सत्यम ऑटो में 12-12 घंटे काम, सिंगल ओवर टाइम, छुट्टी में कटौती बना मज़दूरों के गुस्से का कारण

satyam auto manesar

हरियाणा के मानेसर स्थित सत्यम ऑटो में भले ही मज़दूर 24 घंटे की हड़ताल के बाद काम पर वापस लौट गए हैं और उनके बीच वेतन समझौते पर बात शुरू हो गई हो लेकिन लॉकडाउ के बाद उभरे श्रमिक असंतोष की कई वजहें सामने आ गई हैं।

मज़दूरों का आरोप है कि कंपनी पिछले दो सालों से वेतन समझौते को लटकाए हुए है और जानबूझ कर किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहती।

सत्यम ऑटो वर्कर्स यूनियन के प्रधान इंद्रजीत ने बताया कि “मज़दूर पिछले 2 सालों से अपने वेतन समझौते संबंधी मामले को लेकर प्रबंधन पर शांतिपूर्ण दबाव बना रहे हैं। लेकिन कंपनी जुलाई, 2019 से ही मज़दूरों की मांगों को लटकाए हुए है।”

कंपनी में फिलहाल 426 परमानेंट और 1400-1500 कैजुअल वर्कर काम करते हैं जो अपनी मांगों को लेकर बीते 22 फरवरी से भूख हड़ताल (लंच बहिष्कार) पर थे। इसके बावजूद भी प्रबंधन ने मज़दूरों से बातचीत की कोई पेशकश नहीं की।

उन्होंने बताया कि अपने सभी मांगों की जानकारी उन्होंने श्रम विभाग को भी दी है लेकिन उनकी तरफ से भी किसी तरह की कोई कारवाई नहीं की गई है।

इंद्रजीत का कहना है कि “कंपनी खुद को घाटे में बताकर मज़दूरों को गुलाम बनाने पर उतारु हैं। सैलरी समझौता नहीं किया जा रहा हैं। कैजुअल वर्कर्स के दिन के तीन शिफ्ट को बदल कर दो शिफ्ट में कर दिया गया है, उनसे 12-12 घंटे काम लिया जा रहा हैं।”

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मैनेजमेंट पर उत्पीड़न का आरोप

एक मज़दूर ने बताया कि ‘हमारे बाथरुम जाने तक पर प्रबंधन के लोग बाहर का रास्ता दिखाने की धमकी देते हैं। हमारी छुट्टीयां काटी जा रही हैं, अटेंडेंस बोनस खत्म किये जा रहे हैं।’

मज़दूर यूनियन के एक अन्य सदस्य ने कहा, “ऑटो सेक्टर को लगातार घाटे में दिखा कर मज़दूरों का शोषण किया जा रहा है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं हैं। लॉकडाउन के बाद कंपनियों में रिकार्ड उत्पादन हुआ है। एक मज़दूर से बेहतर ये कोई नहीं बता सकता कि कंपनी घाटे में है या नहीं।”

लॉकडाउन के समय से ही कैजुअल वर्करों को मनमाना तरीक़े से निकाला जाता रहा है। उन पर तमाम बंदिशें थोपी जा रही हैं। यूनियन के महासचिव उमेद सिंह ने कहा कि बात बात पर नोटिस थमाने से मज़दूरों पर दबाव बढ़ गया है। वो 12 घंटे काम कर रहे हैं लेकिन उनके साथ कंपनी का व्यवहार ठीक नहीं है।

यूनियन के प्रधान इंद्रजीत कहते हैं कि ‘पहले कंपनी में तीन शिफ़्ट चलती थीं, लेकिन मैनेजमेंट ने दबाव डालकर इसे दो शिफ़्ट में बदल दिया। अब परमानेंट वर्करों को केवल एक शिफ़्ट में बुलाया जा रहा है और कैजुअल वर्करों से 12-12 घंटे की शिफ़्ट कराई जा रही है।  कैजुअल वर्करों को भी न छुट्टी दी जा रही है, न डबल ओवरटाइम दिया जा रहा है, न गेट पास दिया जा रहा है। ऊपर प्रोडक्शन बढ़ाने का दबाव बनाया जा रहा है।’

इंद्रजीत ने आरोप लगाया कि वर्करों को पहले जो सुविधाएं दी जा रही थीं, वो भी बंद कर दी गईं और धमका धमका कर उनसे काम कराया जा रहा है।

लॉकडाउन के दौरान काम बंदी के चलते घाटा होने के बहाने पर इंद्रजीत कहते हैं कि सभी जानते हैं कि लॉकडाउन में भी अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन करने वाले सेक्टरों में से ऑटो सेक्टर आता है। लॉकडाउन खुलते ही गाड़ियों की रिकॉर्ड बिक्री दर्ज की गई फिर भी कंपनी कह रही है कि उसे घाटा हो रहा है।

वो कहते हैं कि अव्वल तो कंपनी में घाटा नहीं हुआ, अगर हुआ हो तो उसकी वसूली मज़दूरों से करना कहां का इंसाफ़ है। वो कहते हैं कि कोरोना महामारी के चलते वेतन समझौता भी टल गया। मज़दूर 20 महीने से इंतजार कर रहे थे कि वेतन समझौते समेत कई पेंडिंग मुद्दों पर बात होगी लेकिन मैनेजमेंट वार्ता को राज़ी ही नहीं हो रहा था।

डिमांड नोटिस यहां, शिकायत चंडीगढ़

सत्यम ऑटो यूनियन के मज़दूरों को समर्थन देने पहुंचे एचएमएस के नेता जसपाल राणा ने कहा कि कंपनियों में प्रोडक्शन बढ़ाए जाने के बाद भी, कर्मचारियों के साथ उनका रवैया अच्छा नहीं है। कंपनी ने प्रोडक्शन बढ़ा दिए, जिसे मज़दूरों ने पूरा किया है।

वो कहते हैं, “मैनेजमेंट ने जितना उत्पादन मांगा, मज़दूरों ने पूरा किया। जहां जो नहीं बन सकता था, वो भी बनाया। इसके बावजूद जब वेतन समझौते की बात आती है तो कहा जाता है कि जो मर्जी हो करो, हमारी स्थिति नहीं है। ऐसी सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में वार्ता न हो तो वर्कर करे तो क्या करे। हड़ताल उसके पास अंतिम विकल्प बचता है।’

जसपाल राणा का कहना है कि सत्यम ऑटो की तरह ही जिन जिन कंपनियों में वेतन समझौता रुका हुआ है, वहां वहां हड़ताल होने की पूरी संभावना है। वो हरियाणा के ही बावल औद्योगिक क्षेत्र में कीहिन फ़ी का उदाहरण देते हैं, जहां पिछले 17 दिन से महिला मज़दूर रात दिन कंपनी गेट के सामने धरना लगाए हुए हैं लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला।

वो कहते हैं कि मैनेजमेंट कोरोना का पूरा फायदा उठाने पर उतारू है। हालत ये हो गई है कि डिमांड नोटिस प्लांट में दिया गया है और मैनेजमेंट वर्करों की शिकायत चंडीगढ़ में करके आता है। इससे भी बात नहीं बनती है तो पुलिस में एफ़आईआर दर्ज कराता है। तरह तरह दबाव बनाने की कोशिश होती है। यूनियन बॉडी के सदस्यों का ट्रांसफ़र, निलंबन, निष्कासन जैसे सारे हथकंडे मैनेजमेंट अपनाता है।

बेल सोनिका यूनियन के महासचिव जसवीर सिंह बताते हैं कि कीहिन फ़ी में जब हड़ताल हुई तो उनकी यूनियन समर्थन देने पहुंची। जब वापस लौटी तो दूसरे दिन उनकी कंपनी में उन्हें नोटिस धमा दिया गया और पूछा गया कि बावल की कंपनी में वो क्यों गए थे? ये अनुशासनहीनता है।

वो पूछते हैं कि ‘अगर यूनियन प्रतिनिधि दूसरी कंपनियों में समर्थन देने नहीं जाएंगे तो वो क्या करेंगे, किसलिए यूनियन में चुन कर प्रतिनिधि बनाए गए हैं?’

सुज़ुकी बाइक वर्कर्स यूनियन के प्रेसिडेंट अमित पाड्ढा भी सत्यम ऑटो के मज़दूरों के समर्थन में कंपनी पहुंचे थे। वो कहते हैं कि ‘होंडा कंपनी में भी जबरदस्ती वीआरएस दिया जा रहा है। अभी तक चार सौ लोगों को वीआरएस दिया जा चुका है, जैसी जानकारी मिली है। लेकिन इसमें अधिकांश स्टाफ़ के लोग शामिल हैं।’

अमित का कहना है कि पूरे औद्योगिक क्षेत्र में कंपनियों का यही रवैया बन गया है। अब लड़ाई अकेले अकेले नहीं लड़ी जा सकती, जबतक इलाक़े के स्तर पर मज़दूर एकता का परचम नहीं बुलंद किया जाता।

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