बैंक कर्मियों की हड़ताल से निजीकरण रुक जाएगा? 

By मुकेश असीम

बैंक कर्मी निजीकरण के खिलाफ दो दिन की हडताल पर हैं। कल बीमा कर्मी भी इसी सवाल पर हडताल करेंगे। उसके साथ पूरी एकजुटता और समर्थन है।

पर सवाल है कि अगर संघर्ष विजयी हो और सरकार दो बैंकों के निजीकरण का फैसला वापस भी ले ले क्या तब निजीकरण रूक जायेगा?
नहीं।

सरकारी बैंकों का निजीकरण हुए बगैर भी बैंकिंग व्यवस्था का निजीकरण तेजी से जारी है। मार्च 2010 में 74% जमाराशि तथा 75% ऋण व्यवसाय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पास था।

सितंबर 2020 में ये घटकर क्रमशः 62% तथा 57% ही रह गए अर्थात दस वर्षों में 12% जमा और 18% ऋण कारोबार का निजीकरण हो गया।

पेमेंट्स, क्रेडिट कार्ड, बिल्स, ट्रेडिंग, सेटलमेंट, आदि बैंकिंग क्षेत्र को देखें तो निजीकरण और भी अधिक हुआ है। यह प्रक्रिया निरंतर और तेज हो रही है। बीमा क्षेत्र एवं अन्य सभी क्षेत्रों की स्थिति भी यही है। इसका अर्थ है कि दो सरकारी बैंक या एक बीमा कंपनी निजी क्षेत्र को बिकने का काम टल भी जाये तब भी टेलीकॉम या एयरलाइंस की तरह निजीकरण जारी रहेगा।

तब क्या निजीकरण के खिलाफ लडाई को निराश हताश होकर छोड दिया जाये। नहीं। जरूरत है कि लडाई के लक्ष्य और रणनीति में परिवर्तन किया जाये।

इस वक्त किसी भी क्षेत्र में निजीकरण से सिर्फ खुद को बचाने की लडाई में जीत हासिल करना नामुमकिन है जब तक संपूर्ण अर्थव्यवस्था या कहिये उत्पादन व्यवस्था में निजी मालिकाने के विरुद्ध खडा नहीं हुआ जाता।

आज सेवाओं सहित अधिकांश उत्पादन पहले ही सामाजिक हो चुका है। पूरा काम और प्रबंधन उसमें वेतनभोगी कर्मी ही चलाते हैं। मालिकों की एकमात्र भूमिका राज्य की शक्ति के बल पर इनमें होने वाले उत्पादन के पूरे सरप्लस अर्थात मुनाफे पर कब्जा करने के अतिरिक्त कुछ नहीं।

अंबानी अडाणी टाटा कोई भी उत्पादन में परजीवी से अधिक कोई भूमिका अदा नहीं करता। अभी जो उत्पादन सार्वजनिक क्षेत्र में हो रहा है उसके निजीकरण के बाद उसमें भी यही होगा।

आज कोई भी अपने क्षेत्र में निजीकरण से तब तक नहीं लड सकता जब तक वह सामाजिक उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में निजीकरण का हिमायती है।

अर्थात निजीकरण का विरोध करना है तो इन परजीवियों की निजी संपत्ति वाली संपूर्ण पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था का ही विरोध करना है, उत्पादन के साधनों पर सामूहिक मालिकाने की व्यवस्था के लिए लडना है। इससे कम पर, इकन्नी दुअन्नी वाली आंशिक माँगों के सहारे, इस संघर्ष में कामयाबी का कोई उपाय नहीं।

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