ओवरटाइम पर एकमत क्यों नहीं हैं चीन के वर्कर?

इसी साल टेक्नोलॉजी सेक्टर में एक हाई प्रोफाइल वर्कर की मौत ने चीन में काम करने की जगहों पर ओवरटाइम कल्चर पर विवाद खडा हो गया था।

हालांकि दूसरी ओर इस देश का मज़दूर वर्ग ओवरटाइम के खिलाफ नहीं है या यह कहा जाए तो ज्यादा सही होगा कि वह इसका पक्षधर है।

2018 में पेश किए गए एकेडमीशियन झुआंग जियाची के पेपर से भी इसकी तस्दीक होती है। इसके मुताबिक, वाइट कॉलर जॉब वाले 46 फीसदी लोगों ने काम ज्यादा होने की शिकायत की जबकि केवल 35.5 फीसदी मजदूर वर्ग ने यह बात कही।

यह हालत तब है, जब मजदूर वर्ग से आमतौर पर ज्यादा घंटे ओवरटाइम कराया जाता है।

झुआंग ने पाया कि वाइट कॉलर जॉब वालों में अपने साप्ताहिक काम के घंटे में ओवरटाइम के समय को देखने की टेंडेंसी है, जबकि उनके साप्ताहिक घंटे 40 घंटे के ही है।

दूसरी ओर ब्लू कॉलर जॉब वाले यानी मज़दूर इसको नजरअंदाज करते हैं कि उन्हें कितना ओवरटाइम करना पड़ा।

भ्रांतियां

वह कहती हैं कि काम के साप्ताहिक घंटों को लेकर दुनिया भर की तरह चीन में भ्रांतियां हैं। वाइट कॉलर जॉब वाले चूंकि ज्यादा शिक्षित हैं इसलिए वे चीन के मज़दूर कानूनों को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।

इस मसले का दूसरा पहलू दोनों तरह के जॉब वालों के वेतन और इस तरह से उनकी आर्थिक स्थिति से जुडा हैं।

ब्लू कॉलर जॉब वाले यानी मजदूरों की नियुक्ति के विज्ञापनों में ओवरटाइम वर्क को न केवल हाईलाइट किया जाता है बल्कि इसकी गारंटी भी दी जाती है।

जैसे पिछले साल का एक विज्ञापन देखिए, पहले तीन महीने की बेसिक सैलरी 1900 युआन यानी 290 डॉलर प्रति माह और ओवरटाइम मिलाकर कुल सैलरी लगभग 2800 से 3500 युआन, ओवरटाइम हर महीने साठ घंटे से कम नहीं होगा।

इस विज्ञापन से दो चीजें मोटे तौर पर समझ सकते हैं। पहले तीन महीने की बेसिक सैलरी वह है जो उस प्रांत ने मजदूरों के लिए तय कर रखी है। इतने में किसी मजदूर का गुजारा मुश्किल है।

ऐसे में ओवरटाइम करके ही मजदूर अपनी सैलरी को बढा सकता है, जो कई बार बेसिक सैलरी की लगभग दोगुनी हो जाती है।

इसी विज्ञापन के दूसरे पहलू को देखें, तो चूंकि बेसिक सैलरी कम है इसलिए विज्ञापनदाता के लिए भी ओवरटाइम एक सेलिंग प्वाइंट है, जिससे वह मजदूरों को लुभा सकता है।

कई फैक्ट्रियां मजदूरों के बीच में कम चर्चित इसलिए हैं क्योंकि वह मजदूरों के लिए ओवरटाइम के घंटे कम रखती हैं ।

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