प्रदूषण बंदी में 5000 रु. की मदद नहीं, न्यूनतम मज़दूरी के बराबर मिले भत्ता, निर्माण मज़दूरों ने सौंपा ज्ञापन

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दिल्ली में बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने निर्माण मजदूरों की विभिन्न मांगों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल के समक्ष प्रदर्शन किया और प्रदूषण की वजह से निर्माण कार्यों पर पाबंदी के दौरान न्यूनतम वेतन देने की मांग की।

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (ऐक्टू) से संबद्ध बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन ने कहा कि कि प्रदूषण रोकने के नाम पर हर साल होनेवाली ‘कामबन्दी’ से लाखों की संख्या में निर्माण मजदूर प्रभावित होते हैं। आर्थिक-सामजिक सुरक्षा के नाम पर इन मजदूरों के पास कुछ भी नहीं होता – ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा इस सम्बन्ध में कोई भी नीति नहीं बनाने के चलते मजदूरों की हालत दिनोंदिन और खराब हो रही है।

मंगलवार को नरेला, जहांगीरपुरी, संत नगर – बुराड़ी, वजीराबाद, वजीरपुर, तिमारपुर, मुस्तफाबाद, करावल नगर, गाँधी नगर, झिलमिल, संगम विहार, ओखला, भाठी माइंस, नजफगढ़ समेत कई इलाकों से निर्माण मजदूरों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

सुश्रुत ट्रामा सेंटर से मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय की ओर जुलूस निकाला गया लेकिन दिल्ली पुलिस ने मुख्यमंत्री कैंप कार्यालय तक का रास्ता बंद कर दिया गया था जिसके बाद सड़क पर ही सभा हुई।

प्रदर्शन में शामिल सीपीआई माले के राज्य सचिव रवि राय ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री उन राज्यों में जहां चुनाव होने वाले हैं, तमाम झूठे-सच्चे वादे कर रहे हैं, पर दिल्ली के मजदूरों के विषय में सोचने का समय उनके पास नहीं है। दिल्ली सरकार केंद्र द्वारा लाए जा रहे मजदूर विरोधी श्रम कोड के सवाल पर भी चुप है। यह बहुत निंदनीय है।

बिल्डिंग वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष राजीव जो पेशे से राज मिस्त्री हैं ने कहा कि प्रदूषण की समस्या कोई नई समस्या नहीं है – हर साल प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर निर्माण कार्य रोका जा रहा है। इस कारण जहां एक तरफ पैसेवाले लोगों को विशेष अंतर नहीं पड़ रहा वही दूसरी तरफ दिहाड़ी मजदूर भूख-बेरोज़गारी से परेशान हो रहे हैं। मजदूर प्रदूषण के दुष्प्रभावों को भलीभांति समझते हैं। दिल्ली के मजदूर ही दिल्ली के सबसे प्रदूषित इलाकों में रहने के लिए मजबूर हैं, पर खाली पेट दिन काटना उनके लिए संभव नहीं है। दिहाड़ी पर काम करनेवाले मजदूर हर रोज़ काम करने के पश्चात ही अपना पेट भर पाते हैं।

उन्होंने मांग रखी कि दिल्ली सरकार को चाहिए की सभी पंजीकृत और गैर-पंजीकृत निर्माण मजदूरों के लिए न्यूनतम मजदूरी के बराबर आर्थिक सहायता/ बेरोज़गारी भत्ता प्रदान करे। दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में घोषित 5000 हज़ार रूपए की आर्थिक सहायता काफी कम है और सभी मजदूरों तक नहीं पहुँच पा रही है।

सरकार न पैसे खर्च कर रही न नीति बना रही

ऐक्टू के दिल्ली राज्य अध्यक्ष विनोद कुमार सिंह गौतम ने कहा कि दिल्ली सरकार अपनी जेब से एक भी पैसा मजदूरों को नहीं दे रही। पांच हज़ार रूपए की आर्थिक सहायता – जो कि दिल्ली में घोषित न्यूनतम वेतन से कई गुना कम है – निर्माण मजदूरों के कल्याण बोर्ड के पास उपलब्ध फंड से दी जा रही है।

उन्होंने कहा कि देश की राजधानी दिल्ली में समय-समय पर होनेवाली ‘कामबन्दी’ को देखते हुए सरकार के पास मजदूरों की आजीविका के लिए कोई नीति होनी चाहिए थी, परन्तु ऐसा नहीं है। ये बेहद दुःख की बात है। दिल्ली सरकार को अपने बजट का कुछ हिस्सा ऐसी परिस्थितियों में मजदूर -कल्याण हेतु अलग करना चाहिए। आज जब पेट्रोल से लेकर घरेलु गैस तक के दाम आसमान छू रहे हैं, टमाटर जैसी सब्जियां आम जनता की पहुँच से बाहर हो गई हैं – तब दिल्ली और केंद्र की सरकारें केवल विज्ञापन देने में व्यस्त हैं।

दिल्ली के विभिन्न लेबर चौकों से लगभग 5000 श्रमिकों के हस्ताक्षर के साथ सौंपा गया मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल को ज्ञापन : प्रदर्शन के पश्चात लगभग 5000 निर्माण श्रमिकों के हस्ताक्षर के साथ एक ज्ञापन दिल्ली के मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल को सौंपा गया।

मांगें –
  • कामबन्दी के दौरान दिल्ली सरकार ने अपने द्वारा ही तय किये गए न्यूनतम वेतन से कई गुना कम ‘वित्तीय सहायता राशि’ की घोषणा की है। सरकार इस बात से अच्छी तरह से अवगत है कि न्यूनतम मजदूरी से कम में गुज़ारा करना किसी भी मजदूर के लिए असंभव है। अतः हम मांग करते हैं कि सभी पंजीकृत एवं गैर पंजीकृत निर्माण मजदूरों को कम से कम दिल्ली में लागू न्यूनतम मजदूरी के बराबर वित्तीय सहायता राशि/ बेरोज़गारी भत्ता दिया जाए। जिन निर्माण मजदूरों का पंजीकरण निर्माण मजदूरों के लिए बने वेलफेयर बोर्ड में नहीं हुआ है, उन्हें भी सहायता प्रदान की जाए और उनके पंजीकरण की प्रक्रिया को तेज़ किया जाए।
  • चूंकि प्रदूषण की समस्या के निदान हेतु हर साल निर्माण कार्य पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ रहा है, अतः इस कामबन्दी से मजदूरों को होनेवाले नुकसान के विषय में दिल्ली सरकार, ट्रेड यूनियनों से वार्ता कर नीति बनाए।
  • निर्माण मजदूरों की आजीविका की गारंटी के लिए दिल्ली सरकार अपने बजट का कम-से-कम 5 फीसदी हिस्सा निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए अलग से आवंटित करे। अगर ज़रूरी हो तो दिल्ली सरकार अपने प्रचार-होर्डिंग में खर्च हो रहे पैसे निर्माण मजदूरों के कल्याण में लगाए।
  • निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए बने बोर्ड को सशक्त करने हेतु सभी सरकारी-गैर सरकारी संस्थानों/ व्यक्तियों/ कंपनियों से बकाये ‘सेस’ की तत्काल वसूली की जाए।
  • जिस प्रकार से किसानों की मांगों और ऐतिहासिक आन्दोलन के दबाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री ने केंद्र द्वारा लाए गए ‘कृषि कानूनों’ के प्रति अपना विरोध प्रकट किया उसी प्रकार वो मजदूर-विरोधी ‘लेबर कोड’ के खिलाफ भी अपना विरोध व्यक्त करें।

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