प्रवासी मज़दूरों के वैक्सिनेशन को प्राथमिकता देने और आर्थिक मदद की मांग तेज़

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अलग-अलग उम्र के लोगों के लिए वैक्सिनेशन अभियान शुरु किया जा रहा है लेकिन प्रवासी मजदूर अभी भी किसी सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं।

देश में कोरोना के बढ़ते आंकड़ों ने फिर से डराना शुरू कर दिया है। मार्च के अंतिम सप्ताह में पूरे देश में एक दिन में जहां 50 से 60 हजार केस आ रहे थे, अब यह तादाद साढ़े तीन लाख केसों को पार कर चुकी है।

कोरोना की दूसरी लहर के साथ ही लगभग पूरे देश में प्रवासी मजदूरों का पलायन भी शुरु हो चुका है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पिछले साल 23 मार्च को लगाए गए लाॅकडाउन के बाद करीब डेढ़ करोड़ प्रवासी मजदूर पलायन को मजबूर हुए थे।

वैक्सीन न मिलने के चलते वे संक्रमण के निशाने पर रहते हैं और लोगों के संपर्क में आने पर उनकी दूसरों को संक्रमित करने की आशंका भी बनी रहती है।

कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा था कि केंद्र सरकार की फेल नीतियों से देश में कोरोना की भयानक दूसरी लहर है और प्रवासी मजदूर दोबारा पलायन को मजबूर हैं।

उन्होंने मांग की कि सरकार को वैक्सीनेशन बढ़ाने के साथ-साथ ही इनके हाथ में रुपये देना जरूरी है। ये न सिर्फ आम जनजीवन बल्कि देश की अर्थव्यवस्था दोनों के लिए बेहतर होगा।

गौरतलब है कि अभी तक देश में लगभग 13 करोड़ लोगों को टीका लगाया जा चुका है। पिछले दिनों 11 से 14 अप्रैल के बीच प्रधानमंत्री ने देश में टीका उत्सव मनाए जाने का एलान भी किया था।

इस दौरान स्वास्थ्य केंद्रों, अपार्टमेंट काॅम्प्लेक्सों, आवासीय काॅलोनियों, ऑफिसों आदि तमाम जगहों पर 45 साल से ऊपर के लोगों को वैक्सीन दी गई लेकिन इसमें प्रवासी मजदूर कहीं शामिल नहीं थे।

बड़े शहरों में निर्माण स्थलों, छोटे- बड़े कारखानों, घरों में काम करने वाले, रिक्शा चलाने ये प्रवासी मजदूर सामान्य समय में शहरों की अर्थव्यवस्था को गति देते हैं लेकिन संकट के समय इन्हें इन शहरों में जीविका और जीवन की गारंटी नहीं मिलती।

यही वजह है कि पिछले साल हमने प्रवासी मजदूरों का पूरे देश में जैसा पलायन देखा, उसकी तुलना आजादी के बाद देश में हुए सबसे बड़े पलायन से की गई थी।

 

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