‘हमको कुत्तों की तरह भगाया गया दाहोद से, ऐसे ही सलूक किया गया तो हम नहीं लौटेंगे गुजरात’

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लॉकडाउनके 40 दिन बीतने बाद भी प्रवासी मजदूरों अपने घर नहीं जा पाए हैं। प्रशासन से बढ़ती नाराजगी और असंतोष के चलते सोमवार को मजदूर एक बार फिर सड़कों पर उतर आए और घर भेजने की मांग करने लगे। सूरत में पुलिस और मजदूरों के बीच हिंसक झड़प हुई जिसके बाद पुलिस को आंसू गैस का सहारा भी लेना पड़ा। वहीं बेंगलुरु और मुंबई में भी पुलिस और मजदूरों के बीच संघर्ष की स्थिति देखनी पड़ी। सभी मजदूर यूपी, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल वगैरह राज्यों के रहने वाले हैं और घर भेजने की मांग पर अड़े हैं।

मजदूरों को लाठी लेकर गलियों में दौड़ाती रही पुलिस
ये मजदूर शुक्रवार रात को अपने घर के लिए निकले थे लेकिन गुजरात सीमा से वापस लौटाए जाने के चलते नाराज थे। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए 40 आंसू गैस छोड़े और लाठीचार्ज किया। इसके वीडियो सामने आए जिसमें पुलिस लाठी लेकर मजदूरों को गलियों में दौड़ाते हुए नजर आई। इस घटना के बाद 200 लोगों को हिंसा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। आईजी (सूरत रेंज) राजकुमार ने बताया, ‘करीब 3,000 मजदूरों हिंसा में शामिल थे जिनमें से कुछ ने पुलिस पर ऐसिड की बोतलें भी फेंकी।’

घर जाने के लिए जेब में जितना पैसा था… सब दे दिया

वाराणसी के एक टेक्टाइल मजदूर राधेश्याम त्रिपाठी ने कहा कि वह कभी सूरत लौटकर नहीं आएंगे। उन्होंने कहा, ‘हमको कुत्तों की तरह भगाया गया दाहोद से। हमने अपने घर जाने के लिए पूरी पॉकेट मनी खर्च कर दी लेकिन फिर भी हमें प्रताड़ित किया गया और वापस भेज दिया गया। हमारा अपराध सिर्फ इतना है कि हम घर जाना जाहते हैं।’ बिहार के गया निवासी गिरिशंकर मिश्रा कहते हैं, ‘गुजरात में अगर हमारे साथ ऐसे ही सलूक किया गया तो हम वापस नहीं लौटेंगे। पुलिस हमारे साथ आतंकियों की तरह पेश आ रही है।’

दाहोद में मजदूरों को रोक दिया गया था

राधेश्याम और 56 दूसरे मजदूरों को ले जा रही बस को दाहोद चेकपोस्ट पर ही रोक दिया गया। उनकी तरह कई दूसरे मजदूरों भी उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। वलसाड जिले में भी हजारों मजदूरों ने सड़कें जाम कर दी। गुजरात के रेलवे अधिकारियों ने बताया कि सोमवार शाम तक 15,558 यात्रियों के साथ 13 ट्रेनें यूपी और ओडिशा के लिए रवाना हो चुकी हैं जबकि दो ट्रेनें धनबाद और पटना के लिए रवाना होंगी।

बेंगलुरु में पुलिस पर पथराव

इसी तरह बेंगलुरु में भी पुलिस और घर वापस जाने की जिद पर अड़े मजदूरों के बीच संघर्ष देखने को मिला। बेंगलुरु में एक अफवाह फैली कि इंटरनैशनल एग्जिबिशन सेंटर के पास मजदूरों के रुकने के लिए जो कैंप बनाए गए हैं वे क्वारंटीन सुविधा हैं। इससे गुस्साए मजदूर सोमवार कोपुलिस पर पथराव भी किया। इसमें चार पुलिसकर्मी घायल हो गए जबकि कुछ गाड़ियों में भी तोड़फोड़ की गई।

कलेक्ट्रेट ऑफिस के बाहर जमा हो गई भीड़

अहमदाबाद में भी घर जाने को बेताब मजदूर सड़कों पर उतर आए। घर जाने के लिए मजदूरों को अपना रजिस्ट्रेशन करना था जिसके चलते कलेक्ट्रेट ऑफिस में भारी भीड़ जमा हो गई। इन्हें हटाने के लिए बाद में पुलिस फोर्स का सहारा लिया गया। यह हाल तब है कि जब राज्य सरकार का कहना है कि कम से कम 21,500 मजदूरों को घर भेजा जा चुका है।

प्रशासन नहीं समझ रहा मजदूरों का दुख-दर्द

मजदूरों का कहना है कि उनके पास पैसे नहीं हैं, राशन नहीं है, ऐसे में वे अपने घर जाना चाहते हैं लेकिन प्रशासन उनकी बेचैनी को समझने में पूरी तरह फेल साबित हुआ है। कई मजदूरों ने आरोप लगाया कि फॉर्म में जरा सी भी चूक होने पर उन्हें लौटा दिया गया और नया फॉर्म भरने को कहा गया।

फॉर्म जमा करने के लिए घंटों लाइन में खड़े रहे

मुंबई में काम करने वाले यूपी के बलरामपुर निवासी मजदूर मोहम्मद हनीफ ने बचाया कि उन्हें साकीनाका में काजूपड़ा पुलिस थाने में 5 घंटे इंतजार करना पड़ा। उन्होंने बताया, ‘वहां काफी भीड़ थी और पुलिस हमारे पैर पर लाठी भांज रही थी। हमसे कहा गया कि आज फॉर्म नहीं जमा होंगे।’ पुणे में भी वारजे पुलिस थाने में फॉर्म भरने के लिए 500 से 600 लोग इकट्ठा हो गए जिससे पूरी सड़क जाम हो गई। मजदूरों को हटाने के लिए पुलिस ने हल्का बल प्रयोग किया।

एसपी ऑफिस के बाहर प्रदर्शन
तमिलनाडु के तिरुपुर में घर जाने के लिए करीब 100 मजदूरों की भीड़ स्टेशन में जमा हो गई लेकिन पुलिस ने उन्हें पहले खुद को रजिस्टर करने के लिए कैंप में भेज दिया। वेल्लोर में घर जाने के लिए 200 प्रवासी मजदूरों ने एसपी ऑफिस के बाहर प्रदर्शन किया और पास की मांग की।

(एनबीटी से साभार।)

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