कोरोना के बहाने मज़दूरों को डेढ़ सौ साल पीछे धकेलने की साज़िश, मई दिवस को प्रतिरोध दिवस बनाने की अपील

workers solidarity silwasa

कोरोना  के बहाने  नियोक्ता और सरकारें हमें 134 साल पीछे धकेलना चाहती है, जब शिकागो के शहीदों ने 8 घंटे कार्य दिवस के अपने हक़ के  लिए लड़ते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया था।

केंद्र की भाजपा सरकार कथित तौर पर 12 घंटे कार्य दिवस को वैध बनाने का प्रयास  कर रही है। गुजरात और मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकारें  तो  पहले ही इस आशय की अधिसूचना जारी कर चुकी हैं।

केंद्र की भाजपा सरकार भी सरकारी आदेश या अध्यादेश के माध्यम से श्रमिक वर्ग के विरुद्ध श्रम  कानूनों का संहिताकरण प्रक्रिया को पूरा कर मजदूर वर्ग के मूल अधिकारों पर हमला करना चाहती है ।

गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने मांग की है कि ट्रेड यूनियनों को कम से कम एक साल के लिए प्रतिबंधित किया जाना चाहिए और मनरेगा ठेका श्रमिकों के वेतन को कम करके  202 रुपये प्रतिदिन करने की मांग की है।

सरकार और उसके साथी यानि बड़े उद्योगपति ज़ाहिर तौर पर चाहते हैं कि मजदूरों को परिस्थितियों का गुलाम बना दिया जाए।

दिनांक 19 अप्रैल का ग्रृह मामले का मंत्रालय का आदेश, राज्य की सीमाओं पर प्रवासी श्रम की आवाजाही पर प्रतिबंध लगाता है, लेकिन राज्य के भीतर सभी जिलों में इसकी अनुमति देता है, जिसमें वे बंद हैं, ये मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन है।

कोरोना और लॉकडाउन के  कारण गिरती अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की दलील पर मेहनतकश लोगों के अधिकारों पर कई और हमले धीमी गति से किए जा  रहे हैं।

अमीर व्यवसायियों  से वित्तीय संसाधन जुटाने के बजाय, सरकार श्रमिकों और आम लोगों पर पूरा बोझ डाल रही है। केंद्र सरकार कैबिनेट  के  द्वारा  अनुमोदन के बाद  यह घोषणा की है कि केंद्र सरकार के कर्मचारियों और पेंशनरों का मंहगाई भत्ता/ डीए  वृद्धि जुलाई 2021 तक रोक दी  गयी है।

कई राज्य सरकारें कर्मचारियों के साथ बिना किसी परामर्श के एकतरफा वेतन कटौती कर रही हैं। सरकार के सभी निर्देशों और दिशानिर्देशों के बावजूद, हजारों उद्यम,  निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भी अनुबंध / आकस्मिक श्रमिकों को नौकरी से  निकाल  रहे हैं और उनकी मजदूरी में कटौती भी कर रहे हैं।

मजदूर वर्ग अपनी आजीविका और काम की परिस्थितियों पर ऐसे हमलों को स्वीकार नहीं कर सकता।

सरकार कोविद -19 के कारण वित्तीय संकट का सामना करने का दावा करती है। तथ्य यह है कि सरकार ने कॉरपोरेट्स को कर रियायतों देकर, लाभ कमाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री करके, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में एनपीए की वसूली ना करने  आदि  के आदेश देकर  बहुत पहले ही अपने खजाने को खाली कर दिया था।

सरकार अपने कर्मचारियों को एक साल के लिए हर  महीने पर एक दिन के वेतन को  प्रधानमंत्री केयर्स फंड में योगदान  के लिए बाध्य कर रही है !

लेकिन मज़दूर पहले से मौजूद वैश्विक संकट और आर्थिक मंदी  के चलते  कोविद -19 और फिर थोपी गयी अनियोजित देशव्यापी तालाबंदी की ट्रिपल मार पहले बड़ी मुश्किलों से बर्दाश्त  कर रहे हैं।

मजदूरों और कर्मचारियों के बड़े वर्ग, जिनमें फ्रंट लाइन हेल्थ वर्कर्स भी शामिल हैं, लगभग 24 घंटे काम कर रहे हैं और दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।

प्रवासी श्रमिकों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों सहित बड़ी संख्या में मेहनतकश लोग कोरोना का खामियाजा भुगत रहे हैं और नौकरी छूटने के कारण  कमाई का नुकसान सह रहे हैं। वहीं पर कुछ श्रमिक आश्रय ना होने के कारण अपने  परिवार के सदस्यों के साथ  आसमान के नीचे भूखे रह रहे हैं।

श्रमिक, जो हमारे देश की संपत्ति बनाते हैं,  उनको राहत नहीं प्रदान की जा रही  है और वे  भूखे  और बेघर हो गए हैं, जबकि  सरकार बड़े कॉर्पोरेट्स और व्यवसाईयों को रियायतें और प्रोत्साहन दे रही है।

जबकि अगर अति धनवान लोगों पर  बहुत कम  दर का संपत्ति कर लगा  दिया जाए तो भी आवश्यक संसाधन जुटाना संभव हो सकता है
हर साल,  हमारे सकल घरेलू उत्पाद का  73 %  का उपभोग केवल  शीर्ष 1% आबादी कर लेती  है।

आज हमारे देश के टॉप 1% अमीरों की संपत्ति हमारे सबसे कम 70% लोगों की कुल संपत्ति के 4 गुना से भी ज्यादा है। 63 भारतीय अरबपतियों की संयुक्त कुल संपत्ति वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारत के कुल केंद्रीय बजट से अधिक है जो 24,42,200 करोड़ रुपये थी।

हमारे देश में 953 अरबपतियों के परिवारों के पास औसतन 5278 करोड़ रुपये की संपत्ति है। भाजपा सरकार ने 2016-17 के केंद्रीय बजट में संपत्ति कर को समाप्त कर दिया।

इन अति धनवान लोगों  पर लगाया गया  एक छोटा संपत्ति कर भी  आसानी से सरकार को लगभग 50 करोड़ श्रमिकों और मेहनतकश लोगों के अन्य वर्गों को राहत प्रदान करने के लिए आवश्यक व्यय को पूरा करने में सक्षम कर सकता है।

लेकिन सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नहीं है। इसके बजाय, यह कोविद -19 को अपने पहले से मौजूद जन-विरोधी सुधारों के एजेंडे को आगे बढ़ाने के एक अवसर के रूप में लेना चाहता है, ताकि  इनके  कॉर्पोरेट साथी  , गरीब श्रमिकों और मेहनतकश लोगों का खून चूसकर अपनी संपत्ति बढ़ा सकें।

सत्तारूढ़ पार्टी के  अग्रिम कार्यकर्ताओ द्वारा कोरोना महामारी का उपयोग  मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध  सांप्रदायिक घृणा के बीज बोने के लिए किया जा रहा है।

जबकि कोरोना वायरस के मद्देनजर  लॉकडाउन के प्रवर्तन के नाम पर, मज़दूरों की असंतोष और लोकतंत्रिक और संवैधानिक अधिकारो  की आवाज को,  एक अतिरिक्त हमले का सामना करना पड़ रहा है। मजदूर वर्ग इसको बर्दाश्त नहीं कर सकता।

इस मई दिवस पर, श्रमिक वर्ग की एकजुटता के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर , आइए हम भाजपा सरकार और इसके कॉरपोरेट साथियों की इन चालों को विफल करने का संकल्प लें।

ट्रेड यूनियनों का संकल्प

  • आठ घंटे के कार्य दिवस के अधिकार, जिस पर हमला हो रहा है,  की रक्षा के लिए लड़ने के लिए एकजुट हों।
  • नियोक्ताओं के पक्ष में श्रमिकों के अधिकारों के दमन के लिए  44 श्रम कानूनों को चार संहिताओं में  विलय के खिलाफ एकजुट हों ।
    मौजूदा सामाजिक सुरक्षा, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य उपायों की रक्षा करने और उन्हें सार्वभौमिक कवरेज के लिए समावेशी बनाने के लिए लड़ाई के लिए एकजुट हों ।
  • सार्वजनिक उपक्रमों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बेचने  खिलाफ, लड़ने के लिए एकजुट हों । सरकार द्वारा सार्वजनिक उपक्रमों में 100% एफ़डीआई  की मंजूरी दे  दी गयी है जैसे भारतीय रेलवे, रक्षा कारखाने, कोयला, पोर्ट एंड डॉक, एयर इंडिया, बैंक, एलआईसी, 76 पीएसयू आदि ।

  • पूंजीपतियों व उनका प्रतिनिधित्व करने वाली  सरकार, कोरोना  वायरस के कारण बढ़े हुए आर्थिक संकट के बोझ को पूरी तरह से कामगार वर्ग पर डालने के लिए आतुर दिखती है, हम सबको इससे लड़ने के लिए एकजुट होना होगा।
  • मज़दूरों के अर्जित लाभ, अधिकार और धन की रक्षा करते हुए हम पूँजीपतियों और सरकारों के ऐसे तुच्छ प्रयासों के विरुद्ध लड़ने के लिए एकजुट होंगे। हम श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करते हैं और उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करने का विरोध करते हैं। मज़दूर वर्ग और मेहनतकश लोगों द्वारा उत्पन्न मुनाफे और धन की रक्षा करने के लिए हम प्रतिबद्ध  हैं।
  • मजदूर वर्ग की एकता और सभी मेहनतकशों की एकता को बाधित करने और उन्हें धर्म, क्षेत्र, नस्ल, जाति, जातीयता और लिंग के आधार पर विभाजित करने के सभी प्रयासों को विफल करने के लिए एकजुट होकर लड़ेंगे।
  • दुनिया के सभी मजदूर एवं मेहनतकश साम्राज्यवाद के हमलों से लड़ने और उसे हराने के लिए एकजुट होंगे  और अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए  अंतरराष्ट्रीय वित्त पूंजी के खिलाफ अपने संघर्ष को आगे बढ़ाएँ।
  • शोषणकारी पूंजीवादी व्यवस्था के खात्मे के संघर्ष के लिए एकजुट हो और नए शोषण मुक्त समाज, समाजिक व्यवस्था कायम करने के लिए एकजुट हों।

(मई दिवस के मौके पर सेंट्रल ट्रेड यूनियनों  INTUC,  AITUC, HMS, CITU,  AIUTUC, TUCC, AICCTU, LPF और  UTUC की ओर से जारी पर्चा।)

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)