पेट्रोल पर लूट-4ः पेट्रोल की बढ़ी क़ीमत वापस लेने के लिए जब लोगों ने अपना खून देना शुरू कर दिया

By एसवी सिंह

तेल-गैस दामों के ज़रिए हो रही सरकारी लूट के विरुद्ध देश भर में जन आन्दोलन हुए हैं। सबसे असरदार आन्दोलन केरल के कोच्चि शहर में हुए हैं।

यहाँ इन आन्दोलनों का नाम ‘रक्त बहता भारत’ दिया गया है इसके तहत लोगों ने, यह जताते हुए कि बार बार कीमतें बढ़ाना लोगों का खून निचोड़ने जैसा है, राज्य भर में रक्त दान किया।

आन्दोलन के संयोजक यू एस आशीन ने बताया, “डीज़ल-पेट्रोल कीमतों में लगातार होती जा रही मूल्य वृद्धि आम आदमी की कमर तोड़ने वाली है जिसका प्रभाव दूसरे सारे क्षेत्रों में भी पड़ रहा है। सब लोग चुपचाप सहन करते जा रहे हैं। जब तक हम घरों से बाहर निकलकर अपना विरोध दर्ज नहीं करेंगे, कुछ नहीं होगा।”

‘केरल राज्य विकलांग-कुर्सी अधिकार संगठन’ के विकलांग भाईयों-बहनों ने भी रक्त दान में हिस्सा लिया और राजेंद्र मैदान में धरना दिया ताकि सरकार को शर्म आए।

जन आन्दोलन पूरे देश भर में हुए हैं, पंजाब के किसानों ने कई जगह ट्रैक्टर रैलियां की हैं लेकिन कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन के हालात में लोग अपने घरों से निकल नहीं पा रहे और सरकार शातिर सूदखोर वाले अंदाज़ में ‘महामारी में अवसर’ की अपनी निति के तहत  परिस्थिति का अधिकतम लाभ, लोगों का खून निचोड़ने के अपने कर्म में, लेने से नहीं चूक रही।

Petrol modi add

मोदी सरकार मेहनतकश लोगों के विरुद्ध अब तक की सबसे ज्यादा संवेदनहीन सरकार साबित हुई है जिसे लोगों के मरने-जीने से कुछ लेना देना नहीं।

आन्दोलन करने के नाम के लिए आन्दोलन की औपचारिकता से सरकार की मोटी चमड़ी पर रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़ रहा और जो आन्दोलन इस जन द्रोही सरकार को ये असहनीय मूल्य वृद्धि वापस लेने को विवश कर दे ऐसे आन्दोलन कोरोना महामारी के चलते हो नहीं पा रहे।

इसलिए सरकार शोषण की चक्की को और तेज़ घुमाती जा रही है। हालाँकि दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने ये देखते हुए कि लोगों को फिर से बहकाने के लिए किस मुंह से उनके पास जाएँगे, डीज़ल-पेट्रोल के दामों में कुछ कटौती पिछले हफ़्ते की है जो ऊंट के मुंह में जीरा जैसी बात है।

भाजपा भी उसे नाकाफ़ी बता रही है और इस बात को कहते वक़्त बिलकुल शर्म महसूस नहीं कर रही। दरअसल शर्म वगैरह का ज़माना बहुत पीछे छूट चुका है।

Petrole meter

तेल की स्मगलिंग और छीना झपटी

लोगों का खून निचोड़ने में राज्य सरकारें भी कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। राज्यों में बिक्री कर की दर समान ना होने के कारण हर राज्य में डीज़ल-पेट्रोल का रेट अलग है।

इस स्थिति ने एक नए तरह की स्मगलिंग को जन्म दिया है; राज्य की सीमा से बाहर जाकर तेल खरीदना।

ये छीना झपटी दिल्ली-एन सी आर के नाम से जाने जाने वाले भाग में ज्यादा नज़र आती है।

यूपी और हरियाणा के उपभोक्ता आजकल दिल्ली से पेट्रोल डीज़ल खरीद रहे हैं जिससे इन प्रदेशों के पेट्रोल पंप उजाड़ नज़र आते हैं।

इसी मुद्दे पर पंजाब के डीलर 29 जुलाई को हड़ताल भी कर चुके हैं। इस हालत का विपरीत असर पेट्रोल पंप पर काम करने वाले मज़दूरों के काम और रोज़गार पर स्वाभाविक रूप से पड़ता है।

पूरी दुनिया में हो रहे आन्दोलन

नवम्बर 2019 में ईरान की सरकार ने नई तेल नीति की घोषणा की जिसमें तेल की खपत पर राशन लगाया गया और पेट्रोल, डीज़ल और गैसोलीन के दाम 70% बढ़ा दिए। लोग गुस्से में उबल पड़े और देशभर में ज़बरदस्त विरोध आन्दोलन खड़े हो गए।

‘तेल के बढे हुए दाम तुरंत वापस लो’ के अतिरिक्त भी एक नारा गूंजने लगा, ‘हमें इस्लामिक गणराज्य नहीं चाहिए, नहीं चाहिए, नहीं चाहिए’।

ईरानी अयातुल्लाओं की फासिस्ट सरकार ने बिलकुल वही किया जो हर फासिस्ट सरकार आजकल कर रही है। पुलिस और पैरा मिलिटरी को प्रदर्शनकारियों से सख्ती से निबटने के लिए, जो चाहे करो, ये आदेश दे दिए।

तेहरान में जिस दिन एक विशाल प्रदर्शन होने वाला था उसी दिन हथियार बंद सैनिकों ने इमारतों की छतों पर ऐसी मोर्चाबन्दी की जैसे दुश्मन के ख़िलाफ़ की जाती है।

जैसे ही प्रदर्शन बीच शहर पहुंचा, गोली चलाने के आदेश दे दिए गए। तेहरान की सड़कें लहू लुहान हो गईं। कुल 270 प्रदर्शनकारी मारे गए। अधिकतर को गोलियां उनके सिरों में लगी थीं। कई हज़ार ज़ख़्मी हुए।

इसके बाद जो हुआ वो अभी तक कहीं नहीं हुआ। इस नरसंहार के लिए सरकार ने पुलिस-फौज को ज़िम्मेदार ठहराने की बजाए आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं, आमिर हुसैन मोराडी, मोहम्मद रज़बी और सईद तमजीदी को ही नरसंहार भड़काने के लिए दोषी मानकर गिरफ्तार कर लिया गया।

उन पर विशेष अदालतों में मुक़दमा चलाया गया और जैसा की ये ‘विशेष अदालतें’ अक्सर करती है, उन तीनों को 270 लोगों की हत्या के लिए दोषी मानते हुए उन्हें फांसी की सजा सुना दी जबकि वे तीनों प्रदर्शनकारी नेता बिलकुल निहत्थे थे।

सुप्रीम कोर्ट ने भी न्याय की नौटंकी ज़ारी रखते हुए फांसी की सजा में कोई भी ढील देना ‘न्याय के विरुद्ध’ माना और फांसी का दिन भी तय कर दिया।

इसके ख़िलाफ़ ईरान और दुनियाभर में आन्दोलन तीव्र होने की वज़ह से फांसी फिलहाल टल गई है लेकिन उसे वापस नहीं लिया गया है और उसे किसी भी दिन अंजाम दिया जा सकता है।

‘#फांसीमतदो’ ट्विटर पर चलाए गए इस हैश टैग में 50 लाख से भी अधिक लोग शामिल हुए।

France yellow west protest against petrol price hike

फ़्रांसः मैक्रों सरकार को वापस लेनी बड़ी बढ़ोत्तरी

फ़्रांस की मेक्रों सरकार की पेट्रोल-डीज़ल दाम वृद्धि एवं पेंशन बदलाव और दूसरे जन-खर्च-कटौती की नीति के ख़िलाफ़ सबसे दीर्घकालीन और सशक्त जन आन्दोलनों की श्रंखला 17.11.2018 को शुरू हुई जो आज तक ज़ारी है।

हर शनिवार को लोग फ़्रांस के सभी शहरों में पीले पट्टे (येलो वेस्ट) और जिलेट जोंस के नाम से होने वाले प्रदर्शनों में आज भी इकट्ठे होते हैं।

येलो वेस्ट और जिलेट जोंस नाम देने का कारण ये है कि फ़्रांस में कम टैक्स दर वाले पेट्रोल को खरीदने के लिए लोगों को पीले रंग की ऐसी पट्टी पहननी होती है जैसी की सड़क पर काम करने वाले कुछ मज़दूर पहनते हैं।

ये सप्ताहांत आन्दोलन पिछले पूरे साल ज़बरदस्त होते गए। कई जगह आगजनी और गोलीबारी की घटनाएँ भी हुईं जिनमें कम से कम 4 प्रदर्शनकारी मारे गए।

प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि हिंसा और आगज़नी कराकर प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए पुलिस अपने लोगों को प्रदर्शन में शामिल (प्लांट) करती है और फिर गोलियां चलाती है लेकिन हम इससे डरने वाले नहीं हैं।

प्रदर्शनकारियों के मनोबल का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि मैक्रों सरकार ने डीज़ल-पेट्रोल पर बढाई गई मूल्य वृद्धि वापस ले ली है लेकिन आन्दोलन ज़ारी है क्योंकि लोग चाहते हैं कि सभी नव उदारवादी नीतियाँ वापस ली जाएँ।

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चिली में इमरजेंसी लगान पड़ी

“बात 30 पीसो (चिली की मुद्रा) की नहीं है, बात 30 साल की है” लेटिन अमेरिकी देश चिली में मेट्रो किराया और डीज़ल-पेट्रोल के दाम बढ़ने के विरुद्ध जो आन्दोलन हुए उनमें ये नारा हर रोज़, हर जगह गूंजा।

इसका मतलब ये है कि आन्दोलनकारी चिली की सेबेस्टियन पिनेरा की सरकार को चुनौती देते हुए कह रहे थे कि आपने जो मेट्रो किराए में 30 पीसो की वृद्धि की है हमारे निशाने पर सिर्फ़ वो नहीं है बल्कि देश में जो नव उदारवादी नीतियाँ 30 साल से ज़ारी हैं, हमारे निशाने पर वो हैं।

आपको वो सब नीतियाँ फाड़कर कचरे की डिब्बे में डालनी होंगी। चिली के खूनी तानाशाह पिनोचेट के दिनों से चिली ने जन आक्रोश की ऐसी लहर पहली बार ही देखी।

राष्ट्रपति पिनेरा, जिसने कुछ दिन पहले ही शेखी बघारते हुए ऐलान किया था कि उनका देश ‘स्थिरता का स्वर्ग’ है, ने देशभर में इमरजेंसी लगा दी और कर्फ्यू की घोषणा कर दी।

प्रदर्शनकारियों ने कर्फ्यू की भी कोई परवाह नहीं की और सरकार को बढे हुए दाम वापस लेने के लिए मज़बूर कर दिया। लोगों का गुस्सा फिर भी शांत नहीं हुआ और सरकार को नव उदारवादी नीतियाँ वापस लेने का अल्टीमेटम दे दिया।

प्रचंड जन आक्रोश आन्दोलन जो अक्टूबर  2019 में शुरू हुए थे, 2020 में भी ज़ारी रहे। कोरोना महामारी ने पिनेरा सरकार की जान बचाई हुई है, लेकिन कब तक?

‘पर्यावरण अधिकार कार्यवाही नेटवर्क’ के संयोजक अल्जेंद्रा पारा कहते हैं, “चिली के नागरिक आन्दोलन ने सरकार के उन मंसूबों पर ठण्डा पानी फेर दिया है जो पिछले तानाशाह पिनोचेट के कार्यकाल में बुने गए थे जिसके तहत सारी जन सुविधाओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, पेंसन और मूलभूत ज़रूरतें जैसे पानी को निजी हाथों में सौंप दिया जाना था। ”

equador protest against petrol price hike

एक्वाडोर: तेल के बढ़े दाम वापस लेने पड़े

लेटिन अमेरिकी देश एक्वाडोर के राष्ट्रपति लेनिन मोरानो ने अक्टूबर 2019 में पेट्रोल-डीज़ल के दाम बढ़ा दिए। देश भर में आक्रोशित लोग सडकों पर आ गए।

राजधानी क्विटो की सडकों को प्रदर्शनकारियों ने अपने कब्जे में ले लिया और देश की संसद को घेर लिया।

राष्ट्रपति को अपनी सरकार को ही राजधानी से दूर ले जाना पड़ा। देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया।

प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। सैनिकों को निहत्थे लोगों पर गोली चलाने का हुक्म दिया गया जिससे कम से कम 7 प्रदर्शनकारी मारे गए और 1152 घायल हुए।

इसके बाद भी प्रदर्शन नहीं रुके और सरकार को मूल्य वृद्धि वापस लेनी पड़ी।

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