मारुति के TW का शोषणः हर 7 महीने में निकाल दिया जाता है, न नौकरी की गारंटी न भविष्य की

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2022/07/Maruti-suzuki-workers-Manesar-car-plant.jpg

By शशिकला सिंह

हरियाणा के मानेसर गुड़गांव में मारुति के चार प्लांट कार्यरत हैं। इन सभी में प्लांट्स में भारी संख्या टेंपरेरी वर्कर्स या tw काम करते हैं, लेकिन इनकी समस्यायों का समाधान करने वाला कोई नहीं है। आज भी टेंपरेरी वर्रकरों का भविष्य अंधकार में नज़र आता है। 

मारुति सुज़ुकी वर्कर्स यूनियन की प्रोविज़नल कमेटी के सदस्य ख़ुशीराम कहते हैं कि “टेम्पेररी वर्कर्स एक ऐसी फोर्स है जो सबसे ज्यादा बेरोज़गारी का शिकार हो रही है। हर छह सात महीने बाद उसे निकाल दिया जाता है।”

असल में मारुति से संबंधित ख़बरों पर tw वर्कर आकर ये बार बार कहते रहे हैं कि खबरों में उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है और वर्कर्स यूनिटी भी उनकी खबर नहीं छापता।

लेकिन समय समय पर tw वर्कर्स की ख़बर को हमने जगह दी है। मारुति सुजुकी के मानेसर कार प्लांट के पूर्व प्रधान अजमेर से एक विशेष साक्षात्कार ही टी डब्ल्यू पर लिया गया है जिसे यहां देख सकते हैं।

अगर हम परमानेंट और टेंपरेरी वर्कर्स की तुलना करते हैं तो इसमें जमीन आसमान का अंतर देखने को मिलता है। काम के हालात, वेतन, नौकरी की गारंटी, भविष्य निधि, ग्रैच्युटी सभी में tw  वर्करों की हालत बहुत बुरी है।

वर्कर्स यूनिटी को सपोर्ट करने के लिए सब्स्क्रिप्शन ज़रूर लें- यहां क्लिक करें

ठेका प्रथा से भी ख़तरनाक है tw

खुशीराम ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि “जबसे मारुति ने ठेके पर काम देना बाद किया है तबसे टेम्पेररी वर्कर्स की समस्या ज्यादा बढ़ गई है।”

वो कहते हैं, “ठेकेदारी के समय में टेम्पेररी वर्कर्स इस बात से संतुष्ट था कि कम से काम 9 या 10 सालों के लिए रोज़गार कन्फर्म हो गया। लेकिन अब तो केवल एक-दो सालों के लिए ही नौकरी मिल पाती है उसके बाद मज़दूरों को घर का रास्ता दिखा दिया जाता है।” 

खुशी राम का कहना है कि ‘ठेकेदरी के दौर में टेम्पेररी वर्कर अपनी समस्याओं को आसानी से बता पाते थे। क्यों की उनको नौकरी जाने का खतरा काम होता था। लेकिन अब टेम्पेररी वर्कर के लिए किसे भी माध्यम से आवाज़ नहीं उठा पता है।’

वो कहते हैं कि “ऐसा करने पर उसको अपनी नौकरी जाने का खतरा सबसे बड़ा होता है। टेम्पेररी वर्कर मज़दूर यूनियन के सदस्यों से बात करना तो छोड़िये उनकी तरफ देखने में भी कतराते हैं। इसी कारण वो रोज़ संस्थान द्वारा शोषण का शिकार हो रहे हैं।”

मुख्य प्रोडक्शन TW के भरोसे

वो बताते हैं कि मारुति प्लांट्स में परमानेंट वोकर की तुलना में टेम्पेररी वर्कर्स की संख्या ज्यादा है। माना जाये तो संस्थानों में परमानेंट वर्कर की तुलना में टेम्पेररी वर्कर्स की संख्या तीन गुना ज़्यादा है।

एक अनुमान के मुताबिक चारों प्लांटों में करीब 30,000 वर्कर काम करते हैं जिनमें दो तिहाई टेंपरेरी वर्कर हैं।

मारुति के प्लांट में काम करने वाले एक वर्कर का कहना है कि ‘मारुति के सभी प्लांटों में असली प्रोडक्शन टेम्पेररी वॉकर्स के हवाले है। प्लांट में जितना भी हार्ड वर्क का काम होता है वो टेम्पेररी वर्कर्स से ही करवाया जाता है।’

“यदि प्लांट के किसे भी सेक्टर में भारी काम आता है तो उस स्टेशन का परमानेंट वर्कर कही और शिफ्ट हो जाता है और वो काम भी टेम्पेररी वर्कर को ही करना पड़ता है।”

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2022/07/IMG_9074.jpg

मौत को छुपाते हैं, मुआवज़ा भी नहीं देते

वो कहते हैं कि ‘कंपनी में टेम्परेरी वर्कर्स के लिए मुआवजे का प्रावधान तो है लेकिन वो भी बहुत कम है। कंपनी के अधिकारी काम के दौरान मज़दूर की मौत को भरसक छुपाने की कोशिश करते हैं।’

“यदि ऐसा कोई मामला ज्यादा तूल पकड़ता है तो कंपनी अपने सभी परमानेंट वर्कर्स चाहे वो अधिकारी हो या मज़दूर सभी के एक महीने की तन्खा मई से लगभग 200 या 100 रुपए काट लेते हैं और मृत मज़दूर के परिवार को दे देते हैं।”

“जानकारी का अभाव होने के कारण परिवार के सदस्य उतना ही ले लेता है जितना की कंपनी की तरफ से दिया जाता है। कंपनी में मौत के बाद परिवार के किसी सदस्य को नौकरी देने का कोई प्रावधान नहीं है।”

मारुति में टेम्पेररी वर्कर्स को मेडिकल सुविधा के लिए ESI कार्ड दिया जाता है। लेकिन इसका भी फायदा केवल वही वर्कर उठा पाता है, परिजनों को इसमें शामिल नहीं किया जाता।

जबकि परमानेंट वर्कर के परिवार के सभी सदस्यों सहित उसे माता पिता को भी मेडिकल की सुविधा भी दी जाती है।

https://www.workersunity.com/wp-content/uploads/2022/07/Maruti-tw-workers.jpg

भर्ती के समय वर्करों का दिमाग और बैकग्राउंड चेक होता है

खुशीराम बताते हैं कि मारुति में जब कोई भी मज़दूर काम करने के लिए इंटरव्यू देता है तो कंपनी की साक्षात्कार की टीम में एक मनोचिकित्सक को भी बिठाया जाता है।

जो वर्कर की मानसिकता को समझने का प्रयास करता है। वो यह देखता है कि इस वर्कर के आने से मारुति को भविष्य में किसी भी प्रकार का कोई खतरा तो नहीं है। साथ ही कुछ ऐसे लोगों लोगों की नियुक्ति भी की जाती है जो वर्कर के गांव में जा कर उसे बैकग्राउंड को खंगालता है।

कुल मिला कर कहा जाये तो शुरू से ही टेम्पेररी वर्कर्स का शोषण किया जाता है और उनको इस बात की जानकारी भी भी नहीं होती है।

गौरतलब है कि इतनी परेशनियों के बाद भी नाम मात्र tw वर्करों को कन्फर्म किया जाता है।

सूत्रों के अनुसार पिछले दस सालों में सुज़ुकी बाइक प्लांट में लगभग 50 वर्कर्स को ही परमानेंट किया गया है। सुजूकी पॉवर ट्रेन और कार प्लांट में लगभग 100 वर्कर्स को ही कन्फर्म किया गया है।

गुरुग्राम प्लांट में लगभग 27 वर्कर्स को कन्फर्म किया गया। मारुति के चारों प्लांटों को मिला के कुल 200 वर्कर्स भी कन्फर्म नहीं किए गए।

(वर्कर्स यूनिटी स्वतंत्र निष्पक्ष मीडिया के उसूलों को मानता है। आप इसके फ़ेसबुकट्विटर और यूट्यूब को फॉलो कर इसे और मजबूत बना सकते हैं। वर्कर्स यूनिटी के टेलीग्राम चैनल को सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.