श्रम कानून में बदलाव के बाद आपकी छुट्टियों और काम के घंटों पर क्या असर पड़ेगा, जानें

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श्रम कानूनों में संशोधन के लिए लाए गए चार लेबर कोड के तहत कथित रूप से वर्कर की बेहतरी के लिए वेतन, पेंशन, ग्रैचुइटी, मजदूर के स्वास्थ, सुरक्षा और काम करने की परिस्थितियों के साथ साथ, छुट्टियों और काम करने की समय सीमा में भी बदलाव किए गए हैं।

फिलहाल पेड छुट्टियां और काम के घंटे केन्द्रीय स्तर पर Factories Act 1948 के हिसाब से और राज्य स्तर पर Shops and Establishments Act के हिसाब से तय होते हैं जो कि हर तरह के उद्योग और कंपनी पर लागू होते हैं।

नए लेबर कोड के तहत, रोजाना काम के घंटों की सीमा 12 घंटे और हफ्ते में 48 घंटे कर दिए हैं।

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यह बदलाव दो-धारी तलवार की तरह हैं जहां एक तरफ हफ्ते में सिर्फ चार दिन काम या 4-day work week से काम से वर्कर को फायदा होगा, वहीं एक दिन में अत्याधिक काम करने की आशंका भी बढ़ जाती है।

साथ ही साथ ओवरटाइम की समय सीमा को बढ़ा कर 50 से 125 घंटे कर दी गई है, जिससे वीकेंड यानि शनिवार और रविवार को ज्यादा देर तक काम करने का रास्ता खुल गया है।

इस तरह वर्कर के पास ज्यादा मजदूरी कमाने का विकल्प तो रहता है पर साथ ही साथ हफ्ते में पूरे सात दिन काम करने का बोझ भी बढ़ जाएगा।

लंबी देरी तक काम करने से वर्करों के स्वास्थ्य पर ज्यादा असर पड़ने की आशंका है।

सालाना छुट्टी का प्रावधान

नए श्रम कानून में छुट्टी की पात्रता के लिए काम की जाने जरूरी अवधि को कम कर दिया है।

अब वर्कर नई नौकरी जॉइन करने पर 240 दिन तक करने के बजाय सिर्फ 180 दिन तक काम करने पर ही छुट्टी के लिए पात्र होंगे।

छुट्टी की मात्रा में कोई बदलाव नहीं है, यानि कि हर 20 दिन के काम पर एक दिन की छुट्टी।

उसी तरह, बची छुट्टियों को आगे कैरी फॉरवर्ड करने की सीमा में भी कोई बदलाव नहीं किए गए हैं और अधिकतम 30 छुट्टियां ही कैरी फॉरवर्ड की जा सकती हैं।

हालांकि छुट्टियों का प्रावधान, जो कि अब तक सिर्फ मैनुफैकचरिंग यूनिटों तक सीमित था, अब सभी क्षेत्रों में लागू होगा, जिससे कई मजदूरों को इसका फायदा मिलेगा।

अगर साल के अंत में बची हुई छुट्टियां कैरी फॉरवर्ड की सीमा से ज्यादा हैं, तो मालिक वर्कर को अतिरिक्त दिनों की मजदूरी देने को बाध्य है।

अब देखना ये होगा कि राज्य सरकारें किस तरह से इन बदलावों पर किस तरह से अमल करती है।

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