आईफ़ोन बनाने वाले फॉक्सकान वर्करों का गुस्सा क्यों फूटा?

फॉक्सकान टेक्नोलॉजी ग्रुप की सहायक कंपनी भारत एफआईएच (FIH) में काम करने वाली लगभग 3,000 महिला मज़दूरों ने चेन्नई के पास स्थित श्रीपेरम्बदूर विशेष औद्योगिक क्षेत्र में 17 दिसंबर, 2021 की मध्यरात्रि को चेन्नई-बेंगलुरु नेशनल हाईवे को जाम कर दिया और ये प्रदर्शन अगले दिन तक चलता रहा।

महिला वर्करों का आरोप था कि ‘कंपनी के हॉस्टल की कैंटीन में घटिया खाना खाने से आठ महिला श्रमिकों की मौत हो गई है और सैकड़ों की तादाद में बीमारों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है लेकिन मैनेजमेंट इस पूरे मामले को छिपाने में लगा हुआ है।’

सोशल मीडिया पर लोगों ने आरोप लगाया कि कंपनी इस पूरे मामले को दबाने में लगी हुई थी, जिसके बाद वर्करों का आक्रोश फूट पड़ा। मौत की ख़बर के अफवाह होने की बात प्रशासन ने कही लेकिन महिला वर्करों को भरोसा नहीं हुआ।

असल में फॉक्सकान (Foxconn) एप्पल का फ़ोन (iPhone) असेंबल करती है और श्रम कानूनों और नियमों का उल्लंघन करने में यह दुनिया भर में कुख्यात है।

फॉक्सकान टेक्नोलॉजी ग्रुप की सहायक कंपनी इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग,  हाई प्रिसीज़न इंडस्ट्री कंपनी लिमिटेड और भारत एफआईएच(FIH) के नाम से कारोबार कर रही है, जो 2016 से चेन्नई के बाहरी इलाके में तिरुवल्लूर ज़िले के पुथुचतिराम गांव में स्थापित है।

यह कंपनी भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए एप्पल के मोबाइल फ़ोन बनाती है। कंपनी कथित तौर पर 12,000 रुपये प्रति माह पर सात ठेकेदारों या एजेंसियों के माध्यम से हज़ारों वर्करों को रोज़गार देती है।

रायटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस कंपनी में कुल 17000 के लगभग वर्कर काम करते हैं, जिनमें अधिकांश लड़कियां हैं जो तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों से आती हैं। इन्हें करीब आधे दर्जन हॉस्टल में रखा गया है।

जब यह प्रदर्शन फूटा तो चेन्नई के कई सामाजिक कार्यकर्ता, यूनियन के नेता, स्थानीय पत्रकार घटना स्थल पर पहुंच गए। इसी इलाके में चेन्नई की ऑटो इंडस्ट्री भी है और वहां की यूनियन ने भी इन महिलाओं को अपना समर्थन दिया।

Foxconn food poisoning

मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ का पोस्टर ब्वॉय बने तमिलनाडु  प्रशासन को यह मंजूर नहीं था कि एप्पल जैसे वैश्विक मोबाइल फ़ोन ब्रांड में श्रमिक असंतोष की ख़बर बाहर जाए इसलिए उसने ताबड़तोड़ गिरफ़्तारियां करनी शुरू कर दीं।

तिरुवल्लुर जिला पुलिस की एक विशेष टीम ने 19 दिसम्बर को सट्टाई दुरई मुरुगन उर्फ मुरुगन को गिरफ्तार किया, जो तमिलर काची (NTK) के सदस्य हैं। उनकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने प्रदर्शनकारी महिला वर्करों का समर्थन करने की कोशिश की। उन्हें दूसरे दिन ही 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।

तिरुवल्लुर पुलिस ने मुरुगन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, महामारी रोग अधिनियम और आपदा प्रबंधन अधिनियम की आठ धाराओं के तहत मामला दर्ज किया।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि आरोपी को, पूनमल्ली तहसीलदार शंकर द्वारा सोशल मीडिया पर झूठी सूचना फैलाने के लिए की गई एक शिकायत के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। सूचना में कहा गया था कि फॉक्सकान के 9 वर्करों की मौत तिरुवल्लूर फैक्टरी के हॉस्टल में दिए गए ख़राब भोजन की वज़ह से हुई थी। इसके बाद, कंपनी की लगभग 2,000 महिला कर्मचारियों ने 17 दिसंबर (शुक्रवार) आधी रात को चेन्नई-बेंगलुरु राजमार्ग को बंद कर विरोध प्रदर्शन किया था।

द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, “अधिकारियों का कहना था कि 256 महिला कर्मचारी बीमार हो गईं और सरकारी अस्पताल में उनका इलाज किया गया। हास्टल में काम करने वाले पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। 256 वर्करों में से 97 को आउट पेशेंट के रूप में माना गया, 155 को भर्ती किया गया और दो दिनों के भीतर उन्हें भी छुट्टी दे दी गई। पुलिस ने यह भी कहा कि चार वर्करों की हालत ज्यादा खराब थी और उनका इलाज चला।”

लेकिन पुलिस और मैनेजमेंट ने तब स्थिति साफ़ की जब हंगामा हुआ और रोड जाम कर दिया गया, उससे पहले वो वर्करों की आवाज़ दबाने में ही लगे रहे।

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प्रशासन ने बताया कि 15 दिसम्बर को फूड प्वाइज़निंग से 159 वर्कर बीमार हुए थे। यहां तक कि स्थानीय प्रशासन के आला अधिकारियों ने बयान जारी कर कहा कि मौत की ख़बर अफवाह थी। कथित बीमार एक लड़की को प्रशासन ढूंढ कर ले आया जिसने प्रदर्शनकारी महिलाओं को शांत करने के लिए अपनी बात भी रखी। (ऊपर वीडियो)

असल में मैनेजमेंट ने इन वर्करों के बारे में पहले कोई बात नहीं बताई इसलिए अफवाह फैलने का मौका मिला और विरोध शुरू हो गया। वर्कर अपने बीमार साथियों की सेहत की सही जानकारी मांग रहे थे। दो दिन से अधिक समय तक जारी अनिश्चितता के बीच वर्करों की मौत की अफवाह फैल गयी जिसके बाद हाईवे जाम कर दिया गया।

स्थानीय ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट सुजाता मोदी ने वर्कर्स यूनिटी को फोन पर बताया कि जब महिला वर्करों का प्रदर्शन शुरू हुआ तो पास की एक ऑटो फैक्ट्री के कुछ कर्मचारी भी समर्थन देने पहुंच गए थे।

इस जाम को खुलवाने के लिए पुलिस ने बड़ी क्रूरता के साथ महिला वर्करों की भीड़ को तितर बितर किया। लड़कियों पर पुरुष पुलिसकर्मियों ने लाठियां मारीं, फिर भी सैकड़ो वर्कर वहीं जमे रहे।

पुलिस ने 67 महिला वर्करों और एक स्थानीय पत्रकार को हिरासत में लिया, उनके फ़ोन जब्त कर लिए, और उनके माता-पिता को अपनी बेटियों को नसीहत देने के लिए बुलाया।

रायटर्स के अनुसार, कांचीपुरम जिले के पुलिस अधिकारी एम सुधाकर ने इस बात से इनकार किया कि प्रदर्शनकारियों को पीटा गया, फोन जब्त किए गए या पुलिस ने कार्यकर्ताओं को धमकाया। उन्होंने कहा, “हमने दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया और हिरासत में लिए गए लोगों के अधिकारों का सम्मान किया। सभी नियमों का पालन किया गया।”

श्रम कल्याण मंत्री और तिरुवल्लूर के जिला कलेक्टर सहित आला अधिकारी 18 दिसंबर दोपहर को प्रदर्शनकारी वर्करों से वार्ता करने पहुंचे। जिला प्रशासन द्वारा वर्करों के अस्पताल में भर्ती होने का विवरण जारी किए जाने के बाद, बाद में विरोध वापस ले लिया गया, लेकिन काम करने की भयानक स्थिति, शोषण और बड़े पैमाने पर ठेका मज़दूरी, वे वजहें बनकर सामने आईं, जिसने वर्करों के गुस्से को भड़काया।

चेन्नई के पास फॉक्सकॉन प्लांट में काम करने वाली छह महिलाओं ने पहचान छिपाने की शर्त पर राइटर्स को बताया कि “हॉस्टल में रहने वाले लोगों को हमेशा कोई न कोई बीमारी होती थी – त्वचा की एलर्जी, सीने में दर्द, ख़राब भोजन से बीमार हो जाना आम बात है।

एक 21 वर्षीय महिला वर्कर जिसने विरोध के बाद फैक्ट्री छोड़ दी “उन्होंने कहा  कि पहले फ़ूड प्वाइजनिंग के मामलों में एक या दो वर्कर ही होते थे, हमने इसमें कोई बड़ी बात नहीं की क्योंकि हमने सोचा था कि इसे ठीक कर लिया जाएगा। लेकिन अब, इसने बहुत से लोगों को बीमार किया है।”

इन महिला वर्करों में से पांच ने कहा कि, “हम छह से 30 महिलाएं एक कमरे के फर्श पर सोते थे। दो वर्करों ने कहा कि वे जिस हास्टल में रहते थे, उसमें बिना पानी के शौचालय थे।”

तिरुवल्लूर जिले में एक वरिष्ठ खाद्य सुरक्षा अधिकारी जगदीश चंद्र बोस ने बताया  “विरोध के बाद, खाद्य सुरक्षा निरीक्षकों ने हास्टल का दौरा किया, जहां ख़राब भोजन व्यवस्था, चूहों और खराब जल निकासी के बाद रसोई बंद कर दी गई।”

उन्होंने कहा  कि जांच किए जाने पर नमूने आवश्यक सुरक्षा मानकों को पूरा करने में नाकाम रहे।

प्लांट में काम करने वाली महिलाएं एक महीने में लगभग 140 डॉलर (10,500 भारतीय रुपये) के बराबर कमाती हैं और प्लांट में काम करने के दौरान फॉक्सकान के ठेकेदार को आवास और भोजन के लिए भुगतान भी करती हैं।

एक महिला वर्कर यूनियन की प्रमुख ने कहा कि ज्यादातर महिलायें 18 से 22 के बीच की उम्र की हैं जो तमिलनाडु के ग्रामीण इलाकों से आती हैं। राज्य सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, फैक्टरी में मासिक वेतन ऐसी नौकरियों के लिए न्यूनतम वेतन से एक तिहाई है।

विरोध के बाद नौकरी छोड़ने वाली 21 वर्षीय वर्कर ने बताया कि उसके माता-पिता किसान हैं जो चावल और गन्ना उगाते हैं। उसने कहा कि वह अपने गांव में कई अन्य लोगों की तरह शहर में नौकरी करने आई थी।

कई कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों का कहना हैं कि श्रीपेरम्बदूर के कारखानों में काम करने के लिए खेती करने वाले गांवों से भर्ती की गई महिलाओं को नियोक्ताओं आसान वर्कर समझते हैं यानी वे धरना प्रदर्शन या अपनी मांगों को लेकर विरोध नहीं करते।

चेन्नई में मद्रास स्कूल ऑफ सोशल वर्क के सहायक प्रोफ़ेसर वी. गजेंद्रन ने कहा कि आस-पास के कारखानों में काम करने के लिए भर्ती की जाने वाली महिलाएं “आम तौर पर गरीब, ग्रामीण परिवारों से आती हैं, जो उन्हें शोषण के लिए उजागर करती हैं और उनके अधिकारों के लिए एकजुट होने और लड़ने की उनकी क्षमता को कम करती हैं।”

ऐप्पल और फॉक्सकान के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने पाया कि कारखाने में कर्मचारियों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ डॉर्मिटरी और डाइनिंग रूम आवश्यक मानकों को पूरा नहीं करते हैं, “हमने पाया कि कर्मचारियों के लिए उपयोग किए जा रहे कुछ दूरस्थ छात्रावास और डाइनिंग रूम हमारी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं।”

तमिलनाडु में महिला वर्करों के लिए आवास को नियंत्रित करने वाले कानूनों में प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 120 वर्ग फुट रहने की जगह आवंटित की जानी चाहिए और स्थानीय अधिकारियों द्वारा निर्धारित स्वच्छता और अग्नि सुरक्षा मानकों का पालन आवश्यक होता है।

फॉक्सकान के प्रवक्ता ने कहा कि वह अपनी स्थानीय प्रबंधन टीम का पुनर्गठन कर रही है और सुविधाओं में सुधार के लिए तत्काल कदम उठा रही है। कंपनी ने कहा कि सभी वर्करों को भुगतान जारी रहेगा। वेनपा स्टाफिंग सर्विसेज, एक फॉक्सकान ठेकेदार, जो हॉस्टल चलाता है, जहां वर्कर बीमार हुए थे, उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से साफ इनकार कर दिया।

तमिलनाडु राज्य सरकार ने पिछले हफ्ते एक बयान में कहा कि राज्य ने फॉक्सकान से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि आवास और पीने के पानी की गुणवत्ता सहित काम करने और रहने की स्थिति में सुधार हो। बयान में कहा गया है कि फॉक्सकान यह सुनिश्चित करने के लिए राज़ी है कि वर्करों के रहने की स्थिति सरकारी मानकों का पालन हो और कानूनी आवश्यकताएं पूरा हों।

सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीटू) के नेताओं सहित 22 कार्यकर्ताओं को मज़दूरों को समर्थन देने और उनसे मिलने जाने के लिए जेलों में डाल दिया गया। ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता केंद्र सरकार की नीतियों का हवाला देते हुए कहते हैं कि निवेश को आकर्षित करने और व्यापार करने में आसानी  (इज़ी ऑफ़ डूईंग बिजनेस) की नीति ने मौजूदा कानूनों के घोर उल्लंघन और बड़े पैमाने पर शोषण को बढ़ावा दिया है।

सीटू के उप महासचिव एस कन्नन ने कहा कि “नियोक्ता वर्करों को लूटने के लिए इस दूसरी तकनीक का उपयोग करते हैं। वर्करों को मजदूरी का भुगतान तब किया जाता है जब इसकी लागत काट ली जाती है। ऐसे हॉस्टलों में वर्करों को नियंत्रण में रखा जाता है, कंपनी और ठेकेदार दोनों कामों के बड़े पैमाने पर अनुबंध के माध्यम से भारी मुनाफा कमाते हैं। स्थायी नौकरी न देकर, कंपनी अपना मुनाफा बढ़ाती है, और ठेकेदारों को सस्ते मजदूर रखने के लिए भारी भुगतान किया जाता है।

ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं का दावा है कि कंपनी स्थायी कर्मचारियों को रोजगार नहीं देती है, हालांकि काम स्थायी है। इसके अलावा, वर्करों को हर साल एक ठेकेदार से दूसरे ठेकेदार में बदल दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे स्थायी नौकरी के लिए दावा न कर सकें।

फॉक्सकान के लिए अपने वर्करों के शोषण के लिए ख़बरों में रहना कोई नई बात नहीं है। बीते कुछ साल पहले चीन में फॉक्सकान की ही एक फैक्ट्री में काम के दबाव और तनाव की वजह से मजदूरों की आत्महत्या से मौत की खबरें तेज़ी से फ़ैली थी।

एस कन्नन कहते हैं कि “साल 2010 में, जहरीली गैस रिसाव से लगभग 200 कर्मचारी प्रभावित हुए और जिसमें वर्करों ने 58 दिनों तक विरोध प्रदर्शन किया। नोकिया के बाहर निकलने की घोषणा के बाद, फॉक्सकान ने 2014 में अपना ऑपरेशन बंद कर दिया था। उन्होंने 2,000 वर्करों को फिर से नौकरी देने का वादा किया लेकिन 2016 में नए कर्मचारियों की भर्ती कर ली गई, कंपनी इस बार राइजिंग स्टार्स मोबाइल इंडिया के रूप में काम कर रही थी।”

कन्नन ने कहा, “बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2014 से श्रम क़ानून बहुत ढीले कर दिये गए हैं। सरकार खुद तय अवधि के रोजगार को लागू करके निजी खिलाड़ियों द्वारा लूटने के लिए मंच तैयार कर रही है। कंपनियां अब कानूनी रूप से वर्करों का शोषण कर रही हैं।”

फॉक्सकान भारत सरकार द्वारा उत्पादों के निर्माण के लिए प्रदर्शन-लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) प्राप्त करने के लिए अनुमोदित कंपनियों में से एक है। कन्नन ने कहा, “यह फिर से उन कंपनियों के लिए एक बोनस है जो वर्करों को लूटती हैं। बदलती श्रम नीति में बदलाव भारत में मजदूर वर्ग के लिए एक अभिशाप है।”

द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के नेतृत्व वाली (DMK) सरकार की पूरी कोशिश इस मामले को दबाने की रही है। हालांकि श्रम कल्याण मंत्री ने विरोध स्थल और अस्पताल का दौरा किया, लेकिन उन्होंने प्रदर्शनकारियों को विवरण का खुलासा नहीं किया।

तमिलनाडु, जो 70 करोड़ से अधिक आबादी वाला राज्य है और देश के सबसे अधिक औद्योगीकृत राज्यों में से एक है, जिसे कभी-कभी “एशिया का डेट्रायट” भी कहा जाता है। यह बीएमडब्ल्यू, डेमलर, हुंडई, निसान और रेनॉल्ट सहित ऑटो कंपनियों का हब है।

सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि फॉक्सकान आईफोन 12 बना रही है और श्रीपेरंबदूर संयंत्र में आईफ़ोन 13 के उत्पादन का परीक्षण कर रही है। यह उथल-पुथल ऐसे समय में आई है जब Apple अपने iPhone 13 के उत्पादन में तेजी ला रहा है। भारत में Apple के आठ अन्य प्लांट हैं।

(यह रिपोर्ट रायटर्स के रिपोर्टर सुदर्शन ने तैयार की थी, जिसका अंग्रेज़ी मूल यहां पढ़ा जा सकता है। इसमें वर्कर्स यूनिटी ने अपना इनपुट जोड़कर तैयार किया है। कॉपी- रितिक जावला, एडिटिंग- संदीप राउज़ी) 

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