे और मोदी के मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी की मांग करेंगे और डिमांड चार्टर पूरे देश से केंद्र सरकार को भेजा जाएगा। इस मौके पर पूरे देश में हर राज्य की राजधानी में बड़ी बड़ी किसान सभाएं आयोजित होंगी।

इसके अलावा 26 नवंबर को किसान आंदोलन की दूसरी सालगिरह पर पूरे देश में संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसान संगठन गवर्नर हाउस की ओर मार्च करेंगे।

किसान आंदोलन के दूसरे चरण में ये बहुत जरूरी है कि एक व्यापक एकता बनाई जाए क्योंकि सभी विपक्षी पार्टियां भी इस बारे में गंभीरता से सोच रही हैं कि बीजेपी और आरएसएस के हमले को कैसे रोका जाए।

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फासीवाद का मुकाबला आंदोलन से

हम ऐलान करना चाहते हैं कि फासीवाद के खतरे का हम तभी मुकाबला कर सकते हैं जब मजदूर किसान, छात्र नौजवान, अपनी फैक्ट्रियों, घरों, कॉलेजों, खेतों-खलियों से एकजुट होकर आगे आएंगे। और ये तभी हो सकता है जब सभी संगठन अपनी एकता को मजबूत बनाकर पहलकदमी लेंगे।

अगर किसान आंदोलन अपनी एकता को बनाए रखे और अपने दोस्तों दुश्मनों की स्पष्ट पहचान करता है तो एक लंबे शांतिपूर्ण आंदोलन के द्वारा ही इस फासीवादी रथ को रोका जा सकता है। ये किसान आंदोलन का एक सबक है।

‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब ऐतिहासिक किसान आंदोलन का जीता जागता दस्तावेज है क्योंकि ये उन लोगों के इंटरव्यू का संकलन है जो उस आंदोलन में सीधे तौर पर हिस्सा ले रहे थे, उसे जी रहे थे और उसको महसूस कर रहे थे।

“यह एक बड़ा डाक्यूमेंट ऐतिहासिक किसान आंदोलन के अंदर की सच्चाई को लोगों के सामने लेकर आया है इसके लिए मैं इस किताब को तैयार करने वाली टीम को बधाई देता हूं।”

(संयुक्त किसान मोर्चा के कोआर्डिनेटर और क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता डॉ. दर्शनपाल ने बीते 18 सितम्बर को दिल्ली के प्रेस क्लब  में ‘द जर्नी ऑफ़ फार्मर्स रिबेलियन’ किताब के विमोचन के दौरान अपनी बात रखी। भाषण का ट्रांस्क्रिप्ट यहां प्रस्तुत है। यह किताब वर्कर्स यूनिटी, ग्राउंड ज़ीरो और नोट्स ऑन द एकेडेमी ने संयुक्त रूप से प्रकाशित की है।)

इस किताब को यहां से मंगाया जा सकता है। मेल करें- [email protected]  या फोन करें  7503227235

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