कॉंटिनेंटल इंजंस भिवाड़ी में 26 घंटे की भूख हड़ताल के बाद बोनस देने पर तैयार हुआ मैनेजमेंट

Bhiwadi continental engines strike

राजस्थान के भिवाड़ी में स्थित कॉंटिनेंटल इंजंस में बोनस को लेकर हुई 26 घंटे की भूख हड़ताल के बाद आखिरकार 12 नवंबर को कंपनी प्रबंधन को झुकना पड़ा और बकाया बोनस तुरंत भुगतान करने की घोषणा करनी पड़ी।

11 नवंबर को दोपहर दो बजे दोनों प्लांटों के वर्कर कंपनी के अंदर ही भूख हड़ताल पर बैठ गए थे। समझौता होने के बाद 12 अक्टूबर को शाम साढ़े चार बजे भूख हड़ताल समाप्त हुई।

समझौते के अनुसार, प्रबंधन 15 प्रतिशत के हिसाब से बोनस देने के लिए तैयार हो गया है और पांच प्रतिशत बोनस मार्च 2021 के पहले देने का वादा किया है।

हालांकि 2014 से पहले और बाद की ज्वाइनिंग वाले वर्करों को समान बोनस देने की मांग पर कोई समझौता नहीं हो पाया। कंपनी 2014 से पहले ज्वाइनिंग वाले वर्करों को 16,800 रुपये जबकि उसके बाद के वर्करों को 9,800 रुपये देती है।

एक वर्कर ने वर्कर्स यूनिटी को फ़ोन पर बताया कि बीते जुलाई से ही वेतन कटौती को लेकर विवाद चल रहा था जिसमें एक वर्कर ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी और उसे गंभीर चोट आई थी। इसके बाद 18 जुलाई को श्रम अधिकारी मध्यस्थता में समझौता हुआ।

वर्करों का आरोप है कि “10 प्रतिशत वेतन कटौती के विरोध में हुई हड़ताल के बाद जो समझौता हुआ था प्रबंधन उससे भी मुकर गया फिर भी वर्कर शांति से काम करते रहे। लेकिन जब बोनस में भी कटौती की घोषणा हुई तो वर्करों का धैर्य जवाब दे गया।”

Bhiwadi continental engines
वो नोटिस, जिसके बाद भड़का वर्करों का ग़ुस्सा।

कंपनी का फ़्लिप फ़्लॉप

कंपनी ने 11 नवंबर को सुबह एक नोटिस लगाया जिसमें कहा गया था कि कंपनी अपनी लिमिट से आगे जाकर 15% बोनस देने की घोषणा की थी लेकिन अब वो 8.33% ही देगी। साथ ही पहले की घोषणा को रद्द कर दिया गया। इस नोटिस में एक किस्म की धमकी भी देकर कहा गया था कि ‘जिसे ये स्वीकार हो वो ले और जिन्हें ये स्वीकार न हो वो प्रस्थान करें यानी कंपनी छोड़ दें।’

कंपनी प्रबंधन के इस रवैया का वर्करों पर उलटा असर हुआ और अपनी एकता दिखाते हुए सभी वर्कर हड़ताल में शामिल हो गए। आखिर प्रबंधन 20 प्रतिशत बोनस दो किश्तों में देने पर राज़ी हुआ।

हालांकि लॉकडाउन के बाद से जो वेतन कटौती हो रही थी, उसे सितम्बर में रोक दिया गया और अक्टूबर महीने से वर्करों को पूरी सैलरी मिल रही है। जो कटौती हुई थी, उसे भी देने पर बात चल रही है।

एक अन्य वर्कर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि, “मैनेजमेंट परमानेंट वर्करों को निकाल कर नए वर्करों को ठेकेदार के मार्फ़त भर्ती कर रहा है और दो महीने के अंदर ही उनका इंक्रीमेंट भी कर दिया, जबकि परमानेंट वर्करों की वेतन वृद्धि की मांग पर दो साल से कोई सुनवाई नहीं हो रही है।”

इस भूख हड़ताल में वर्करों ने बोनस देने और वेतन कटौती रोकने के साथ साथ ट्रेनिंग पूरी कर चुके ऑपरेटरों को परमानेंट करने, डिमांड नोटिस पर बात करने, छंटनी रोकने की मांग रखी थी। लेकिन बोनस देने और छंटनी न करने की बात मानते हुए बाकी मांगों पर दीपावली बाद बात करने की प्रबंधन ने हामी भरी है।

Bhiwadi continental Agreement
26 घंटे के अंदर कंपनी मैनेजमेंट का रुख़ बदल गया।

कठिन दिन आने वाले हैं

कॉंटिनेंटल इंजिंस में लंबे समय से वर्करों और प्रबंधन के बीच तनाव चल रहा है। जुलाई में जब वेतन कटौती हुई, उसका ज़िक्र सैलरी स्लिप में भी नहीं किया गया। वर्करों ने मैनेजमेंट से इस बावत पूछा तब भी कोई जवाब नहीं मिला, जिसके बाद वर्कर हड़ताल पर चले गए थे।

वर्करों ने अपने जुझारू संघर्ष से बोनस का अधिकार हासिल कर लिया लेकिन मोदी सरकार ने कोरोना के समय संसद सत्र बुलाकर जिन मज़दूर विरोधी तीन लेबर कोड को ज़बरदस्ती पारित किया, उसमें बोनस एक्ट ही ख़त्म कर दिया गया है।

29 श्रम क़ानूनों को ख़त्म कर जिन तीन लेबर कोड को सरकार लेकर आई है उसे 1 अप्रैल 2021 से लागू किया जाएगा, जिसके बाद कई ऐसे अधिकार जिन्हें मज़दूर लड़ भिड़ कर हासिल कर भी लेते थे, उसकी क़ानूनी वैधानिकता ही ख़त्म करने की साज़िश रची जा चुकी है।

ये मज़दूरों और मज़दूर यूनियनों के लिए सोचने का विषय है कि आने वाले समय में संघर्ष की रणनीति क्या होगी क्योंकि एक कंपनी के अंदर संघर्ष कर अपने अधिकारों को हासिल करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा।

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