पंतनगर जेबीएम के ठेका मज़दूर के दोनों हाथ कटे, इसी मशीन पर तीसरा हादसा

uttarakhand labor department

उत्तराखंड के पंतनगर में स्थित थाई सुमित नील ऑटो (जेबीएम ग्रुप) प्लांट में बीते शनिवार को एक मज़दूर के दोनों हाथ मशीन से कट गए।

ठेका मज़दूर राजकुमार को प्रेस शॉप की मशीन पर काम करने के लिए लगाया गया था जहां इससे पहले भी कई हादसे हो चुके हैं।

हादसे के बाद मज़दूर को तत्काल मेडिसिटी हॉस्पीटल में भर्ती कराया गया जहां उसका इलाज किया जा रहा है।

कंपनी के मज़दूरों का कहना है कि हाल के दिनों में इस प्रेस मशीन पर ये तीसरा हादसा है और इसीलिए मज़दूर इसे हत्यारी मशीन कहते हैं।

मेहनतकश वेबसाइट के अनुसार, उस मशीन में मैकेनिकल फाल्ट है और सीएनसी ठीक से काम भी नहीं करता है। ऐसे में बीते शनिवार को 25-26 साल का युवा मज़दूर राजकुमार काम कर रहा था कि अचानक उसके दोनों हाथ मशीन में आ गए और पूरी तरीके से कट गए।

ये मशीन 1.6 एमएम की सीट को काटता है, इसलिए उसकी चपेट में आने के बाद अंग के बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती है।

डॉक्टरों ने कहा है कि मज़दूर के दोनों हाथ काटने पड़े हैं और अब वो इनसे कोई काम नहीं कर पाएगा।

इस मसले पर यूनियन और प्रबंधन के बीच बातचीत जारी है जिसमें दोनों हाथ गंवा चुके श्रमिक राजकुमार को कंपनी द्वारा स्थाई नियुक्ति देने और जीवन काल का मुआवजा देने की बात जारी है।

ठेका मज़दूर से लिया जाता है कुशल मज़दूर का काम

पीड़ित राजकुमार ठेका मज़दूर के तौर पर लंबे समय से कंपनी में काम कर रहे थे। मज़दूरों का कहना है कि प्रबंधन ने हादसे के बाद राजकुमार को उसके हाल पर छोड़ दिया है और ईएसआई उनका इलाज ईएसआई के माध्यम से हो रहा है ना कि प्रबंधन की ओर से।

मौजूदा श्रम कानून के अनुसार नियमित उत्पादन का कार्य परमानेंट वर्करों से कराया जाना चाहिए और प्रेस शॉप की मशीनों जैसे कार्य तो हाई स्किल्ड मज़दूरों से ही कराया जा सकता है।

लेकिन कंपनियों की मनमर्जी श्रम विभाग की आंख के नीचे लगातार जारी है, जहाँ पर लगभग सभी काम अवैध रूप से ठेका मज़दूरों के से कराया जाता है।

इस हादसे के पीछे प्रेस मशीन के सेंसर को हटाए जाना बताया जाता है क्योंकि ऐसी मशीनों में सेंसर होते हैं। कम समय में अधिक प्रोडक्शन के लालच में इन सेंसर को बंद कर दिया जाता है।

धारूहेड़ा के रिको प्लांट की यूनियन के अध्यक्ष राजकुमार ने वर्कर्स यूनिटी को बताया कि काम के दबाव में कभी कभी सुपरवाइज़र और कभी खुद मज़दूर भी इन सेंसर को बंद कर देते हैं, जिससे हादसे की आशंका बढ़ जाती है।

रिको में काम करने वाले कई परमानेंट मज़दूर कोई न कोई अपनी अंगुली गंवा चुके हैं। इसी तरह मानेसर में श्रीराम इंजीनियर्स कंपनी में काम करने वाले 90 प्रतिशत मज़दूरों का कोई न कोई अंग भंग हुआ है। अब इन मज़दूरों को निकाल भी दिया गया है।

आए दिन कंपनियों में होने वाले हादसों पर आजतक किसी की जवाबदेही तय नहीं हो पाई। पहले मैनेजमेंट लालच देकर मज़दूरों को शिकायत दर्ज न कराने का दबाव बनाता है और फिर समय बीतते ही उन्हें अपने हाल पर छोड़ देता है। यहां तक कि नौकरी से भी निकाल देता है।

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