इस संशोधन से मुफ़्त में कॉर्पोरटों के हवाले हो जाएगा बिजली वितरण

आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने प्रस्ताव पारित कर विद्युत संशोधन विधेयक-2022 के प्रावधानों को राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध बताते हुए रद्द करने की मांग केंद्र की मोदी सरकार से की है।

राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व आईजी एस आर दारापुरी ने प्रस्ताव के बारे में जानकारी देते हुए जारी वक्तव्य में कहा है कि मोदी सरकार ने किसान आंदोलन के प्रतिनिधियों से मौजूदा स्वरूप में विधेयक को पारित न करने का वादा किया था लेकिन अब सरकार देशभर के बिजली कामगारों व किसानों के विरोध को नजरअंदाज कर इसे आगामी संसद सत्र में पारित कराने के लिए कोशिश में लगी है।

दरअसल इस विधेयक के पारित होने से डिस्कॉम (सार्वजनिक बिजली वितरण कंपनी) का संपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर तकरीबन मुफ्त में ही कारपोरेट कंपनियों के हवाले हो जायेगा।

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कारपोरेट बिजली कंपनियों के एकाधिकार से मुनाफाखोरी व लूट के लिए बिजली की दरों में भारी इजाफा तय है।

किसानों को मिलने वाली सब्सिडी और निम्न आय श्रेणी के उपभोक्ताओं को मिलने वाली क्रास सब्सिडी खत्म करने का प्रावधान मौजूदा विधेयक में है।

डाईरेक्ट बेनीफिट स्कीम से किसानों को भरपाई होने का भरोसा इसलिए भी नहीं है क्योंकि इसी तरह की स्कीम का हश्र एलपीजी सब्सिडी के मामले में देखा जा चुका है।

कहा कि डिस्कॉम के निजीकरण की प्रक्रिया से देश भर में वितरण प्रणाली में लगे लाखों कर्मचारी व अभियंताओं की नौकरी खतरे में पड़ सकती है लेकिन इनकी नौकरी की सुरक्षा को लेकर इस विधेयक में प्रावधान नहीं है।

कहा कि टेलीकॉम कंपनियों की तर्ज पर विकल्प की च्वॉइस और कंपनियों की प्रतिस्पर्धा से बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता के बेहतर होने का दावा महज प्रोपैगैंडा है।

उदाहरण देते हुए बताया कि मुंबई में अदानी, टाटा, अंबानी आदि कारपोरेट कंपनियों का ठोस अध्ययन व विश्लेषण इस तरह के दावों की पुष्टि नहीं करता।

सच्चाई यह है कि किसी क्षेत्र विशेष में मल्टी सबस्टेशन व लाइनें मुहैया कराना संभव नहीं है जैसा कि टेलीकाम कंपनियों के वायरलेस नेटवर्क सिस्टम में संभव है।

दरअसल एक ही बिजली वितरण नेटवर्क सिस्टम से अलग-अलग सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के बावजूद बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता में फर्क संभव नहीं है।

इसके अलावा जिन शहरी क्षेत्रों में पर्याप्त मुनाफा होगा उनमें कारपोरेट कंपनियों द्वारा महज नाममात्र के भुगतान पर डिस्काम के इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग किया जायेगा।

लेकिन जीर्णाेद्धार आदि में भारी भरकम खर्च का वहन सरकार को ही करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बिजली कामगारों की मांग पूरी तरह से वाजिब है कि सभी स्टेकहोल्डर्स से वार्ता एवं विचार विमर्श की प्रक्रिया पूरी करने के पहले आगामी संसद सत्र में विधेयक को कतई पेश न किया जाये।

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