डाई कास्टिंग मशीन में कुचल कर दर्दनाक मौत मारा गया रिको बावल का मज़दूर

rico dharuhera workers protest

हरियाणा के औद्योगिक क्षेत्र बावल में स्थित ऑटो कंपोनेंट बनाने वाली डाईकास्टिंग कंपनी रिको के एक कर्मचारी की मशीन में कुचलकर दर्दनाक मौत हो गई।

ये घटना 25 जून की बताई जाती है, जब वर्कर डाई मशीन में अंदर काम से गया था उसी समय शटर बंद हो गया और मशीन चल पड़ी।

एक वरिष्ठ मज़दूर ने नाम न ज़ाहिर करते हुए बताया कि मशीन के पाटों के बीच मज़दूर का सिर और हाथ आ गया और जब उसे निकाला गया तबतक वो मर चुका था। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि शव का ये हिस्सा बिल्कुल चपटा हो गया था।

घटना की सूचना पर पुलिस कंपनी पहुंची थी लेकिन अभी ये पता नहीं चल पाया है कि इस संबंध में कोई एफ़आईआर दर्ज किया गया कि नहीं।

इस कंपनी में क़रीब 300 मज़दूर काम करते हैं। फ़ोरमैन और सुपरवाइज़र को छोड़कर सारे मज़दूर ठेका पर रखे गए हैं।

रिको धारूहेड़ा में बैठाए गए 119 मज़दूर

मज़दूरों का आरोप है कि कभी कभी अधिक पार्ट्स बनाने के लिए मशीन को कुछ सेकेंड के लिए तेज़ कर दिया जाता है और सेंसर को हटा दिया जाता है।

हालांकि कंपनी ही ऐसा करती है ताकि प्रोडक्शन के कुछ सेकेंड बच जाते हैं और 20 या 30 कंपोनेंट और बन जाते हैं।

लेकिन कई बार ऑपरेटर भी मशीन का साइकिल टाइम कम कर देते हैं जिससे कम समय में अधिक प्रोडक्शन पूरा किया जा सके। इस मामले में अभी पता नहीं चल पाया है कि ग़लती किसकी थी।

रिको धारूहेड़ा में यूनियन है लेकिन वहां अभी हाल ही में 119 परमानेंट मज़दूरों को कंपनी ने निकाल दिया है। यहां तीन चार साल से मज़दूरों और प्रबंधन के बीच छंटनी को लेकर विवाद चल रहा है।

जून 2018  में भी 104 परमानेंट मज़दूरों को निकाल दिया गया था और ये सब लेबर डिपार्टमेंट की अनुमति से हुआ था।

उस दौरान ये मज़दूर महीनों कंपनी गेट से 200 मीटर दूर लगातार प्रदर्शन करते रहे थे।

कोरोना के बहाने छंटनी की छूट

अभी जिन मज़दूरों को निकाला गया है उसमें 10 लोग यूनियन बॉडी के सदस्य भी शामिल हैं। इस ग़ैरक़ानूनी कार्यवाही के ख़िलाफ़ रिको मज़दूर यूनियन ने लेबर डिपार्टमेंट में शिकायत की है।

लेकिन यूनियन के नेता राजकुमार ने बताया कि एक महीने बाद तारीख़ आई मगर अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

कोरोना महामारी के समय में भी कंपनियां धड़ल्ले से उन मज़दूरों से भी पीछा छुड़ाने पर अमादा हैं जो 20-30 साल से साल से काम कर रहे थे और जिनकी मेहनत से कंपनियों ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की।

ठेका मज़दूरों की तो हैसियत मज़दूरों वाली भी नहीं रही है। लॉकडाउन के खुलने के बाद से ही लगभग हर कंपनी ने ठेका मज़दूरों को निकाल बाहर किया।

मानेसर में ऑटो कंपोनेंट कंपनी बेलसोनिका से लगभग सभी ठेका मज़दूरों को निकाल दिया गया है। यही हाल बड़ी कंपनियों का है, जहां निकालने के लिए तरह तरह के बहाने निकाले जा रहे हैं।

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