मनरेगा में पिछले 4 साल में हुई 935 करोड़ रुपये की हेराफेरी: रिपोर्ट

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत विभिन्न योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाता है।

अंग्रेजी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ग्रामीण विकास मंत्रालय की प्रबंधन सूचना प्रणाली से ये आंकड़े प्राप्त किए हैं।

आंकड़ों के मुताबिक अभी तक केवल 12.5 करोड़ रुपये यानी 1.34 प्रतिशत की ही भरपाई हो पाई है। ये डाटा साल 2017-18 से साल 2020-21 तक का है।

साल 2017-18 में ये आंकड़े वेबसाइट पर अपलोड होने शुरू हुए थे। तब से अब तक एसएयू ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 2.65 लाख ग्राम पंचायतों में पिछले चार सालों में कम से कम एक बार ऑडिट किया है।

केंद्र सरकार ने 2017-18 में मनरेगा के लिए 55,659.93 करोड़ रुपये जारी किए थे और तब से इस राशि में बढ़ोतरी होती रही है। साल 2020-21 में इस योजना पर खर्च 1,10,355.27 करोड़ रुपये पहुंच गया है।

इस योजना पर होने वाला कुल खर्च 2017-18 के 63,649.48 करोड़ रुपयों से बढ़कर 2020-21 में 1,11,405.3 करोड़ रुपये हो गया है।

इस ऑडिट में कई वित्तीय गड़बड़ियां पाई गई हैं जिसमें रिश्वत, फर्जी लोगों और सामान के लिए फर्जी विक्रेताओं को ऊंचे दामों पर भुगतान करना शामिल है।

तमिलनाडु में सबसे ज्यादा 245 करोड़ रुपये की वित्तीय गड़बड़ियां पाई गई हैं। इसके अलावा कर्नाटक, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और झारखंड में गड़बड़ियां मिली हैं।

वहीं, राजस्थान, केरल, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लद्दाख, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, दादर और नागर, दमन और दीव में मनरेगा में कोई वित्तीय गड़बड़ी नहीं मिली है।

केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव नागेंद्र नाथ सिन्हा ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को हाल ही में पत्र लिखकर पूछा है कि राज्य ग्रामीण विकास विभाग में इतनी कम वापसी क्यों हुई है।

उन्होंने अखबार से कहा, “हां, हमने सभी राज्यों को लिखा है। इस पक्ष पर ध्यान ना देना एक मसला है। दूसरा ये की अनियमितताओं के लिए जिम्मेदार व्यक्ति का दोष निर्धारण और एसओपी (स्टैंडर्ड ओपरेटिंग प्रोसीजर) के बिना ये निर्धारित करना आसाना नहीं है।”

(साभार-बीबीसी)

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