कोरोना हॉरर स्टोरी: एक्सिडेंट के बाद एम्स में भर्ती घायल हो गया ‘गुम’, दो दिन बाद मिली लाश

By आशीष आनंद

देश का सबसे बड़ा सरकार से नियंत्रित अस्पताल ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस यानी एम्स। सडक़ हादसे में घायल मरीज की सर्जरी और फिर उसका शरीर लापता। वार्ड, बेड, रजिस्ट्रेशन खिड़की, ऑपरेशन थियेटर, आईसीयू में कोई जानकारी नहीं।

न डॉक्टर को पता और न किसी स्टाफ को। परिजनों को दो दिन बाद सीधे लाश मिली। मौत का कारण बताया गया कोरोना संक्रमण। परिवार सदमे में है। तीन बच्चों का पिता था आखिर। एक बच्ची तो उसने गोद ली थी।

वर्कर्स यूनिटी को ऐसे तीन मामलों की शिकायत आई है, जिनमें युवक को एम्स में भर्ती किया गया और फिर दो दिन बाद ही कोरोना पॉजिटिव के कारण मौत बता दी गई। एक मामले में 30 वर्ष के नवयुक को एक्सिडेंट के बाद एम्स में भर्ती किया गया, दो तीन दिन बाद ही उसे मृत घोषित कर दिया गया और कारण कोरोना पॉज़िटिव बताया गया। तीसरा मामला दिल्ली का ही है और वर्कर्स यूनिटी से जुड़ी रहीं प्रियंका गुप्ता के चचेरे भाई को एम्स में भर्ती किया गया, जहां तीन दिन बाद ही मौत हो गई है। तीनों ही मामलों में परिजनों को बड़ी मशक्कत से शव दिया गया।

ताज़ा मामला एम्स में चल रहे इलाज की अनियमितता को उजागर करता है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को भेजी शिकायत में परिजनों ने एम्स में उनके मरीज के अंग निकाल लेने की आशंका जताकर जांच की मांग की है। ये आशंका तो जांच के बाद ही ज़ाहिर होगी, अलबत्ता जिस तरह कोरोना काल में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल है, प्राइवेट अस्पताल से लेकर एम्स तक, इस घटना ने उसके सच को उजागर कर दिया है।

इलाज के दौरान जान गंवाने वाले सतबीर के भाई अनिल कुमार यादव ने शिकायत 23 अगस्त को ईमेल से स्वास्थ्य मंत्रालय को अपने हाथों से लिखे पत्र में भेजी, जिसमें घटनाक्रम को विस्तार से बताया गया, लगभग हर बात को। कोई जवाब न आने पर उन्होंने 25 अगस्त को कोरियर से स्वास्थ्य मंत्रालय और मानवाधिकार आयोग को यही शिकायत भेजी है।

उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले में मवाना तहसील के गांव धनपुर के रहने वाले अनिल कुमार यादव ने बताया कि रक्षाबंधन के दिन तीन अगस्त को 36 वर्षीय भाई सतबीर घर पर बहन ममता से राखी बंधवाने के बाद बुआ के पास राखी बंधवाने निकला था।

लगभग तीन किलोमीटर दूर कुनकुरा गांव से गुजर रहा था कि बीच सड़क पर खड़ी इनोवा कार का दरवाजा खुलने से उसमें जा टकराया। कार का दरवाजा उसके पेट में लगा और वह घायल हो गया।

आसपास मौजूद गांव के लोग स्थानीय डॉक्टर के पास ले गए, लेकिन उन्होंने गंभीर हालत बताकर मेरठ ले जाने की सलाह दी। गांव वालों ने ही हमारे घर पर फ़ोन करके सूचना दी और लेकर मेरठ चल दिए। सतबीर को पहले दयानंद अस्पताल ले जाया गया, लेकिन रक्षाबंधन के कारण वहां डॉक्टर और स्टाफ की समस्या थी तो फिर आनंद अस्ताल ले जाया गया।

वहां कुछ जांचें और एक्सरे किया गया। कुछ दवा दी गई, यूरिन बैग लगा दिया गया, लेकिन ठीक से इलाज शुरू नहीं हुआ। कहा गया कि कोरोना जांच रिपोर्ट आने के बाद सर्जरी होगी। बताया कि आंत और लीवर फट गए हैं। सतबीर के पेट में ज़्यादा तकलीफ होने की वजह से डॉक्टर से दिल्ली रेफर करने की गुजारिश की गई।

एम्स ट्रामा सेंटर में मिला ऐसा इलाज

अनिल बताते हैं कि शाम करीब पौने आठ बजे रेफर किया गया और फिर सतबीर को लेकर एम्स के ट्रामा सेंटर लेकर पहुंचे। वहां भी जांच हुई और डॉक्टरों ने बताया कि आंत फट गई है, लेकिन दवा से ठीक हो जाएगा, परेशान होने की ज़रूरत नहीं है। रात को छोटा भाई संजय वहीं रहा और मैं अपनी बहन के साथ रिश्तेदार के यहां चले गए।

रात को एक बजे संजय का फोन आया कि अभी सर्जरी होगी, ऐसा कहा है। दौडक़र वहां पहुंचे तो उसे ऑपरेशन थियेटर में ले जाया जा रहा था। उस वक्त वह बोल रहा था और पानी मांग रहा था, पेशाब न आने की परेशानी बता रहा था। सुबह पांच बजे तक सर्जरी चली। बाहर लाते समय स्ट्रेचर पर खून टपक रहा था। उसे कोरोना संक्रमित क्षेत्र से प्रशासनिक भवन की लिफ्ट से ले जाया गया।

भर्ती के बाद कोई नहीं मिल सका, फ़ोन पर मिली मौत की ख़बर

चलते-चलते डॉक्टर ने इतना ही कहा कि ठीक हो जाएगा, छह महीने बाद एक और ऑपरेशन होगा, एक घंटे बाद छठी मंजिल पर वार्ड में मिल लेना। बताए गए वार्ड में जब पहुंचे तो वहां के स्टाफ ने बताया कि कोरोना वार्ड है, यहां कोई सर्जरी वाला केस नहीं आया है। उन्होंने आईसीयू में भेज दिया। आईसीयू वालों ने पंजीकरण विभाग भेज दिया। पंजीकरण वालों ने ओटी पर जाकर पता करने को कह दिया।

इस तरह बार-बार इधर से उधर भेजा जाता रहा। बस तसल्ली की बात इतनी ही कही जाती रही कि कोई बात होगी तो फ़ोन पर सूचना मिलेगी। चार अगस्त को दोपहर बाद लगभग तीन बजे फोन आया, ‘आपका भाई ठीक से सांस नहीं ले पा रहा है, बीपी लो हो रहा है, क्या करना है’। इस पर उनसे कहा, ‘ये तो आप बताओ क्या करना है, हम कर ही क्या सकते हैं, इतना बड़ा अस्पताल है, आप ही कुछ कर सकते हैं’। इसके बाद फ़ोन मिलाने पर उठा नहीं। फिर रात 11 बजे सतबीर के मरने की खबर देकर फोन काट दिया गया।

कोरोना से मौत बताकर पल्ला झाड़ा

अनिक कहते हैं कि ‘हम सब सुधबुध खो बैठे। एक बार फिर जहां तहां दौड़े तो भी उसका चेहरा देखने को नहीं मिला। पांच अगस्त को सुबह साढ़े छह बजे शव लेने पहुंचे तो पुलिस से एमएलसी (मेडिको लीगल सर्टिफिकेट) लाने को कहा। मेडिकल ऑफिसर से मौत का कारण जानने की कोशिश की तो फिर इधर-उधर के चक्कर लगाने पड़े। कोरोना वार्ड में भर्ती को लेकर बहस भी हो गई।’

उनसे कहा कि अगर वह लंबे समय से घर पर ही था और कोई लक्षण नहीं था, यहां तक कि आसपास के गांव तक में कोई केस नहीं है। घर में 70 साल की मां है और परिजन हैं, तीन हम यहीं हैं, हमारी भी जांच कराओ। ऐसा तो हमें क्वारंटीन करने को या जांच को क्यों नहीं कहा गया। एमएलसी लेने संबंधित चौकी पहुंचे तो वहां ताला लगा मिला। उसके बाद हेल्पलाइन 112 पर कॉल की।

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भूख से मरा, कोरोना बताई मौत की वजह

बाद में हौज खास थाने से फ़ोन आया और वहां जाकर एएसआई भूपेंद्र से मिले, एमएलसी देकर बताया कि आपके भाई को कोरोना पॉजिटिव बताया है। एएसआई को पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा कि हमने भूख से मरते आदमी को देखा है, लेकिन उसकी मौत कोरोना से बताई गई।

बमुश्किल 21 अगस्त को सतबीर का मृत्यु प्रमाणपत्र जारी हुआ। तीन बच्चों के पिता सतबीर दुकान से परिवार का खर्च चलाते थे। अनिल यादव पहले एक फैक्ट्री में काम करते थे, कंपनी बंद होने से वह गैस चूल्हा आदि की मरम्मत करके भरण पोषण करते हैं।

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इलाज संबंधी कागजात अब तक नहीं मिले

वर्कर्स यूनिटी से बातचीत में अनिल कुमार यादव ने बताया कि बाद में शव सौंप दिया गया, जिसका हमने अंतिम संस्कार किया। हमारे इलाज के कागज तो फाइल में देने को कहा था, वह भी नहीं मिले। पोस्टमार्टम रिपोर्ट या कोई और कागज भी नहीं दिया, सिवाय शव की सुपुर्दगी की रसीद के। कोरोना संक्रमित का शव इस तरह देना भी सवाल है। अगर एम्स जैसी नामी संस्था का ये हाल है तो बाकी जगह क्या हो रहा होगा?

वर्कर्स यूनिटी ने इस मामले में एम्स का पक्ष जानने को मीडिया सेल के प्रभारी व डायरेक्टर डॉ. गुलेरिया को ईमेल किया है, जिसका जवाब अब तक नहीं आया है। सतबीर की सड़क दुर्घटना की एफआईआर की जांच मेरठ पुलिस ने की है।

एमएलसी ने सदन में खोली पोल

गौरतलब है, हाल ही में उत्तरप्रदेश विधान परिषद सदस्य ने पीजीआई लखनऊ में कोरोना संक्रमित मरीजों के साथ बर्ताव को सदन में रखा। उन्होंने बताया था कि उनके खुद के सैंपल और जांच की स्लिप भेजने में चार बार लापरवाही बरती गई। यहां तक कि दिवंगत कैबिनेट मंत्री व पूर्व क्रिकेटर चेतन चौहान के साथ भी सम्मानजनक बर्ताव नहीं हुआ।

लखनऊ के ही लेवल टू के एक कोविड अस्पताल के चिकित्सक के माध्यम से वर्कर्स यूनिटी ने ये रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि किस तरह सामान्य इलाज न मिल पाने से लोगों की मौतें हो रही हैं। हर मौत को कोरोना के खाते में दर्ज करने से सरकारी स्वास्थ्य सेवा और स्वास्थ्य प्रणाली से खिलवाड़ हो रहा है।

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