लेबर कोड लागू करने की कवायद तेज, 25 को लेबर कांफ्रेंस में मोदी भी जाएंगे

मज़दूर विरोधी चार श्रम संहितों (लेबर कोड्स) को लेकर मीडिया में लंबे अरसे से इसे शानदार बताने संबंधी बहुत-सी ख़बरें चल रही हैं, जिनमें एक हफ्ते में चार दिन के कामकाज के बाद तीन दिन के अवकाश की चर्चा भी शामिल रही है।

एनडीटीवी इंडिया में प्रकाशित खबर के अनुसार अब श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने स्पष्ट किया है कि चारों नए लेबर कोड में चार दिन का कामकाजी सप्ताह बनाने को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं है।

मोदी सरकार मज़दूरों को बंधुआ बनाने की तैयारी पूरी कर दी है। लंबे संघर्षों से हासिल 44 श्रम कानूनों को खत्म कर के चार श्रम संहितों (लेबर कोड्स) में बांधकर लागू करने की आजमाइश में है।

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मुख्यधारा की गोदी मीडिया मजदूरों के लिए इसे बेहतरीन तोहफा बताने में पूरा जोर लगा चुकी है।

मालिकों के हित में जुटी मोदी सरकार मज़दूरों को बंधुआ बनने वाली ये चारों श्रम संहिताएं जल्द-से-जल्द लागू करने में जुटी है। इसी कवायद में 25 अगस्त, 2022 से तिरुपति में श्रम मंत्रियों की दो-दिवसीय कॉन्फ्रेंस होने जा रही है।

देश के सभी राज्यों के श्रम मंत्रियों की इस कॉन्फ्रेंस के एजेंडे में सभी चारों लेबर कोडों को लेकर राज्य सरकारों द्वारा नियमों को ड्राफ्ट किए जाने पर चर्चा शामिल है। श्रम मंत्रालय के सूत्रों ने जानकारी दी है कि श्रम मंत्रियों की दो-दिवसीय कॉन्फ्रेंस का वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करेंगे।

तमाम विरोधों के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार इन संहिताओं की नियमावलियाँ पारित कर चुकी है। केंद्र सरकार जानती है कि तमाम अगर-मगर के बावजूद सभी राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेश सभी चार श्रम संहिताओं पर नियमों को बनने की प्रक्रिया पूरी कर लेंगे, ताकि उन्हें देशभर में लागू किया जा सके।

श्रम मंत्रियों की दो-दिवसीय कॉन्फ्रेंस इसी कवायद का हिस्सा है।

श्रम मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, 31 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने वेतन संहिता को लेकर नियमों को ड्राफ्ट कर लिया है। सामाजिक सुरक्षा कोड को लेकर 27 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने नियम ड्राफ्ट कर लिए हैं।

औद्योगिक संबंध संहिता पर 25 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने नियम ड्राफ्ट कर लिए हैं, तथा व्यवसायगत सुरक्षा संहिता पर 24 राज्य तथा केंद्रशासित प्रदेश नियम तैयार कर चुके हैं।

बंधुआ बनाएंगी नई श्रम संहिताएँ

अलग-अलग श्रम संहिताओं में मज़दूर, औद्योगिक संस्थान एवं कार्य दिवस की बातें अलग-अलग हैं। कर्मकार की परिभाषा को बदल दिया गया है और अब कर्मचारी और श्रमिक दो भागों में विभाजित करके पूर्वर्ती कामगार की परिभाषा को ही नष्ट कर दिया गया है।

कर्मचारी की परिभाषा में प्रबंधकों को शामिल किया गया है, जबकि मज़दूर की परिभाषा से प्रशिक्षुओं को बाहर कर दिया गया है।

सबसे घातक मुद्दों में इस कानून द्वारा स्थाई रोजगार समाप्त होगा और फिक्स्ड टर्म इम्पालाइमेन्ट (नियत अवधि रोजगार) का होगा, जैसा सेना में ‘अग्निवीर’ की घोषणा। इसी तर्ज पर बैंकों से लेकर केंद्र व तमाम राज्य सरकारें नियत अवधि नौकरी को तेजी से लागू कर रहे हैं।

इन संहिताओं द्वारा छाँटनी-बंदी आसान होगी, यूनियन बनाना, आंदोलन और समझौता लगभग असंभव होगा; श्रम न्यायालय खत्म होंगे और श्रम अधिकारी फैसिलिटेटर होंगे, जिनका काम सलाह देना होगा।

कार्यदिवस के बारे में अलग-अलग संहिताओं के माध्यम से काफी भ्रम की स्थिति बनाई गई है। सरकारों को असीमित शक्तियां प्रदान कर दी गई हैं और संहिताओं की रचना इस तरह की गई हैं, जिसका फायदा हर हाल में मालिक को ही मिले।

इन संहिताओं से निजी कंपनियों के साथ रेलवे, खानों, तेल क्षेत्र, प्रमुख बंदरगाहों, हवाई परिवहन सेवा, दूरसंचार, बैंकिंग और बीमा कंपनी, निगम व प्राधिकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम या सहायक कंपनियां सहित सभी प्रकार के नौकरी पेशा व श्रमजीवी पत्रकार प्रभावित होंगे।

यह संहिता असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों के एक बड़े हिस्से जैसे- छोटी खदानें, होटल व छोटे भोजनालय, मशीनों की मरम्मत, निर्माण, ईंटभट्टे, हथकरघे, कालीन या कारपेट निर्माण और संगठित क्षेत्रों में अनौपचारिक तौर पर काम कर रहे श्रमिकों, जिसमें नए व उभरते क्षेत्रों जैसे आईटी और आईटीईएस, डिजिटल प्लेटफॉर्म (जिसमें ईकॉमर्स समेत कई क्षेत्र शामिल हैं) को छोड़ देता है।

द्वितीय श्रम आयोग की रिपोर्ट पर आधारित

दरअसल, श्रम क़ानूनी अधिकारों को ख़त्म करने का दौर 1991 में कथित आर्थिक सुधारों के साथ चल रहा है। अटल बिहारी बाजपेयी सरकार के दौर में श्रम क़ानूनों को पंगु बनाने के लिए राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) रिपोर्ट आई थी, तब व्यापक विरोध के कारण यह अमली रूप नहीं ले सका था। लेकिन बाजपेयी से मनमोहन सरकार के दौर तक धीरे-धीरे यह लागू होता रहा।

इसे एक झटके से ख़त्म करने का काम मोदी सरकार ने किया। नई श्रम संहिताएं उसी श्रम आयोग की ख़तरनाक़ सिफ़ारिशों पर आधरित हैं। नए श्रम कानून अपने को सुरक्षित समझ रहे 8 फीसदी मज़दूर आबादी को भी असंगठित क्षेत्र में धकेलने की मुकम्मल तैयारी है।

‘हायर एण्ड फायर‘ यानी मनमर्जी काम पर रखना-निकालना

अपने पहले कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने ख़ुद को ‘मज़दूर नम्बर वन’ बताया और ‘श्रमेव जयते’ जैसे जुमले की आड़ में मज़दूरों के रहे-सहे अधिकारों पर डाका डालने का काम तेज किया। देशी-विदेशी पूँजीपतियों के हित में मोदी सरकार व्यापार की सुगमता यानी “ईज़ ऑफ डूइंग बिजनेस” पर केंद्रित है, और उसी के अनुरूप दौड़ लगा रही है।

इसके मूल में है- ‘हायर एण्ड फॉयर’ यानी देशी-विदेशी कंपनियों को रखने-निकालने की खुली छूट के साथ बेहद सस्ते दाम पर मजदूर उपलब्ध कराना।

(साभार मेहनतकश)

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