सिंघु बॉर्डर पर ऐतिहासिक किसान प्रदर्शन की झलकः ग्राउंड रिपोर्ट

Singhu Border

By मोहिंदर कपूर

देश का किसान आज पूंजीवादी व्यवस्था व सत्ता में आसीन मोदी सरकार की तानाशाही के कारण दिल्ली के कई बॉर्डर को एक पखवाड़े से अधिक समय से घेरकर तीन नए कृषि कानूनों को रद्द करवाने की मांग के साथ बैठा हुआ है।

यह आंदोलन तब तेज गति पकड़ गया जब सत्तासीन मोदी सरकार ने कोरोना महामारी के कारण लगाए गए लॉकडाउन का पूरा फायदा उठाकर बीते सितंबर तीन नए कृषि बिलों को संसद से ज़बरदस्ती पास करा लिया था।

किसानों ने इन कानूनों को धीरे-धीरे समझना शुरू किया और जब किसानों को यह कुछ हद तक समझ में आने लगे कि यह तीन नए कृषि कानून किसानों को किस तरह से तबाह-बर्बाद कर देंगे व किसानों को उनकी ही जमीनों पर मजदूर बना दिया जाएगा।

तब किसानों ने संगठित होकर सरकार से नए तीन कृषि कानून रद्द करवाने को लेकर आमने-सामने की लड़ाई करने की ठानी।

कृषि से संबंधित कार्य जैसे फसल काटने, फसल उठाने व फसल बोने से सम्बंधित कार्यों को निपटा कर 25-26 नवंबर 2020 को “दिल्ली चलो” के नारे के साथ भारी संख्या में किसान अपने ट्रैक्टरों, ट्रालियों व गाड़ियों आदि में खाने पीने का सामान व ठंड आदि से बचने के लिए कुछ जरूरी कपड़े व बिजली के इस्तेमाल के संसाधनों के साथ पंजाब-हरियाणा से शुरू हुए।

आंदोलन धीरे-धीरे पूरे भारत में फैलने लग गया था। इस आंदोलन को मजदूरों, छात्रों, हरियाणवी व पंजाबी कलाकारों के साथ साथ आमजन आदि का सहयोग मिलने लग गया था।

पांच सितम्बर को हम तीन- चार साथी मिलकर सिंघु बॉर्डर पर आंदोलन का समर्थन करते उसमें शामिल होने गए। वहां का जो दृश्य हमने देखा उसका हम आंखों देखा हाल आपके सामने रख रहे हैं।

सिंघु बॉर्डर पर जाते ही हमने देखा कि किस तरह से प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए लोहे-पत्थर के बड़े-बड़े बैरिकेट व उन पत्थरों के ऊपर तेज धार वाले कंटीले तार जो जानवरों को रोकने के लिए भी इस्तेमाल करने पर सरकार द्वारा पाबंदी/बाध्य है।

ऐसे कंटीले तारों का इस्तेमाल अपने अधिकारों की आवाज उठाने वाले इन किसानों को रोकने के लिए किया गया था। साथ ही बड़े-बड़े डम्फर मिट्टी से भरकर खड़े कर दिए गए थे।

कई वॉटर कैनन की गाड़ियां मौके पर तैनात खड़ी थीं। अलग-अलग बंदूकधारी फोर्सेज लगाई गई थी। इन फोर्सेज में काफी मात्रा में महिला फोर्स भी शामिल थी। इस फोर्सेस का तम्बू/टेंट सड़क के बीचों-बीच लगा था।

वह पूरा एरिया किसानों ने ट्रैक्टर-ट्रालियां खड़ी करके घेर लिया गया था और चारों तरफ से अपने आप को बीचो-बीच घिरे हुए ये जवान असहाय-बेबस महसूस कर रहे थे।

वहीं सिंघु बॉर्डर पर दिल्ली की ओर एक छोटा सा मंच लगा हुआ था तथा दूसरी ओर एक बड़ा मंच लगा हुआ था। बड़े मंच पर सुबह 9:00 से शाम 4:00 बजे तक भाषण, नारेबाजी, किसान नेताओं व उनके समर्थन में आए हुए भिन्न-भिन्न लोगों, कलाकारों आदि द्वारा इन नए तीन कृषि कानूनों के विरोध में व सत्तासीन मोदी सरकार के विरोध में तथा तानाशाही सरकार के विरोध में, अंबानी-अडानी जैसे एकाधिकारी पूंजीपतियों के विरोध में, किसानों की एकता, किसान यूनियन की एकता, किसान-मजदूर की एकता जिंदाबाद आदि के नारों से सारा वातावरण गुंजयमान था।

धरना स्थल पर 200-300 मीटर की दूरी पर खाने-पीने की पूरी व्यवस्था की गई थी। गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी बंगला साहिब दिल्ली की ओर से भी खाने की व्यवस्था की गई थी। सुनने में आया था कि 40000-50000 हजार लोग यहां खाना खा जाते है।

इसके अलावा भी कही पर कुछ खाना बन रहा था तो कहीं पर कुछ बन रहा था। जहां-जहां पर खाना बन रहा था उसके साथ ही वहीं पर खाने-पीने के अन्य सामान जैसे दाल, सब्जियां, चीनी, आटा व चावल आदि को अच्छे तरीके से लगा कर रखा गया था।

कई स्थानों पर चाय, बिस्किट, नमकीन, रस व पानी आदि की व्यवस्थाएं की गई थी। कई स्थानों पर डॉक्टरों द्वारा मेडिकल की सुविधाएं भी मुहैया कराई हुई थी।

एक स्थान पर सिख समुदाय के लोग बादाम आदि ड्राई फ्रूट्स का घोटा बनाकर आमजन व किसानों को पिला रहे थे। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मीठे चावलों का पुलाव का लंगर लगा रखा था। जिनसे बात करने पर पता लगा कि वे मलेरकोटला पंजाब से किसानों के समर्थन में आए थे।

बीच-बीच में पिनिया लड्डू के रूप में, भुने व उबले हुए चने, सुबह के समय में लस्सी/छाछ आदि की व्यवस्थाएं भरपूर मात्रा में मुहैया कराई जा रही थी। किसी भी प्रकार से खाने-पीने की कोई भी कमी नजर नहीं आ रही थी।

आसपास के फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूर, रेहड़ी पटरी वाले मजदूर व उनके बच्चे, दुकानदार व आस पास के गांव वाले आदि भी वहां पर आकर बीच-बीच में खाना, चाय, पानी आदि ले रहे थे।

देखने में ऐसा लगता था जैसे कि खाने वालों की यहां पर कमी पड़ जाती है लेकिन खाना खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

आसपास के गांव वाले सब्जियों, दूध, लस्सी/छाछ, आनाज, पानी व अन्य जरूरी वस्तुओं आदि को ट्रैक्टर-ट्रालियों व गाड़ियों के माध्यम से वहां पर पहुंचा रहे थे।

पूंजीपतियों के न्यूज़ चैनल जैसे आज तक, ज़ी न्यूज़ व रिपब्लिक आदि वहां पर दिखाई नहीं दे रहे थे। पता चला कि ये लोग यहां पर आए जरूर थे, लेकिन इनका यहां पर भारी विरोध किसानों द्वारा किया गया।

किसानों ने इनको चुपचाप यहां से चले जाने के लिए बोल दिया था।

यहां पर भारी मात्रा में छोटे-छोटे सोशल मीडिया चैनल यूट्यूब चैनल आदि खबरें दिखाने में लगे हुए थे और किसान भी इनका पूरा सहयोग कर रहे थे व अपनी बातें रख रहे थे।

एक स्थान पर छात्रों ने क्रांतिकारी गीतों के साथ किसानों में जोश पैदा कर रखा था। वे गीतों के माध्यम से पूंजीवादी व्यवस्था को समझाने के प्रयास कर रहे थे। वहां पर हरियाणा के किसानों द्वारा जगह-जगह पर हुक्का लगा रखे थे।

उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के किसान भी अब इस आंदोलन में सिंघु बॉर्डर पर पहुंच गए थे। विदेशों में पढ़ने व नौकरी करने वाले छात्र-छात्राएं व अन्य लोग अपने माता-पिता व रिश्तेदारों व किसानों का साथ देने, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाने धरने स्थल पर पहुंच रहे थे।

पंजाबी हरियाणवी कलाकार खासकर गीतकार भी समर्थन में धरने स्थल पर एक-एक करके पहुंच रहे थे।

एक पंजाबी गीतकार व एक्टर दलजीत सिंह दोसांझ ने एक करोड रुपए किसानों को ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े व आवश्यक वस्तुओं, दवाइयों आदि के लिए किसानों के समर्थन में देने को कहा।

साथ ही पंजाबी कलाकार कवर गरेवाल, हरफ चिम्मा, बब्बू मान आदि किसानों पर आधारित गाने मंच पर गाकर व रिलीज़ करके किसानों में जोश पैदा कर रहे थे।

किसानों ने रात में सोने के लिए ट्रालियों को लकड़ी व लोहे के पाईपो से इनकी ऊंचाई को बढ़ाकर इनके ऊपर से त्रिपाल व कट्टो से बनी पल्लियों आदि से ठंड से बचने के लिए झोपडियों जैसा तैयार कर रखा था।

रात में सोने के लिए ट्रालियों के अंदर व बाहर इंतेजाम किए गए थे। अगर किसी ट्राली में ज्यादा बंदे/लोग हो जाते थे तो उनमें से कुछ किसान नीचे तथा कई जगहों पर ट्रैक्टरों पर भी पड़ने के इंतजाम किए गए थे।

नीचे बिछाने के लिए फोम के गद्दे ऊपर लेने के लिए कंबल आदि साथ में लाए गए थे। गर्म कपड़ों व कम्मबलों के द्वारा कलाकार व अन्य लोग सहयता कर रहे थे।

कपड़े सुखाने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर रस्सियां ट्रैक्टर, ट्रालियों, गाड़ियों व पेड़ों से बांधी गई थी।

औरतें बर्तन साफ करने, खाना बनाने आदि कामों में पुरुषों का हाथ बटा रही थी। बच्चे भी खाना देने व हल्का सामान इधर-उधर करने में अपना-अपना सहयोग दे रहे थे।

हम इस आंदोलन के समर्थन में गए हुए किसानों से बातचीत करते रहे तथा साथ में कोई ना कोई कुछ खाने के लिए भी हमें देता रहा। कई किलोमीटर का यह धरना स्थल हम ऐसे पैदल चलकर ही तय करते रहे। हम बीच-बीच में चाय, नमकीन, बिस्कुट व चावल खाए। वहीं रात के समय खाने में खीर, दाल व रोटी ली।

कुछ किसानों, किसान यूनियन कार्यकर्ताओं व किसान नेताओं से हमने बातचीत की। जिसमें कुरुक्षेत्र एरिया से एक किसान नेता अक्षय, जींद के दनौदा एरिया से 26 वर्ष के युवा किसान कार्यकर्ता अशोक व हरियाणा के जिला यमुनानगर के मुस्तफाबाद एरिया के गांव गुंदियाना के युवा किसान नेता संदीप कुमार/संजू आदि से बातचीत की।

अशोक ने हमें बताया कि किस प्रकार से किसानों के दिल्ली तक आने के रास्ते में प्रशासन ने उन्हें रोकने की नाकाम कोशिश की व उसका किसानों ने कैसे-कैसे मुंह तोड़ जवाब दिया।

25-26 नवंबर 2020 से हरियाणा के किसानों ने एन० एच०-1 के व अन्य रास्तो से हरियाणा के अंबाला शहर के आसपास मोड़ा-मोड़ी से इकट्ठे होकर दिल्ली चलने की शुरुआत की व पिछे पिछे पंजाब के किसान भी बैरिकेट को तोड़ते हुए आ रहे थे।

रास्ते में पड़ने वाले कई बैरिकेट आदि के द्वारा क कई जगहों पर जैसे त्योड़ा-त्योड़ी नजदीक शाहबाद मारकण्डा, करनाल व मुरथल आदि शहरों में रोकने के नाकाम प्रयास प्रशासन द्वारा किए गए।

अशोक ने बताया कि करनाल में एक मजबूत बैरिकेट बड़े-बड़े पत्थरों, कंटेनरो, डम्मपरो आदि से लगाया गया था। इन डम्मपरो को मिट्टी से भरकर, इनके टायरों की हवा निकाल कर व इनसे बैटरियों को उतार दिया गया था। और साथ में आंसू गैस के गोले पुलिस और सी० आर० पी० एफ० के भारी दल व वाटर कैनन आदि का इस्तेमाल किया गया।

दिल्ली तक के रास्ते में कई स्थानों पर ऐसे प्रयास प्रशासन द्वारा किए गए थे। एक 25-26 वर्ष के युवा किसान नवदीप ने वॉटर कैनन पर चढ़कर उसे बंद कर अपनी ट्राली पर कूद गया। किसान आंसू गैस के गोलो को झंडे, डंडे व हाथ से उठाकर फोर्स की तरफ ही फेंक देते रहे। बड़े-बड़े पत्थरों व डम्मपरो को कई-कई ट्रैक्टरों के साथ टोचन करके हटाया गया।

पंजाब के किसानों ने हरियाणा पंजाब के बॉर्डर अंबाला शहर के पास की नदी गगर/शम्भू बॉर्डर आदि स्थानों पर लगाए गए बैरिकेट को तोड़ते हुए हरियाणा में प्रवेश कर लिया व पानीपत के टोल के बाद हरियाणा व पंजाब के किसान इकठ्ठे होकर आगे बढ़े।

प्रशासन ने सोनीपत के मुरथल के आसपास तो सड़क को गहरा ही खोद डाला था ताकि किसान किसी भी प्रकार से दिल्ली की तरफ ना बढ़ सके। लेकिन किसानों के बुलंद हौसलों ने रास्ते की सारी बाधाओं को अपनी जान पर खेलते हुए खेल-खेल में दूर करते हुए सिंघु बॉर्डर पर एक-दो दिन में आकर बैठ गए।

संदीप ने बताया कि कुछ किसान तो अपने साथ कस्सी तस्ले भी साथ में लाए थे।

किसानों का अब कहना है कि वो इन तीन काले कानूनों व बिजली व पराली वाले दो ओर बनने वाले कानूनों को रद्द करवाकर, MSP समर्थन मूल्य व जो साथी इस आंदोलन में अब तक मारे गए है, उनके परिवार को एक-एक करोड़ रुपया मुआवजे के तौर पर व इनके परिवार में से एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी की मांगों के पूरा होने पर ही उठेंगे।

किसान इन बॉर्डर पर बैठ तो गए हैं, अब देखना यह होगा कि आमजनता और मजदूर वर्ग का ओर कितना सहयोग इस आन्दोलन को मिलता है। अगर मजदूर वर्ग का इस आंदोलन को साथ नहीं मिला तो यह आंदोलन कहीं पूंजीवादी-फासीवादी ताकतों का शिकार तो नहीं हो जाएगा या आगे के रास्ते खोलेगा।

अगर मजदूर इसमें अपनी सक्रिय भागीदारी करता है तो यह एक नई दिशा देने वाला आंदोलन बन सकता है। मजदूरों को भी नए चार कानूनों/संहिताओं को रद्द करने, व छात्रों को नई शिक्षा नीतियों के खिलाफ इस आंदोलन के साथ एकजुटता दिखानी चाहिए।

फासीवादी ताकतों को केवल मजदूर वर्ग व उसकी विचार धारा से ही हराया जा सकता है। किसान, छात्र, नौजवान, और आमजन मजदूर वर्ग का सहयोग कर फासीवादी ताकतों को उखाड़ सकते है।

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