क्या पेगासस जासूसी मामला मोदी सरकार को रणनीतिक मदद दे रहा है?

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By अजीत सिंह

इस समय संसद के मानसून सत्र में संसद के अन्दर पेगासस स्पाइवेयर पर तीखी बहस हो रही है। इस स्पाइवेयर का उपयोग फोन के माध्यम से जासूसी करने का बताया जा रहा है। यह एक प्रकार का साॅफ्टवेयर है जो फोन को हैक कर जानकारी लेता है और उस पर नजर रखता है।

अभी तक यह बताया गया है कि इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विपक्षी नेताओं, ब्यूरोक्रेटस आदि पर किया गया है। स्वयं भाजपा के कई नेताओं के फोन भी इस सूची में शामिल हैं। यह मामला लोगों की जासूसी करने से जोड़ कर देखा जा रहा है।

निश्चित ही इस स्पाइवेयर का इस्तेमाल लोगों पर निगरानी करने व उनकी जासूसी करने के लिये किया जा रहा है। इसमें मुख्य तौर पर उन लोगों की जासूसी की जा रही है जो सरकार के विरोध में बोलते या लिखते है। संसद में भी बहस का मुख्य केन्द्र यह स्पाइवेयर की जासूसी वाला मामला बना हुआ है।

विपक्ष के नेता संसद में स्पाइवेयर द्वारा जासूसी करने का आरोप सरकार पर लगा रहे है तथा सरकार के खिलाफ जमकर हंगामा कर रहे है। तमाम विपक्षी नेता इस पर जांच कराने की मांग उठा रहे है। लेकिन दूसरी तरफ तीन कृषि कानूनों के ऊपर होने वाली मुख्य बहस से इस जासूसी मामले ने सबका ध्यान हटा दिया है।

विपक्ष के नेता संसद के सदनों में कृषि कानूनों की बजाय पेगासस पर अपनी बहस को केन्द्रित कर रहे है। विपक्ष कृषि कानूनों के विरोध में केवल संसद के बाहर नजर आता है।

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा संसद सत्र चलाने से पहले ही यह घोषणा कर दी थी कि किसान संगठन तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली जंतर मंतर पर देश की संसद के विपरित ‘‘किसान संसद‘‘ का आयोजन कर अपनी मांग को जोर शोर से उठाऐंगे।

किसानों की इस ‘‘किसान संसद‘‘ की कार्यवाही से मोदी सरकार के साथ साथ विपक्ष तक सकते में पड़ गया था। क्योंकि अपने आप को जन प्रतिनिधि कहने वाले इन नेताओं को अब यह तय करना था कि क्या ये जन प्रतिनिधि जन के पक्ष में है या फिर जन के खिलाफ?

3 कृषि कानूनों का ऐजेण्डा बड़ी पूंजी का ऐजेण्डा है। निश्चित ही अगर संसद में विपक्ष या कोई नेता कृषि कानूनों को निरस्त कराने की मांग को उठाते है तो उनके हित बाधित होंगे। पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर रखते हुए विपक्ष कृषि कानूनों को लेकर सरकार पर हमलावर है। लेकिन कांग्रेस-भाजपा व अन्य पूंजीवादी पार्टियों के हित कार्पोरेट के साथ जुड़े हुए हैं ना कि किसानों के साथ।

ठीक संसद के मानसून सत्र से कुछ दिन पहले पेगासस का मामला लाया गया। किसानों के खिलाफ पारित किये गये तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की संसद में उठने वाली मांग इसकी वजह से कमजोर हुई है। इसके साथ साथ किसानों द्वारा आयोजित की जाने वाली ‘‘किसान संसद‘‘ पर जितनी चर्चा होनी चाहिए थी, नहीं हो पा रही। विपक्ष पेगासस मामले पर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है और जांच की मांग कर रहा है।

राजसत्ता द्वारा जनता की जासूसी का मामला यह कोई नया मामला नहीं है। राजसत्ता बनने के बाद लोगों की जासूसी लगातार की जाती रही है। राज सत्ता द्वारा जनता के उस हिस्से की जासूसी की जाती रही है जो व्यवस्था का भंडाफोड़ करते हैं, जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं, लिखते हैं, या फिर जो इस व्यवस्था को बदलना चाहते हैं।

भले ही लोकतंत्र में निजता के अधिकार को कानूनन रूप देकर बड़े लोकतंत्र के दावे किये जाते है लेकिन शासन सत्ता ने समय समय पर सत्ता से टकराने वालों की जासूसी अवश्य की है। देश की सुरक्षा के नाम पर बहुत सारी खुफिया ऐंजेसी हर शासन व्यवस्था के पास मौजूद है।

ये खुफिया ऐंजेसी अपने नागरिको से लेकर अन्य देशों के नागरिकों व सरकारों की जासूसी का भी कार्य करती है। अपने विरोधियों से निपटने के लिए भी कई बार इन खुफिया ऐंजेसियों का इस्तेमाल सरकारों द्वारा किया जाता रहा है। अमेरिका की सी.आई.ए. खुफिया ऐंजेसी तो पिछड़े व तीसरी दुनिया के देशों में सरकार गिराने का कार्य काफी लम्बे समय से करती आ रही है।

साम्राज्यवादी देश अपने हितों के अनुरूप पिछड़े व तीसरी दुनिया के देशो में इन खुफिया ऐंजेसियों का इस्तेमाल कर वहां सरकार बनाते है तथा वहां के प्राकृतिक संशाधनों की लूट करते है।

बढ़ते तकनीकी साधनों के उपयोगों ने दुनिया को वैश्विक बना दिया है। अब एक देश में होने वाला घटनाक्रम संसार के अन्य देशों को भी प्रभावित करता है। पेगासस का मामला भी वैश्विक है। किसी देश में घटित होने वाली घटना मिनटो में संसार के हर कोने में फैल जाती है और लोग मिनटो में दुनिया के घटनाक्रमों से वाकिफ हो जाते है। यह बढ़ते तकनीकी के कारण ही सम्भव हो पाया है।

बढ़ते तकनीकी उपयोग को तकनीक के माध्यमों से ही नियन्त्रित किया जा सकता है और तकनीक के द्वारा ही निगरानी की जा सकती है। इसलिए सत्ता के लिए यह चुनौतीपूर्ण बन जाता है कि लोगों की दिन प्रतिदिन की दिनचर्या पर निगरानी रखी जाए। राज सत्ता को सबसे ज्यादा खतरा व्यवस्था से खफा लोग व सरकार का विरोध करने वाले लोगो से होता है।

इसलिए केन्द्रीय राज्य विदेश मंत्री मिनाक्षी लेखी ने स्पाइवेयर जासूसी पर कहा था कि सरकार को लेफ्टिस्ट (क्रांतिकारी) व आतंकवादियों की जासूसी करनी पड़ती है। सरकार इसको नहीं बता सकती है। सरकार को पता है कि शासन सत्ता को चलाने के लिये वामपंथ (क्रांतिकारी) की जासूसी अनिवार्य बन जाती है।

लेकिन लोग शायद यह भूल जाते है कि फासिस्ट गिरोह सत्ता में बैठा हुआ है और वह सभी संवैधानिक संस्थाओं को कानूनी व गैर कानूनी तरीके से अपने अनुरूप कार्य करने व उनके माध्यम से लोगों की जासूसी करने को संवैधानिक बना रहे हैं।

आज तकनीक वहां तक पहुंच गई है कि मंगल जैसे ग्रह पर नासा द्वारा रोवर को भेजकर उस ग्रह की जानकारी ली जा रही है। फोन में स्पाइवेयर के द्वारा हैक के मामले पर कोई अचरज की बात नहीं है। क्या पता यह साॅफ्टवेयर द्वारा जासूसी पहले से ही की जा रही हो और हमें पता अब चला हो? संसद सत्र के ठीक शुरू होने पर पेगासस मामले का आना कुछ लोगों को संदेहास्पद लगता है।

इस समय देश की मेहनतकश जनता चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है। देश में उदारीकरण, नीजिकरण की नीतियों को मोदी सरकार उसकी परकाष्ठा तक पहुंचा दिया है। जनता के पैसे से खड़े किये गये सार्वजनिक उद्यमों जैसे रेल, भेल, कोयला, आदि को कोड़ियों के भाव पूंजीपति वर्ग के हवाले किया जा रहा है। बेरोजगारी आजाद भारत की अपनी चरम सीमा पर पहुंच रही है।

जनता की बुनियादी समस्याएं वैश्विक बन चुकी है। वैश्विक पैमाने पर बढ़ते जनता के अंसतोष की खबरें भले ही मीडिया जनता को ना बताए लेकिन इनकी गूंज वैश्विक स्तर पर सुनाई देती है।

वर्ष 2018 का फ्रांस की जनता का येलो वेस्ट प्रदर्शन को जो कि पैट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों और सामाजिक कल्याण मदों में कटौती को लेकर शुरू हुआ था। ब्राजील, इटली, इण्डोनेसिया, ताईवान आदि देशों में जनता सरकार के खिलाफ संघर्षरत है।

इग्लैंड, फ्रांस जर्मनी आदि देशों की जनता हालिया समय में कोरोना महामारी को सरकार का षंडयंत्र मानते हुए ‘‘जनता की आजादी को खत्म‘‘ करने को लेकर सरकार के खिलाफ आन्दोलनरत है। किसी भी देशों की सरकारों के पास मजदूर-मेहनतकशों को देने के लिये सिवाय लाठी, डंडे, गोलियों के कुछ नहीं बचा है।

पेगासस मामले को केवल नागरिको की जासूसी के संदर्भ में नहीं देखना चाहिए। इसको किसान आन्दोलन के संदर्भ में जोड़ कर देखना चाहिए।

देश की संसद में भले ही किसान विरोधी कृषि कानूनों पर बहस ना हो रही हो लेकिन किसानों ने अपनी ‘‘किसान संसद‘‘ चला कर तीन काले कृषि कानूनों को रद्द कर, भविष्य में बाने वाले जनता विरोधी बिलो को रद्द करने का एक नया तरीका विकसित कर लिया है।

निश्चित ही यह ‘‘किसान संसद‘‘ जनता के अन्य मुद्दों को मंहगाई, बेरोजगारी आदि के साथ-साथ जन विरोधी कानूनों (यू.ए.पी.ए., एन.एस.ए., देशद्रोह आदि) को भी अपने अन्दर समाहित कर जनता की संसद बनने की ओर अग्रसर होगी।

(लेखक ट्रेड यूनियन एक्टिविस्ट हैं। लेख में दिए गए विचार उनके निजी हैं।)

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