बैंगलोर आईफ़ोन घटनाः बीजेपी को मज़दूरों की सैलरी से अधिक उद्योगपतियों के मुनाफ़े की चिंता

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कर्नाटक में बेंगलुरु के पास कोलार जिले में स्थित आईफोन बनाने वाली कंपनी विस्ट्रॉन कारपोरेशन में बीते रविवार को हुए तोड़फोड़ और आगजनी के मामले में उद्योगपतियों की संस्थाएं और बीजेपी के नेता वर्करों के ख़िलाफ़ आक्रामक हो गए हैं।

अभी इतक इस मामले में 149 वर्करों को गिरफ़्तार किया गया है और 7,000 के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज किया गया है। इस घटना से पहले चार महीने से सैलरी में भारी कटौती की जा रही थी और कंपनी में काम करने वाले 12,000 वर्करों को इसका कारण नहीं बताया जा रहा था।

लेकिन रविवार सुबह जब वर्करों ने प्रदर्शन किया तो कंपनी का रवैया बिल्कुल अनसुना कर देने वाला था और इससे प्रदर्शन हिंसक हो उठा।

अब इस घटना को लेकर बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक के बीजेपी नेता और मंत्री से लेकर उद्योगपतियों की संस्थाओं, पूंजीवाद के ब्रांड अम्बेसडरों ने वर्करों पर निशाना साधना शुरु किया है।

पहला बयान कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री अश्वनाथ नारायन ने दिया है कि इस घटना में शामिल किसी भी वर्कर को बख़्शा नहीं जाएगा।

उन्होंने कहा है कि सैलरी के भुगतान न होने के मामले की पड़ताल की जाएगी। लेकिन बीजेपी के उप मुख्यमंत्री ने ये नहीं कहा कि वर्करों की सैलरी कटौती क्यों की जा रही थी, इसकी जांच की जाएगी।

वर्करों की कमाई का 36 करोड़ रु कटौती में!

जबकि घटना के पीछे का प्रमुख कारण यही रहा है कि वर्करों की सैलरी आधी काट ली गई थी और इसको लेकर मैनेजमेंट बात करने तक को तैयार नहीं था।

बैंगलोर मिरर अख़बार ने उद्योगपतियों के चहेते ब्रांड गुरु हरीष बिजूर के हवाले से कहा है कि वर्करों की ओर से किया गया कोई भी तोड़ फोड़ अपराध से कम नहीं है। इससे कर्नाटक के औद्योगिक हब के दामन पर एक दाग लग गया है। इससे निवेश प्रभावित होगा।

कंपनी ने इस हंगामे के कारण 437 करोड़ के नुकसान का दावा किया है। उसके इस दावे के आधार पर हज़ारों वर्करों के ऊपर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है लेकिन पिछले चार महीने से वर्करों के मेहनत की लूट जारी थी, उसके ख़िलाफ़ कोई एफ़आईआर कंपनी प्रबंधन के ऊपर दर्ज नहीं की गई।

जबकि अगर मान लिया जाए कि चार महीने तक 12,000 वर्करों की सैलरी में पांच से 10,000 रुपये की कटौती की गई तो ये राशि क़रीब 36 करोड़ रुपये बैठती है।

पुलिस प्रशासन भी कंपनी मैनेजमेंट और बीजेपी नेताओं की भाषा बोल रहा है। कोलार की डिप्टी कमिश्नर ने कहा है कि कंपनी जो भी केस दर्ज कराएगी उस पर ठोस कार्यवाही की जाएगी।

उद्योगपतियों की संस्था फिक्की के पूर्व अध्यक्ष सीआर जनार्दन ने परोक्ष रूप से सरकार को धमकी दी है कि अगर ऐसे ही चला तो जो कंपनियां बंदी की कगार पर हैं वो अपना धंधा समेट लेंगी और बेरोज़गारी और बढ़ेगी।

उन्होंने कहा है कि वर्करों को क़ानून अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए लेकिन उन्होंने ये नहीं कहा कि कंपनी को क़ानून को अपने हाथ में लेने का क्या अधिकार है?

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घटना के एक दिन बाद बैंगलोर मिरर अख़बार की रिपोर्टिंग।

कई ट्विटर यूज़र ने लिखा है कि बैंगलोर मिरर ने भी किसी भी वर्कर का बयान नहीं छापा बल्कि केवल सरकार, पूंजीपतियों की संस्थाओं और एक ब्रांड गुरू का बयान छापकर वर्करों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की कोशिश की।

कुल मिलाकर वर्करों के अधिकारों को पीछे धकेलकर उन्हें अपराधी घोषित करने की कोशिश में बीजेपी, कर्नाटक में उसकी सरकार, प्रशासन और उद्योगपतियों की संस्थाएं लग गई हैं।

लेकिन वर्करों की सैलरी से पिछले चार महीने से जो लूट हो रही थी, उसका हिसाब कंपनी से मांगने को लेकर कोई कुछ नहीं बोल रहा है।

क्या सरकार की दमानात्मक कार्यवाही से मज़दूरों का गुस्सा शांत हो जाएगा, ये सबसे बड़ा प्रश्न बना हुआ है।

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