पेट्रोल पर लूट-7: तेल से वसूले 14.6 लाख करोड़ रु. मोदी सरकार ने कहां खर्च किए?

Petrol modi add

By एसवी सिंह

अपने 6 साल के कार्यकाल में मोदी सरकार ने पेट्रोल के दाम रु 65 से बढ़ाकर रु 80 प्रति लीटर, डीज़ल के दाम रु 60 से रु 80 प्रति लीटर और गैस के सिलिंडर के दाम रु 220 से बढाकर रु 855 कर दिए हैं।

जबकि इसी दौरान कच्चे तेल के दाम 2014 के मुकाबले 300% घटकर एक तिहाई से भी कम रह गए हैं।

इस जन विरोधी सरकार ने देश के भूखे, बेहाल, कोरोना महामारी से मरते जा रहे लोगों पर दुनिया भर में सबसे ज्यादा टैक्स लगाए हैं।

इस तरह इसने लोगों से कुल 14 लाख 60 हज़ार करोड़ से भी अधिक पैसे तेल पर टैक्स से वसूले हैं। ये लूट बहुत चालाकी के साथ ज़ारी है।

एक झटके में टैक्स ना बढाकर धीरे धीरे हर रोज़ टैक्स बढाए जा रहे हैं जिससे लोगों का गुस्सा नियंत्रित रहे और लोग ज़ुल्म सहने के आदी हो जाएँ।

जीएसटी कर प्रणाली जो देश की हर वस्तु पर लागू हुई उसे पेट्रोल-डीज़ल-गैस पर जान बूझकर लागू नहीं किया गया जिससे केंद्र सरकार के साथ ही राज्य सरकारों की लूट भी वैट के ज़रिए ज़ारी रहे।

ऐसा सोच समझकर किया जा रहा है जिससे डीज़ल-पेट्रोल-गैस पर सरकार जब चाहे, जितना चाहे कर वसूल सके। पिछले महीने लगातार 20 दिन तक हर रोज़ तेल की कीमतें बढ़ाई गईं।

कंगाल लोगों का खून निचोड़कर वसूले गए 14 लाख 60 हज़ार करोड़ रुपये में से ‘जन कल्याण’ पर कितना खर्च हुआ है, देश के सामने है।

Petrole meter

छह सालों में एक अस्पताल तक नहीं खोला

कोरोना मरीजों की तादाद 25 लाख से ऊपर निकल चुकी और 50,000 से अधिक लोग अपनी जान गँवा चुके हैं। आगे आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह होने वाली है।

लोग अस्पतालों के बाहर मर रहे हैं। अस्पतालों में बेड तक नहीं वेंटीलेटर की तो बात छोड़िए। ‘आत्मनिर्भर बनो’ का उपदेश देकर लोगों को उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया गया है।

एक एक गड्ढे में आठ आठ लाशों को फेंका जा रहा है। अस्पतालों में सूअरों के झुण्ड या कुत्ते घूम रहे हैं। सुरक्षा उपकरण ना होने के कारण 100 से ज्यादा डॉक्टर अपनी जान गँवा चुके हैं।

दूसरी तरफ़ असम और बिहार में करोड़ों लोग बाढ़ से बेघर हो चुके हैं, कई सौ मर चुके हैं। 6 साल में इस फासिस्ट मोदी सरकार ने एक भी अस्पताल नहीं बनाया, जन स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर नाम लेने को भी कुछ नहीं किया गया।

आपदा राहत के नाम पर हजारों करोड़ रुपया जो पी एम केयर्स फंड में जमा किया गया उसके खर्च का ब्यौरा देने से सरकार ने साफ इन्कार कर दिया।

एक तरफ़ बड़े धन्नासेठ कॉर्पोरेटस को कर छूट देने, रियायतें देने, उनके क़र्ज़ माफ़ करने और दूसरी तरफ़ मूर्ति बनाने, मंदिर बनाने, कुम्भ मेले में पैसा लुटाने, रु 20,000 करोड़ का भव्य संसदीय महल बनाने, प्रधानमंत्रियों का आलिशान संग्रहालय बनाने आदि के लिए ही सारे संसाधन झोंक दिए गए हैं या झोंके जाने वाले हैं।

रस्मी विरोध का कितना असर?

इस घोर जन विरोधी सरकार की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा देखिए कि लोगों से कोरोना की जाँच करने के नाम पर भी देश में लूट मची हुई है, निजी अस्पतालों में ईलाज के नाम पर मरीजों के कपड़े तक उतारे जा रहे हैं। सरकार ने कहीं कोई कारगर कदम नहीं उठाया।

आज सच्चाई ये है कि कोई भी विपक्षी दल पेट्रोल-डीज़ल-गैस के दामों के नाम पर हो रही खुली लूट के विरुद्ध गंभीर आन्दोलन करने को तैयार नहीं क्योंकि जहाँ भी उनकी सरकारें हैं वहां वो भी लूट में शामिल हैं। केरल की वामपंथी सरकार भी राज्य कर लगाने में किसी राज्य से पीछे नहीं।

केरल में भी पेट्रोल-डीज़ल के दाम 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक हैं। प्रतिरोध की रस्म अदायगी से इस सरकार पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं।

देश भर में बिखरी पड़ीं क्रियाशील क्रान्तिकारी ताक़तों को इस ऐतिहासिक चुनौती को स्वीकार करना होगा।

शोषित-पीड़ित लोगों के महासागर को भी तय करना होगा कि वे ये अन्याय कब तक सहन करना ज़ारी रखना चाहते हैं। घर में बैठकर सरकार को कोसते रहने से इस सरकार पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं।

स्थानीय स्तर पर जन कमेटियां बनाते हुए देश भर में संयुक्त प्रतिरोध मंच का गठन कर जन आक्रोश की एक सशक्त लहर उठनी चाहिए।

जिससे इस संवेदनहीन, घोर जन विरोधी, फासिस्ट मोदी सरकार को ये पेट्रोल-डीज़ल-गैस के दामों को जब मर्ज़ी जितना मर्ज़ी बढ़ाकर की जा रही लूट को बंद करने और दूसरी दमनकारी नीतियों को वापस लेने को बाध्य होना पड़े। (समाप्त)

(यथार्थ पत्रिका से साभार)

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