श्रीलंका के बाद बांग्लादेश की जनता सड़कों पर, पेट्रोल, बिजली के दाम बेतहाशा बढ़ाए जाने पर फूटा आक्रोश

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कुछ दिन पहले ही श्रीलंका में आर्थिक संकट से मची तबाही और व्यापक जनआन्दोलन के बीच अब बांगलादेश में महंगाई के मुद्दे पर जोरदार प्रदर्शन शुरू हो गया है। ऐसा पहली बार हुआ है कि यहां पेट्रोल-डीजल के दाम 51% तक बढ़ा दिए गए हैं।

शेख हसीना सरकार द्वारा 6 अगस्त की रात को बांग्लादेश में डीज़ल और पेट्रोल ईंधन की कीमतों में लगभग 52 प्रतिशत की वृद्धि के बाद राजधानी ढाका सहित कई शहरों में हजारों जनता ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने विभिन्न हिस्सों में ईंधन स्टेशनों को घेर लिया।

बांग्लादेश में लागू हुई नई कीमतों के अनुसार एक लीटर ऑक्टेन की कीमत अब 135 टका हो गई है, जो 89 टका की पिछली दर से 51.7 प्रतिशत अधिक है। बांग्लादेश में अब एक लीटर पेट्रोल की कीमत अब 130 टका है, यानी कि बीती रात से इसमें 44 टका या फिर 51.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वहीं डीज़ल की कीमतें 42% बढ़कर 114 टका प्रति लीटर हो गयी हैँ।

बांग्लादेश में पेट्रोलियम पदार्थों में होने वाली वृद्धि के बाद पेट्रोल पम्पों पर पेट्रोल-डीज़ल लेने वालों की भारी भीड़ जमा हो गयी वहीं दूसरी तरफ जनता सड़कों पर उतर आयी है। ढ़ेरो जगह प्रदर्शन हिंसक रूप ले रहे है।

उल्लेखनीय है कि बांगलादेश में महंगाई दर पिछले 9 महीने से लगातार 6 फीसदी से ऊपर बनी हुई है। जुलाई में बांग्लादेश में महंगाई दर 7.48 फीसदी तक पहुंच गई।

जब श्रीलंका में इस तरह के हालात बनने लगे थे तब से ही इस बात की आशंका व्यक्त की जा रही थी कि बांग्लादेश की भी स्थिति ठीक नहीं है। उसके हालात भी बिगड़ने वाले हैं। लेकिन बांग्लादेश की प्रधानमंत्री एक तरफ इस बात से इंकार करती रहीं लेकिन दूसरी तरफ वे आई एम एफ और विश्व बैंक से कर्ज़ा भी मांगती रहीं।

लेकिन जब बांग्लादेश के हालात पेट्रोल-डीज़ल के दामों में बढ़ोत्तरी के बाद बिगड़ने लगे हैँ तो सरकार ने कीमतों में बढ़ोतरी के लिए रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को जिम्मेदार ठहरा दिया। इस तरह सरकार संकट के असल जिम्मेदार कारकों और अपनी काली करतूतों पर पर्दा डालने में जुट गई।

यह सही है कि कोरोना काल में अर्थव्यवस्था खराब हुई थी। यह भी एक कारक है कि रूस-उक्रैन युद्ध की वजह से तेल की कीमतें बढी हैं। लेकिन बस इन्हें ही मुख्य कारण बता देना गलत है।

दरअसल बांग्लादेश में लम्बे समय से जारी देशी व बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हित में जनविरोधी-मुनाफाकेंद्रित आर्थिक नीतियां इस संकट का मुख्य कारण हैं और मौजूदा संकट के लिए जिम्मेदार है।

गौरतलब है कि बांगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आगे के तीन सालों में 4.5 अरब डॉलर का कर्ज चाहती हैं। अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के अलावा बांग्लादेश विश्व के और भी कई वित्तीय संस्थानों से 2.5-3 अरब डॉलर कर्ज ले चुका है। बीते तीन वर्षों में बांग्लादेश ने 5.8 अरब डॉलर का कर्ज लिया है।

वित्तीय वर्ष 2021 के ख़त्म होने के समय बांग्लादेश पर 131 अरब डॉलर का कर्ज था। जाहीर है कि लिए गये क़र्ज़ का एक हिस्सा पूर्व में लिए गये क़र्ज़ की ब्याज अदायगी में ही चला जाता है।

उधर विश्व आर्थिक संकट के मौजूद दौर में प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट शुरू किये हैं। कर्ज लेकर या भारी निवेश कर गिरती अर्थव्यवस्था को रोकने की कवायद भारी पड़ता गया।

प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए भारी मात्रा में कर्ज लिया गया। प्रोजेक्ट के समय इनकी अनुमानित निर्माण लागत से काफी अधिक खर्चा होने लगा, प्रोजेक्ट के लम्बा खिंचने लगा। इसका एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार की भी भेंट चढ़ गया। इसने अर्थव्यवस्था का संकट और बढ़ा दिया।

इसी के साथ मुद्रा भंडार के घटने में पूंजी के पलायन ने भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

लगातार बढ़ते व्यापार घाटे को रोकने के लिए सरकार ने विदेशी मुद्रा के बाहर जाने पर सख्त प्रतिबंध लगाने शुरु कर दिये। बिजली में कटौती और ईंधन में राशनिंग शुरू हुई। महंगाई, बेकारी, भ्र्ष्टाचार निरन्तर बढ़ता गया। अर्थव्यवस्था कमजोर होती गई।

इस बीच अंतराष्ट्रीय ब्रांड की वस्त्र निर्माता कंपनियों ने अपने आदेश कम करने शुरु कर दिये हैं। जाहीर है कि देश की अर्थव्यवस्था पर इसका बुरा असर पड़ेगा, क्योंकि आज वहाँ की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा रेडीमेड वस्त्र उद्योग से आता है।

कुल मिलकर श्रीलंका हो या बांगलादेश, नवउदारवादी नीतियों की चपेट में और कर्ज की मकड़जाल में उलझकर पूरी अर्थव्यवस्था तबाह हो रही है। संकट गहरा हो रहा है, जिसका खामियाजा असल में जनता को झेलना पड़ रहा है और जनता के प्रतिरोध का नया दौर शुरू हो रहा है।

(मेहनतकश से साभार)

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