‘आज का समय पत्रकारिता के लिए सबसे बदतर बन चुका है’

Meeting for demand of free journalist Rupesh kumar singh

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह को पिछले दिनों पुलिस ने गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया है। उनकी रिहाई के लिए पूरे देश में मांग हो रही है।

मंगलवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के आर्ट्स फैकल्टी गेट पर रूपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी के विरोध में एक जनसभा आयोजित की गई थी।

आयोजकों का कहना है कि इसे यूनिवर्सिटी और पुलिस प्रशासन ने रोकने की पूरी कोशिश की लेकिन ये जनसभा पूरी हुई।

पत्रकार मंदीप पुनिया ने कहा कि ‘कोई सा भी युग पत्रकारिता के लिए स्वर्ण युग नहीं रहा है, लेकिन आज का समय पत्रकारिता के लिए सबसे बदतर स्थिति में है।’

उन्होंने कहा कि ‘पत्रकारों की उनकी सामाजिक और धार्मिक पहचान के आधार पर भी उन्हें टारगेट किया जा रहा है। आज के समय मे सरकार ही नहीं बल्कि हिन्दू कट्टरपंथियों की तरफ से भी उन्हें टारगेट किया जा रहा है।’

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साथ में हिंदी विभाग के प्रोफेसर अपूर्वानंद ने कहा कि ‘मीडिया के ऊपर दमन इतना बढ़ गया है कि भारत की अपनी भाषाओं में पत्रकारिता करना लगभग नामुमकनि हो गया है।’

उन्होंने कहा कि अंग्रेजी भाषा में पत्रकारिता करने वालों से कहीं ज्यादा भारत की अपनी क्षेत्रीय भाषा (हिंदी,बंगाली,मलयालम, उर्दू, एवं अन्य क्षेत्रीय भाषाओं) में पत्रकारिता करना कठिन है।

दिल्ली यूनिवर्सिटी में राजनीतिक विभाग में पढ़ाने वाले प्रोफेसर सरोज गिरी ने कहा कि रुपेश कुमार सिंह की पत्रकारिता की वजह से उन्हें टारगेट किया गया। वो जिन मुद्दों को उठा रहे थे उसी की उन्हें सजा दी गई।

उन्होंने ये भी कहा कि हम सब रूपेश की रिहाई और आदिवासी इलाकों में बढ़ रहे सैन्यकरण और कारपोरेटीकरण को रोकने के लिये आगे की योजना कैसे बनाया जाय इस पर बात करें।

इस सभा में डूटा की पूर्व प्रेसिडेंट नंदिता नारायण भी मौजूद रहीं।

apoorvanand at delhi university

कुछ नारों के साथ इस सभा को खत्म किया गया जिसमें भीमा कोरेगांव के झूठे केसों में फंसाए पत्रकारों और प्रोफेसर्स की रिहाई की आवाज बुलंद की गई।

आदिवासियों के ऊपर चल रहे हमले ऑपरेशन समाधान, प्रहार को बंद करने की मांग की गई।

उल्लेखनीय है कि पत्रकार रुपेश कुमार सिंह ने जेल जाने से पहले झारखंड के औद्योगिक इलाके की रिपोर्टिंग की थी। वो जनपक्षधर पत्रकारिता करते रहे हैं।

जनपक्षधर पत्रकारों की फेहरिश्त में “द कश्मीरवाला “के एडिटर ‘ फहद शाह, ‘ कश्मीर नैरेटर” के ‘आसिफ सुल्तान,”केरल के” ‘ सिद्दकी कप्पन’ जैसे अनगिनत जनपक्ष पत्रकार आज जेलों में हैं।

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