“मत पुकारना कभी मेरा नाम जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी!” – एल-सल्वादोर के विद्रोही कवि रोके दाल्तोन की 6 कविताएं

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2021/07/migrant-workers-of-assam.jpg

(रोके दाल्तोन का जन्म 1935 में एल-सल्वादोर में हुआ था। वे ग्वाटेमाला, मेक्सिको, चेकोस्लोवाकिया और क्यूबा में कई वर्षों तक राजनीतिक निर्वासन में रहे। अपने देश में उन्हें कई बार कैद कर प्रताड़ित किया गया था। एक कवि के तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित रोके दाल्तोन की साहित्य, सामाजिक विज्ञान और राजनीतिक सिद्धांत पर भी पुस्तकें प्रकाशित हैं। क्रांतिकारी सेना में शामिल होने के लिये वे एल-सल्वादोर लौट आये थे। एक दिशाहीन आंतरिक संघर्ष के दरम्यान, जिसे बाद में सभी पार्टियों ने ग़लत ठहराया था, 1975 में रोके दाल्तोन की हत्या कर दी गयी। अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र, 10 मई, 2018)

XVI
———-

कानून बनते ही इसीलिये हैं
कि गरीब लोग उन पर अमल करें।

अमीरों ने कानून बनाये
ताकि व्यवस्थित किया जा सके शोषण को।

समूचे इतिहास में गरीब लोग ही थे
जिन्होंने कानून को शिरोधार्य किया।

जिस दिन गरीब लोग कानून बनायेंगे
उस दिन अमीर नहीं रह जायेंगे पृथ्वी पर।

हक़ीक़त
——–

चार घंटों तक यातना देने के बाद
अपाचे तथा दो अन्य पुलिसवालों ने
क़ैदी को होश में लाने के लिये
उस पर बाल्टी भर पानी फेंकते हुए कहा:

‘‘कर्नल ने तुम्हें यह बताने का
हमें हुक़्म दिया है
कि तुम्हें अपनी खाल बचाने का
एक मौका दिया जा सकता है।
अगर बता सको तुम
कि हममें से किसकी आंख शीशे की है,
तो तुम यातना से बच जाओगे।‘‘

ग़ौर से उन अधिकारियों को देखते हुए
कैदी ने एक की तरफ इशारा किया:
‘‘उसकी, उसकी दायीं आंख शीशे की है।‘‘

और हक्के-बक्के पुलिसियों ने कहा:
‘‘तुम बच गये!
पर कैसे किया तुमने यह?
जबकि तुम्हारे सभी दोस्त चूक गये
क्योंकि ये आंखें अमेरिकी हैं,
और इसलिये सर्वोत्कृष्ट भी हैं।”

‘‘बहुत आसान है‘‘, क़ैदी ने कहा
उसे महसूस हो रहा था
कि वह फिर से बेहोश होने वाला है,
‘‘एक यही आंख थी,
मेरी तरफ देखते समय
जिसमें नफ़रत नहीं थी।‘‘

बेशक, उन्होंने उसे यातना देना जारी रखा।

रात के न्यून घंटे
————————-

फ़रिश्तों पर मेरा यक़ीन नहीं है
लेकिन चन्द्रमा अब मर चुका है मेरे लिये।
ख़त्म हो चुका है शराब का आख़िरी प्याला भी
जबकि मेरी प्यास कम नहीं हुई अभी।

‘ब्लू ग्रास’ भटक गया है अपने रास्ते से
अपने बादबानों से दूर जा रहा है वह।

तितली अपना रंग पक्का कर रही है
आग पर, जो कि राख़ से बना है।

सवेरा कुपित हो रहा है
ओसकणों और निस्तब्ध पक्षियों पर।

अपनी नग्नता पर मुझे शर्म आ रही है
मैं असहाय हूं किसी बच्चे की तरह।

तुम्हारे हाथों के बग़ैर
मेरा यह दिल
मेरे ही सीने में मेरा दुश्मन है।

रात के अन्तिम प्रहर
—————————

जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
मेरा नाम कभी मत पुकारना
क्योंकि वापस खींच लायेगा यह
मुझे मृत्यु और विश्राम से।

तुम्हारी आवाज़, जिसमें झंकृति है
पांचों इन्द्रियों की
धुंधला प्रकाशस्तम्भ बन सकती है
मेरे कोहरे के आर-पार झांकती हुई।

जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
केवल बुदबुदाना होठों में कुछ अस्फुट से शब्द
कहना फूल, मधुमक्खी, आंसू, रोटी, तूफ़ान।
अपने होठों को मत देना इजाज़त
कि ढूंढें वे मेरे ग्यारह अक्षरों को।

मैं शिथिल पड़ चुका हूं, चाहा जा चुका हूं मैं,
मैंने उपार्जित किया है अपना यह मौन।

मत पुकारना कभी मेरा नाम
जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी।

पृथ्वी के गहन अन्धियारों से भागता चला आऊंगा मैं
तुम्हारी आवाज़ सुनने के लिये।

मत पुकारो मेरा नाम, मेरा नाम मत लो
जब तुम जान जाओ कि मेरी मृत्यु हो चुकी,
मत पुकारना कभी मेरा नाम।

तुम्हारी तरह
———————

जिस तरह प्यार करता हूं मैं तुमसे
ठीक उसी तरह जीवन से,
चीज़ों की मीठी खुशबू से और
जनवरी के व्योम-नील परिदृश्य से भी
मैं करता हूं प्यार।

मेरा रक्त उबल रहा होता है
और मैं हंसता हूं उन्हीं आंखों से
जिन्होंने थाह पायी है
आंसुओं के सब कूल-किनारों की।

मुझे यक़ीन है कि दुनिया खूबसूरत है
मानता हूं कि कविता की तरह ही
रोटी पर भी सबका हक़ है।

और यह भी कि मेरी रक्तवाहिनियां
समाप्त नहीं होतीं मुझमें,
बल्कि इनमें ही समाहित हैं
उन तमाम समानधर्मा लोगों के रक्त भी
जो लड़ रहे हैं इस पृथ्वी पर
जीवन, प्यार, चीज़ों, परिदृश्य, रोटी
और कविता पर सबके समान हक़ के लिये।

सिरदर्दी
—————-

एक कम्युनिस्ट होना बहुत अच्छी बात है
हालांकि यह देता है आपको
एक साथ कितनी ही सिरदर्दियां।

चूंकि कम्युनिस्टों की सिरदर्दियां
ऐतिहासिक होती हैं, इसलिये
वे दर्दनिवारक औषधियों से नहीं जातीं,
वे केवल तब जाती हैं जब
यह अहसास हो जाये कि
स्वर्ग यहीं है, इसी पृथ्वी पर।
अब क्या किया जाये कि वे ऐसी ही हैं।

पूंजीवाद में बहुत अधिक टीसता है हमारा सिर,
वे फट पड़ने को तैयार ही रहते हैं हमेशा।
क्रान्ति के लिये संघर्ष में यह सिर
एक सक्रिय-विलम्बित बम जैसा होता है।
समाजवाद की तामीर करने में
हम बनाते हैं योजनाएं सिरदर्दी कम करने की,
पर वह इसे हल्का नहीं करता
एकदम से उल्टा असर करता है।

कम्युनिज़्म आकर रहेगा, और सब चीज़ों के साथ
वह एक स्पिरिन होगा, एकदम सूरज के आकार का।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.