मोदी भारत को गैंगस्टर पूंजीवाद के देश में बदलने का ख़तरा मोल ले रहे- नज़रिया

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 By रूपा सुब्रमण्यम


मुटठी भर अरबपतियों के हितों की खातिर बाकी सबकी जिंदगी खतरे में डाल रहा कारपोरेट प्रेम

इस महीने की शुरूआत में केंद्र सरकार ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे को अडानी एयरपोर्ट्स को सौंपने की मंजूरी दे दी।

मुंबई एयरपोर्ट में 26 प्रतिशत भागीदारी वाले केंद्र सरकार के भारतीय हवाईअड्डा प्राधिकरण (एएआई) ने इस डील के लिए अपनी रजामंदी पहले ही दे दी थी।

अडानी एयरपोर्ट्स, अडानी ग्रुप की तेजी से बढती हुई एयरपोर्ट प्रबंधक कंपनी है, जिसके मालिक गौतम अडानी हैं। खास बात यह है कि कुछ साल पहले तक एयरपोर्ट सेक्टर में इस कंपनी की कोई मौजदूगी ही नहीं थी।

अडानी की बढ़ी हुई ताकत उनकी दौलत में दिखती है। ब्लूमबर्ग की अरबपतियों की इंडेक्स के मुताबिक, 2014 के बाद से उनकी संपत्ति में 34 फीसद का इजाफा हुआ है और जनवरी 2021 में यह लगभग 34 बिलियन डॉलर हो गई हैं।

इससे वह रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के बाद देश के दूसरे सबसे धनी हो गए हैं। वैसे अंबानी की दौलत में भी मोदीकाल में जबरदस्त इजाफा हुआ है।

हर कोई जानता है कि पीएम नरेंद्र मोदी की तरह ये दोनों भी गुजरात के हैं, और प्रधानमंत्री के इन दोनों से तबसे अच्छे संबंध हैं, जब वे गुजरात के सीएम हुआ करते थे।

पीएम के इन दोनों बडे कॉरपोरेट से प्रगाढ़ संबंध किसी से छिपे नहीं हैं। नरेंद्र मोदी 2014 में जब पहली बार प्रधानमंत्री बने, तो वह अडानी के प्राइवेट जेट से ही दिल्ली आए थे।

इतना ही नहीं उस साल लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान मोदी हर रात अहमदाबाद के सीएम आवास में लौटकर सो पाएं, इसे अडानी के प्राइवेट जेटों ने ही संभव बनाया था।

अडानी की तरह ही अंबानी की दौलत भी मोदी के काल में खूब बढ़ी।

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यूनाइटेड नेशंस की ट्रेड एंड डेवलपमेंटस इंवेस्टमेंट ट्रेडस मॉनीटर पर कॉफ्रेंस के मुताबिक, 2020 में भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 13 प्रतिशत से बढ़कर 57 बिलियन डॉलर का हो गया, इसका लगभग आधा मुनाफा यानी 27 बिलियन डॉलर अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के डिजिटल प्लेटफॉर्म जियो को मिला।

यह मोदी का इन दोनों के प्रति प्रेम ही है कि उनकी नीतियों के चलते लॉकडाउन के दौरान जिस 2020 में भारत की जीडीपी लगभग आठ प्रतिशत नीचे गिरी, इन दोनों कॉरपोरेट की दौलत में इजाफा हुआ।

यहीं से यह सवाल उठता है कि जिस साल देश की इकोनॉमी सबसे बुरी हालत में थी, भारत के उद्योगपति गैंगबस्टर (गैंग से वसूली करने वाले अधिकारी) की तरह बढ़े।

भारत जिस समय सबसे बुरे दौर से गुजरा उस समय भारतीय उद्योग घराने जिस तेज़ी से अमीर हुए, उससे ये सवाल पैदा होता है कि इनकी दौलत उद्योग में इनकी क्षमताओं के बजाय नीतियों को प्रभावित करने और सत्ता के क़रीब होने से बढ़ी हैं।

यही वो प्रमुख कारण है जो साफ़ तौर पर समझाता है कि क्यों फ़ेसबुक और गूगल जैसे विदेशी निवेशक अकेले आगे बढ़ने की बजाय भारत की रिलायंस जैसी कंपनियों को पार्टनर बनाना पसंद करते हैं।

ये एक प्रातिनिधिक उदाहरण है कि 2014 में मोदी की हैरतअंगेज़ जीत असल में सरकार और बड़े उद्योगपतियों के बीच साठगांठ से उपजे व्यापक असंतोष का नतीजा थी। उस दौरान भ्रष्टाचार और घोटालों की एक के बाद एक कड़ी ने पिछली सरकार की छवि को मटियामेट कर दिया था। जबकि वो साठगांठ वाला पूंजीवाद मोदी के भारत में उसी तरह ज़िंदा है और जनता में इसे लेकर कोई असंतोष भी नहीं है और कोई बड़ा घोटाला भी खुलकर सामने नहीं आ पाया है।

इससे भी ज़्यादा तो ये कि भारत के नव पूंजीपति खुद को राष्ट्रीय विजेता के रूप में पेश कर रहे हैं और शब्दजाल रच रहे हैं जिनकी प्रतिध्वनि खुद नरेंद्र मोदी के भाषणों में सुनाई देती है।

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सरकार की घरेलू नीतियां जिनमें ऊंचे टैक्स और औद्योगिक नीतियां शामिल हैं, इसका उद्देश्य इन नए राष्ट्रीय रहनुमाओं को आगे बढ़ाना है और साफ़ तौर पर ये अडानी अंबानी के फायदे के लिए है।

असल में मुंबई एयरपोर्ट का अडानी द्वारा अधिग्रहण एक हैरान करने वाली घटना है, क्योंकि इससे पहले जीवीके एयरपोर्ट्स होल्डिंग जिसका इस पर पहले अधिकार था, उसका नेशनल इनफ़्रास्ट्रक्चर इनवेस्ट फंड, भारत सरकार फंड, अबू धाबी निवेश प्राधिकारण और करनाडा के पब्लिक सेक्टर पेंशन इनवेस्टमेंट के साथ पहले से करार चल रहा था।

भारत में सरकारी पूंजीवाद और पिछले दशकों में पूर्वी एशिया में हुए विकास के बीच बहुत कुछ समानताएं हैं। यहां सभी के लिए और गठजोड़ मुक्त पूंजीवाद की जगह राजकीय पूंजीवाद एक ऐसा नियामक नीति बनाता है जो पहले से ही साधन संपन्न राष्ट्रीय विजेताओं  को तरजीह देता है और जिसकी वजह से वे अपने अपने उद्योगों में खुदबखुद एकाधिकार स्थापित कर लेते हैं।

नतीजा ये होता है कि अर्थव्यवस्था के लाभ का फायदा, उत्पादकता में आई गिरावट से पैदा हुए घाटे को पार कर जाता है। ये सब होता है कम प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में।

भारत में इस समय जिस तरह सरकार की अगुवाई में विकास का मॉडल चल रहा है वो उदारीकरण के पहले का जो मॉडल था, उससे बिल्कुल उलट है। वर्तमान में भारी टैक्स और टेक्नोलॉजी ट्रांसफ़र बिल्कुल भई नहीं, ही सरकार की मूल नीति है।

भारत का ये वर्तमान विकास मॉडल का अवतार कुछ चंद पूंजीपतियों को लाभ देने के लिए व्यापार पाबंदी से लेकर निवेश तक को निर्धारित करता है और ये नए राष्ट्रीय पूंजीपति पूर्वी एशिया में जो कुछ हुआ उसी को दुहराने की कोशिश में हैं।

दक्षिण कोरिया का शाएबोल सिस्टम बड़े पूंजीपतियों को बढ़ावा देता है और ये दिखाता है कि ये मॉडल चल सकता है।

लेकिन पूर्वी एशिया का अनुभव मुख्य रूप से निर्यात और तेज़ विकास दर पर आधारित था, जिनमें एक भी इस समय के भारतीय मॉडल में मौजूद नहीं है।

अर्थव्यवस्था के ठहराव के दौरान रूस के सरकारी नेतृत्व वाले उद्योग घरानों को बढ़ावा देने वाला मॉडल ध्वस्त हो गया और गैंगस्टर कैपिटलिज़्म (गैंगगस्टर पूंजीवाद)में बदल गया।

भारत में प्रगिशील आर्थिक माहौल की गैरमौजूदगी में, आज का गठजोड़ पूंजीवाद कल के गैंगस्टर पूंजीवाद में तब्दील हो सकता है। बिल्कुल वैसे ही जैसा रूस में हुआ।

(ये लेख एशियानिक्केई से साभार प्रकाशित किया जा रहा है। मूल लेख यहां पढ़ा जा सकता है। अनुवाद: दीपक भारती)

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