मोदी सरकार की पंजाब की घेराबंदी ने कैसे बढ़ाया किसानों का गुस्सा? किसान आंदोलन-4

Farmers protest police barricade

By एस.एस. माहिल

पंजाब की जनता केंद्र सरकार, सत्तारूढ़ दल और कॉरपोरेट पूंजी के खिलाफ जंग कर रही है। यह बहु आयामी संघर्ष है और वह इसे इसकी कीमत भी अदा कर रही है। केंद्र सरकार टकराव की नीति पर है।

वह पंजाब को हर तरह से घेर कर परेशान कर रही है। मोदी सरकार ने जीएसटी में पंजाब को उसका हिस्सा नहीं दिया, ग्रामीण विकास निधि को इस तुच्छ आधार पर रोक दिया है कि पंजाब सरकार ने खर्च का पूरा हिसाब-किताब नहीं दिया है।

यह सही है कि केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह राज्य सरकार से हिसाब-किताब पूछ सकती है, लेकिन इस आधार पर फंड रोकने का अख्तियार उसे नहीं है। केंद्र सरकार का यह काम पूरी तरह से गैर कानूनी और अनैतिक है।

किसान संगठनों द्वारा आंदोलन के दौरान रेल राेकने से आवश्यक वस्तुओं, खासतौर से कोयला और खाद का अभाव हो गया। खाद की आपूर्ति रुक जाने के कारण गेहूं और आलू की बुआई में समस्या उत्पन्न हो गई है।

सरकार ने बिजली की आपूर्ति में बड़े स्तर पर कटौती कर दी है। खरीदे गए धान की की फसल उठाना भी समस्या बन गई। उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति और तैयार माल लेने सब रेल रोको आंदोलन से प्रभावित हो गए।

रेलवे पटरियों पर धरना

समस्या को समझ करके किसान संगठनों ने माल गाड़ियों को नहीं रोकने का फैसला लिया। रेल की पटिरियों से हटकर रेल स्टेशनों पर धरना प्रारंभ किया। लेकिन रेल्वे बोर्ड ने ही माल गाड़ियां चलाने से इंकार कर दिया।

उकका तर्क था कि प्लेटफार्म पर धरने में व्यापक जनता की मौजूदगी सुरक्षा के लिए ख़तरा है। इसके बाद, किसान संगठनों ने प्लेटफार्म भी खाली कर दिए और अपना धरना रेल स्टेशनों के सामने बने पार्कों में स्थानांतरित कर दिया।

लेकिन मोदी सरकार ने कह दिया जब तक किसान संगठन यात्री गाड़ियों को अनुमति नहीं देते, सरकार माल गाड़ियां भी नहीं चलाएगी। अब किसान संगठनों ने दोनों तरह की गाड़ियों के चलने देना मंजूर कर लिया।

केंद्र सरकार का यह रवैया पंजाब के प्रति उसके द्वेष का परिचायक है। मोदी सरकार ने एक अध्यादेश जारी करके फसल के डंठल जलाने पर एक करोड़ रूपए जुर्माना घोषित कर दिया है। यह संघर्षरत किसानों को दंडित करने की मंशा से किया गया है।

रिजर्व बैंक ने कुछ किस्म के बकाया कर्ज को माफ करना तय किया था परंतु अगले ही दिन रिजर्व बैंक ने एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कह दिया, यह सुविधा किसानों के लिए नहीं है।

यह किसानों के प्रति मोदी सरकार के बदला लेने की प्रवृति के अलावा और कुछ नहीं है।

फासीवादी केंद्र सरकार के निशाने पर पंजाब सिर्फ वर्तमान किसान आंदोलन की वजह से ही नहीं है। सरकार के फासिस्ट हमले के विरुद्घ पंजाब जन प्रतिरोध का केंद्र बन गया है।

मोदी का गुस्सा पंजाब पर क्यों?

जम्मू कश्मीर के विशेष राज्य के दर्जे को समाप्त करके उसे दो केंद्र शासित राज्यों के रूप में विखंडित किया गया उस समय कश्मीर की जनता पर इस हमले के विरोध में पंजाब में आठ राजनीतिक दलों और संगठनों का एक मोर्चा बना था।

इस विषय पर इस मोर्चे और अन्य जनसंगठनों ने बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन किए थे। इस मुद्दे पर देश के किसी अन्य हिस्से में इस स्तर पर व्यापक प्रदर्शन नहीं हुए।

इसी तरह सीएए और एनआरसी के विरोध में भी पंजाब में बड़े-बड़े प्रदर्शन तब तक लगातार जारी रहे, जब तक कि लॉकडाउन थोप नहीं दिया गया। इसके बाद कर्फ्यू तोड़कर जन प्रदर्शन होने लगे।

इस सबसे फासिस्टों को समझ में आने लगा कि उनके फासिस्ट हमलों के प्रतिरोध में पंजाब आगे है। इस वजह से वह पंजाब को कुचल देना चाहते हैं।

पंजाब आंदोलन के साथ केंद्र-राज्य संबंध और संघीय ढांचे से जुड़े अन्य मुद्दे भी मुखर हो गए हैं। किसानों के संघर्ष के साथ ही पंजाब विधानसभा के विशेष अधिवेशन में संसद में कृषि क्षेत्र में पारित इन तीन कानूनों को नकारते हुए पंजाब के लिए अलग कानून पारित कर दिया गया है।

राजस्थान, छत्तीसगढ़ विधानसभाएं पहले ही ऐसा कर चुकी हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री के नेतृत्व में पंजाब के विधायकों (अकाली दल और आप के विधायकों को छोड़कर) ने दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पर धरना दिया।

पंजाब की घेराबंदी

माल गाड़ियों को चालू करने, जीएसटी की जमा राशि और ग्रामीण विकास निधि में से पंजाब का हिस्सा दिए जाने की मांगे थीं।

पंजाब के मुख्यमंत्री ने अपनी इन मांगों को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए समय मांगा परंतु समय देने से इंकार कर दिया गया।

इस प्रकार पंजाब की राज्य सरकार और केंद्र सरकार एक-दूसरे के आमने-सामने हैं। यह केंद्र-राज्य संबंधों में अंतर्विरोधों की अभिव्यक्ति है।

भाकपा(माले) न्यू डेमोक्रेसी ने “पंजाब की घेराबंदी और सत्ता के केंद्रीकरण” विषय पर राज्य स्तरीय एक सम्मेलन का आयोजन किया था। सत्ता का केंद्रीकरण फासीवाद में अंतर्निहित है।

देश में जिस रूप में भी संघात्मक व्यवस्था चल रही है, उस पर हमला इस आंदोलन के साथ स्पष्ट उभर कर सामने आ गया है। भारत का संविधान के अंतर्गत संघात्मक एकता के कुछ तत्व समाहित हैं, उनपर हमला हो रहा है।

संविधान के अनुसार कृषि राज्य का विषय है, केंद्र सरकार को कृषि क्षेत्र में कानून बनाने का अख्तियार हासिल नहीं है। इसके बावजूद, ये तीन कानून बनाए गए हैं। यह संविधान में प्रदत्त “संघात्मक ढांचे” की उल्लंघन है। वर्तमान किसान आंदोलन का यह भी एक विषय है। (क्रमशः)

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