मैनेजमेंट की जबरदस्ती का एक और मजदूर शिकार, रिको बावल में ठेका मजदूर की दर्दनाक मौत

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रेवाड़ी ज़िले के बावल औद्योगिक इलाके में स्थित रिको कंपनी में एक मज़दूर की ड्यूटी के दौरान दर्दनाक मौत हो गई।

परिजनों ने कंपनी में सुरक्षा नियमों की अनदेखी और घोर लापरवाही का आरोप लगाया है। पुलिस मौके पर पहुंच गई है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है।

सतेंद्र सिंह के नाम के ठेका मजदूर की मौत क्रेन से गिरी करीब 5-7 टन की डाई के नीचे दब जाने से हुई। वो सोमवार की रात ड्यूटी गए थे।

सूचना पाकर मौके पर पहुंचे एक रिश्तेदार जनवेश कुमार ने वर्कर्स यूनिटी को फोन करके बताया कि कंपनी की घनघोर लापरवाही के कारण ये मौत हुई है।

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रोडक्शन मैनेजर ने सत्येंद्र सिंह को क्रेन से डाई लाने को कहा। लेकिन सतेंद्र सिंह ने हुक खराब होने के कारण दुर्घटना की आशंका जताई। फिर भी उन्हें डांट डपट कर काम करने का दबाव बनाया गया।

सत्येंद्र को डरा धमका कर कहा गया कि उसे डाई लानी ही होगी। जब क्रेन के हुक में डाई को फंसाया गया तो उसमें लॉक था नहीं। इसलिए जब कुछ उंचाई पर पहुंचने के बाद ही हुक स्लिप हो गया, क्योंकि उसमें लॉक नहीं लग पा रहा था।

स्लिप होने के बाद डाई सीधे सत्येंद्र सिंह के ऊपर गिरी जिसमें दबकर वहीं के वहीं उनकी मौत हो गई।

परिजनों और मजदूरों का आरोप है कि मजदूर की मौत मौके पर ही हो गई थी फिर बावल के पुष्पांजलि अस्पताल में उसे ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे पहले से ही मृत घोषित कर दिया।

जनवेश कुमार का कहना है कि पुलिस को शिकायत किए जाने के बाद भी अभी तक एफआईआर तक दर्ज नहीं हो पाई। पुष्पांजलि अस्पताल से पुलिस ने शव को सिविल अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। फिर वहां से सबको थाने चलने को कहा।

जनवेश कुमार ने बताया कि सत्येंद्र बीते सात आठ महीने से कंपनी में कैजुअल मजदूर के रूप में काम कर रहे थे। बीते एक महीने पहले वो लंबी छुट्टी ली थी और जब दोबारा आया उसे नई ज्वाइनिंग दी गई। सत्येंद्र सिंह को करीब 20,000 रुपये सैलरी मिलती थी।

परिजन ने बताया कि कंपनी में करीब 1000 से अधिक मजदूर काम करते हैं जिसमें अधिकांश कैजुअल और ठेका मजदूर हैं। परमानेंट वर्करों की संख्या काफी कम है और यहां यूनियन भी नहीं है।

यहां पिछले साल जून 2021 में मशीन पर काम करते हुए एक अन्य कैजुअल मजदूर की मशीन में आ जाने से मौके पर ही मौत हो गई थी। मजदूरों ने बताया कि उस मजदूर के परिजनों को मुआवजा मिला था।

जनवेश ने आरोप लगाया कि इतना दर्दनाक हादसा होने के बावजूद न तो मैनेजमेंट और ना ही पुलिस हमदर्दी दिखा रही है। मैनेजमेंट के दो लोग आए थे, लेकिन वो भी कुछ स्पष्ट बात नहीं कर रहे हैं।

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उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी में वर्करों के साथ भयंकर अत्याचार होता है, ड्यूटी का कोई हिसाब किताब नहीं है और वर्करों के ऊपर बहुत प्रेशर डाला जाता है। इस प्रेशर में सतेंद्र सिंह ने अपनी जान गंवा दी।

खबर लिखे जाने तक मैनेजमेंट और मजदूरों के बीच बातचीत चल रही है।

गौरतलब है कि बीते दो साल से औद्योगिक दुर्घटनाओं में भारी इजाफा हो रहा है। फैक्ट्रियों में सुरक्षा के मानकों का पालन नहीं किया जा रहा है। कार्यस्थल पर सुरक्षा के उपायों को मैनेजमेंट के ऊपर छोड़ दिया गया है। फैक्ट्री जांच के लिए अब लेबर अधिकारी बिल्कुल भी नहीं जाते हैं।

मोदी सरकार जिन 44 श्रम कानूनों को खत्म कर लेबर कोड ला रही है उसमें सुरक्षा के नियमों को मालिकों के ऊपर छोड़ दिया गया है। उसमें ये भी नियम बना दिया गया है कि जो सुरक्षा मानकों के पालन को लेकर मालिक के दावे को सरकार मान लेगी, उसकी समय समय पर जांच पड़ताल नहीं की जाएगी।

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इसी तरह हाजिरी रजिस्टर भी चेक नहीं किया जाएगा। ट्रेड यूनियनों का आरोप है कि इससे मजदूरों की जान और सस्ती हो जाएगी और मैनेजमेंट बच कर निकल जाएगा।

असल में ये सब मालिकों के मुनाफे को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने भी कार्यस्थल पर सुरक्षा के अंतरराष्ट्री मानक तय करने को लेकर भारत सरकार पर दबाव बनाया है लेकिन पूंजीपतियों के नुमाइंदे के तौर पर काम करने वाली मोदी सरकार इसमें और खुल्लम खुल्ला छूट देने जा रही है।

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