ग़रीबी, कर्ज और साहूकारों के अत्याचार से तंग था समस्तीपुर का परिवार, बच्चों समेत लगाई सामूहिक फांसी

samastipur family commits suicide

ग़रीबी और बेरोज़गारी की मार किस कदर अब आम जनता को प्रभावित कर रही है उसकी बानगी बिहार में पिछले दो सप्ताह में मिलने लगी है।

राज्य के समस्तीपुर जिले में एक गरीब परिवार के पांच सदस्यों ने अपने घर में 5 जून को सामूहिक फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। बताया जा रहा है कि कर्ज, गरीबी और सूदखोरों के अत्याचार से परिवार परेशान था।

दो सप्ताह पहले  बिहार के ही बिहार के ही वैशाली जिले में एक परिवार के पाँच लोगों ने ज़हर खा कर आत्महत्या कर ली थी। इसका भी कारण भी गरीबी बताई गई है।

दिल दहला देने वाली इन घटनाओं को लेकर राज्य में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही सामने नहीं आई है।

जहां राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे बहुत ही दुखद और दर्दनाक कहा है वहीं विपक्ष के नेता और राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा है, “यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना अत्यंत दर्दनाक, हृदय विदारक, दुःखद और कथित डबल इंजन सरकार के बड़बोलेपन पर करारा तमाचा एवं काला धब्बा है।”

CPI-ML Liberation के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य के मुताबिक पांच लोगों के इस परिवार में अकेले कमाने वाले मनोज झा ऑटो चलाकर और सड़क किनारे एक अस्थायी दुकान से तंबाकू बेचकर गुजारा करते थे।

भट्टाचार्य ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि परिवार में उनके माता-पिता, पत्नी और दो छोटे बेटे, सत्यम और शिवम शामिल थे, जिनकी उम्र केवल सात और आठ साल थी।

वे अपनी दो बेटियों की शादी कर चुके थे – बड़ी बेटी की 2017 में और छोटी बेटी की इस साल की शुरुआत में।

परिवार ने कथित तौर पर निजी साहूकारों और माइक्रोफाइनेंस समूहों से कर्ज लिया था लेकिन इस बीच लॉकडाउन ने अपना असर डाला और कमाई में भारी गिरावट से परिवार संकट में आ गया।

बड़े दामाद गोविंद के अनुसार, जो कोविड-19 से पहले गुजरात में काम करते थे और अब पटना में ऑटो चलाते हैं, कर्ज राशि केवल तीन लाख रुपये या उससे कुछ ही अधिक थी, लेकिन साहूकार उससे लगभग कई गुना वसूलना चाह रहे थे।

इस प्रताड़ना का सामना न कर पाने के कारण मनोज के पिता रतिकांत झा ने कुछ महीने पहले आत्महत्या कर ली थी।

लेकिन उत्पीड़न बढ़ता रहा और असहनीय हो गया।  एक साहूकार ने परिवार की जमीनें जब्त कर लीं और यहां तक ​​कि बर्तन और गैस सिलेंडर भी जब्त कर लिया।

परिवार ने स्थानीय पुलिस थाने का दौरा किया, लेकिन उसे मना कर दिया गया।

स्थानीय पंचायत ने भी बात नहीं मानी और साहूकारों को रोकने और उत्पीड़न को रोकने से इनकार कर दिया।

इसके ऊपर, परिवार कथित तौर पर चल रहे राशन कार्ड रद्द करने के अभियान का शिकार हो गया।

पांच जून की सुबह एक छोटे से कमरे में परिवार के पांच सदस्यों को छत से लटकते हुए देखा।

गोविंद और उनकी पत्नी को संदेह है कि यह हत्या का मामला है, जबकि स्थानीय मीडिया रिपोर्ट इसे सामूहिक आत्महत्या मानती है।

डीएम ने मौके पर जाकर परिजनों से बात करने की जहमत नहीं उठाई।  सीएम ने सिर्फ बयान जारी किया है।

घर पर एक नजर आपको बता देती है कि प्रधानमंत्री आवास योजना और नीतीश कुमार के ‘सात निश्चय’ (सात गारंटी) के बड़े-बड़े दावे महज एक खोखली और क्रूर बयानबाजी है।

वास्तविकता यह है कि सूदखोरी का नया संकट और लोग अत्यधिक गरीबी और विनाश की ओर बढ़ रहे हैं।  वास्तविकता यह है कि बड़े पैमाने पर राशन कार्डों को रद्द करना और बुनियादी खाद्य अधिकारों से वंचित करना।

उस परिवार के लिए न्याय से हमारा क्या मतलब है जिसने अपनी सारी जमीन, आजीविका और अब जीवन खो दिया है?

माले महासचिव ने लिखा है कि लगभग दस साल पहले हमने जो सर्वेक्षण किया था, उससे बिहार में गरीब परिवारों पर बढ़ते कर्ज के बोझ का संकेत मिलता था।

महामारी, लॉकडाउन और बढ़ती कीमतों और गिरती आय ने केवल बोझ को बढ़ाया है।

मोदी सरकार समय-समय पर बड़े ऋणों को माफ कर देती है, जबकि विजय माल्या और नीरव मोदी हमारे बैंकों को लूटते रहते हैं और विदेशी क्षेत्रों में सुरक्षित पनाहगाहों में भाग जाते हैं।

कर्ज में डूबी आत्महत्या और किसानों और मेहनतकशों की मौत हमें तस्वीर का दूसरा पहलू दिखाती है।

भारत के जरुरतमन्द लोगों को एक तत्काल पैकेज की आवश्यकता है जिसके तहत सभी छोटे ऋणों को रद्द करना, सूदखोरी पर पूर्ण अंकुश, निजी साहूकारों द्वारा गरीबों की लूट, और जरूरतमंदों के लिए Universal Basic Income (UBI) और खाद्य सहायता का प्रावधान होना चाहिए।

(This story is supported by Notes to Academy)

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