भारत में कार्यस्थल हादसों में सैकड़ों मज़दूर गवां देते हैं जान, जानिए क्या कहते हैं आंकड़े

भारत में काम के दौरन मज़दूरों की मौत के आंकड़े हैरान करने वाले हैं। फ़ैक्ट्रिय़ों में होने वाली दुर्घटनाओं में हर साल सैंकड़ों मज़दूरों की मौत हो जाती है और हज़ारों मज़दूर विकलांग हो जाते हैं।

संसद में साल 2021 में सरकार की दी गई जानकारी के मुताबिक पांच सालों में कम से कम 6500 मज़दूर फ़ैक्ट्रियों, पोर्ट, माइनों और कन्स्ट्रक्शन साइटों पर मारे गए हैं।

हालांकि इस क्षेत्र में काम करने वाले समाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यह संख्या इससे बहुत ज़्यादा हो सकती है, क्योंकि कई मामले रिपोर्ट नहीं किए जाते या उनका कोई रिकॉर्ड नहीं होता है।

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ग्लोबल वर्कर्स यूनियन इंडस्ट्रीअल के आंकड़ों के मुताबिक उत्पादन, केमिकल और कन्स्ट्रक्शन के क्षेत्रों में सबसे ज़्यादा मौत की घटनाएं सामने आईं हैं। साल 2021 में हर महीने मैन्यूफ़ैक्चरिंग इंडस्ट्री में 162 से ज़्यादा मज़दूरों की मौत हुई।

हाल के सालों में कई ख़बरों के मुताबिक “छोटी बिना रजिस्ट्रेशन वाली फ़ैक्ट्रियों” में सबसे ज़्यादा दुर्घटनाएं हुई हैं। हादसों के शिकार होने वाले मज़दूर आमतौर पर ग़रीब परिवार के लोग होते हैं जिनके पास अदालतों में केस लड़ने के पैसे नहीं होते है।

सिर्फ़ दिल्ली में 245 मौतें

दिल्ली पुलिस के मुताबिक पिछले पांच सालों में सिर्फ़ दिल्ली में 600 फ़ैक्ट्रियों का रजिस्ट्रेशन किया गया है। इनमें 245 मज़दूरों की मौत हुई। अलग-अलग मामलों में 84 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।

फैक्टर में काम के दौरान हादसे के कारण विकलांग हुए मज़दूरों का अभी तक कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है।

लेकिन एक गै़र-सरकारी संस्था सेफ़ इन इंडिया फ़ाउडेशन ने उत्तरी भारत मुख्य रूप से गाड़ियों के पार्ट्स बनाने वाली कंपनिया का हाल ही में सर्वे किया। इसके मुताबिर साल 2016 से 2022 के बीच 3955 गंभीर दुर्घटनाएं हुईं हैं। इनमें से 70 प्रतिशत मामलों में किसी मज़दूर की उंगली या हाथ कट गए थे।

सेफ़ इन इंडिया फ़ाउडेशन संस्था के संस्थापक संदीप सचदेव का कहना है कि कई राज्य काम के दौरान हो रही
दुर्घटनाओं की जानकारी नहीं देते। जिसके कारण सही मायनों में आकड़ों को इक्कठा कर पाना मुश्किल है।

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गौरतलब है कि फैक्ट्रियों में सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। कार्यस्थल पर सुरक्षा के उपायों को मैनेजमेंट के ऊपर छोड़ दिया गया है।

मोदी सरकार जिन 44 श्रम कानूनों को खत्म कर लेबर कोड ला रही है उसमें सुरक्षा के नियमों को मालिकों के ऊपर छोड़ दिया गया है। उसमें ये भी नियम बना दिया गया है कि जो सुरक्षा मानकों के पालन को लेकर मालिक के दावे को सरकार मान लेगी, उसकी समय समय पर जांच पड़ताल नहीं की जाएगी।

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भी कार्यस्थल पर सुरक्षा के अंतरराष्ट्री मानक तय करने को लेकर भारत सरकार पर दबाव बनाया है लेकिन पूंजीपतियों के नुमाइंदे के तौर पर काम करने वाली मोदी सरकार इसमें और खुल्लम खुल्ला छूट देने जा रही है।

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