महिला समाख्या को बंद करना महिला विरोधी – दिनकर कपूर

लखनऊ: 24 अगस्त 2020, पिछले 31 वर्षों से महिलाओं के कल्याण के लिए जारी महिला समाख्या को चालू करने और महिलाओं के बकाए वेतन के भुगतान की मांग पर आज वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजा।

पत्र की प्रतिलिपि प्रमुख सचिव व निदेशक महिला कल्याण को भी आवश्यक कार्यवाही के लिए भेजी गई।

पत्र में अवगत कराया गया कि, सरकार बनने के बाद महिला समाख्या के कार्यक्रम को अपने सौ दिन के काम में शीर्ष प्राथमिकता में रखा था।

यहीं नहीं प्रदेश के 19 जनपदों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 1989 से महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिये संचालित संस्था महिला समाख्या को प्रमुख सचिव, महिला व बाल विकास विभाग, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा 09 जनवरी 2017 को जारी घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 10 के तहत जारी शासनादेश में बेसिक शिक्षा विभाग से महिला एवं बाल विकास विभाग में समायोजित कर लिया।

जिसे दिनांक 14.12.2017 को अधिसूचना जारी करके महामहिम राज्यपाल की स्वीकृति से आपकी सरकार ने महिलाओं के संरक्षण के लिये घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 8 (1) के अधीन प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 19 जनपदों जहां महिला समाख्या की जिला इकाइयां कार्यरत हैं।

यथा वाराणसी, चित्रकूट, सहारनपुर, इलाहाबाद, सीतापुर, औरैया, गोरखपुर, मुजफ्फरनगर, मऊ, मथुरा, प्रतापगढ़, जौनपुर, बुलन्दशहर, श्रावस्ती, बलरामपुर, बहराइच, चन्दौली, कौशाम्बी एवं शामली जनपदों में महिला समाख्या के जिला इकाईयों के कार्यक्रम समन्वयकों को उक्त जनपदों के जिला संरक्षण अधिकारी के बतौर नामित किया।

इस सम्बन्ध में माननीय उच्च न्यायालय ने भी याचिका संख्या घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की घारा 11 के तहत राज्य के कर्तव्य को चिन्हित करते हुए इसके अनुपालन के लिए निर्देश दिया था।

बावजूद इसके 25 जून को विशेष सचिव महिला कल्याण और इस आदेश के अनुपालन में निदेशक महिला कल्याण के आदेश में महिला समाख्या को बंद करने के निर्देश दिए गए है। जो पूर्णतया विधि के विरूद्ध और मनमर्जीपूर्ण है।

पत्र में कहा गया कि,  यह कहना न्यायोचित होगा कि महिला समाख्या में कार्यरत कर्मचारियों जिनमें बहुतायत महिला कर्मी है।

 

20 माह से वेतन का भुगतान नहीं किया गया है। इनमें से दो कर्मियों की दवा के अभाव में अकाल मृत्यु हो चुकी है।

आपको जानकर खुद आश्चर्य होगा कि प्रदेश की महिलाओं व बच्चों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण इस कार्यक्रम को इस वित्तीय वर्ष में महज 1000 रूपए की सांकेतिक धनराशि दी गयी है और सितम्बर 2018 से बजट आवंटन के बाद भी एक पैसा भी कार्यक्रम को आवंटित नहीं किया गया है।

स्पष्ट है कि कार्य करा वेतन भुगतान न कराना बंधुआ प्रथा है और संविधान प्रदत्त जीने के अधिकार का उल्लंधन है।

ऐसी हालत मे महिला समाख्या में कार्यरत कर्मियों की जीवन रक्षा के लिये सीएम से निवेदन किया गया कि हस्तक्षेप कर प्रमुख सचिव को महिला समाख्या को चालू रखने व सितम्बर 2018 से बकाया वेतन देने का निर्देश देने का कष्ट करें।

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