मज़दूरों के लिए जमा 3200 करोड़ रुपए की बदइंतज़ामी, नौकरशाही और ज़ुर्माने पर खर्च कर दिए करोड़ों

arvind kejriwal final

प्रवासी मज़दूरों, निर्माण मज़दूरों के कल्याण के नाम पर जमा किए गए पैसों को दिल्ली सरकार ने कर्मचारियों, ड्राइर्वस के वेतन भुगतान करने में इस्तेमाल किया है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक ख़बर के अनुसार, इस बात का खुलासा कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक- सीएजी) की रिपोर्ट में हुआ है।

कैग के अनुसार, “मज़दूरों के लिए जमा किए गए फंड का ठीक से रखरखाव न करने और समय पर इनकम टैक्स न भर पाने के कारण करीब 48 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।”

दिल्ली बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स वेलफ़ेयर बोर्ड (डीबीओसीडब्ल्यू) के खाते की जांच के दौरान कैग को ऐसी अनियमिततताएं मिली हैं, जिससे केजरीवाल सरकार कटघरे में दिखाई दे रही है।

कैग के अनुसार, “मज़दूरों के नाम पर जमा किए गए फ़ंड को दिल्ली सरकार ने आपातकालीन स्थिति में इस्तेमाल करने के लिए रखा था। जैसे कि कोविड-19 संकट।”

असल में निर्माण मज़दूरों के लिए सेस द्वारा इकट्ठा किए गए 3200 करोड़ रुपये की बदइंज़ामी को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक पीआईएल दायर की गई थी और इसकी सीबीआई जांच की मांग की गई थी।

इस मुकदमे के संबंध में कैग की रिपोर्ट को सरकारी वकील गौरांग कंठ ने हाईकोर्ट में पेश किया है। इस रिपोर्ट में 2016-18 के मामलों को भी शामिल किया गया है।

मज़दूरों को सरकारी योजनाओं से रखा गया वंचित

कैग की रिपोर्ट के अनुसार, “सरकार ने 2016-17 में निर्माण कंपनियों पर टैक्स लगाकर 186 करोड़ रुपये जबकि 2017-18 में सरकार ने 200 करोड़ रुपये वसूला था।”

लेकिन प्रवासी मज़दूरों का रजिस्ट्रेशन रिन्यू नहीं किया गया और इस तरह उन्हें लाभ मिलने से वंचित रखा गया।

रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि 2006-07 में डीबीओसीडब्लू ने समय पर इनकम टैक्स नहीं भरा जिसके कारण उसे 7 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

यही नहीं बोर्ड को 4.33 करोड़ रुपये ब्याज़ के तौर पर और 2.75 करोड़ रुपये ज़ुर्माने के तौर पर भरने के लिए मज़बूर होना पड़ा।

इसी तरह डीबीओसीडब्लू के एक कल्याणकारी संस्था होने के बावजूद, टैक्स भुगतान न करने और टैक्स भुगतान करने में देरी के चलते क़रीब 50 करोड़ रुपये बोर्ड को भरना पड़ा।

रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि, बोर्ड ने वित्तीय वर्ष 2007-08 के बाद भरने की जहमत ही नहीं उठाई जिससे उसके ऊपर इनकम टैक्स विभाग द्वरा 98.07 करोड़ रुपये का ज़ुर्माना लगाया।

2018 में इसके ख़िलाफ़ बोर्ड ने कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया और वहां से हारने के बाद उसको ये राशि भरनी पड़ी।

20717-18 में सरकार ने मज़दूरों के पैसै का 16.59 % किया इस्तेमाल 

रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि मज़दूरों को रजिस्ट्रेशन कराने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए बोर्ड ने 88 लाख रुपये ट्रेड यूनियनों को दिए, लेकिन जिस क़ानून के तहत ये बोर्ड बना है, उसमें ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।

कैग ने ये भी कहा है कि, दिल्ली श्रम मंत्रालय को गाड़ी मुहैया कराने और दिल्ली सरकार से जुड़े ड्राईवरों पर 13 लाख रुपये खर्च किये गए। साथ ही पेट्रोल, वेतन के खर्च का पैसा भी फंड से दिया गया।

डीबीओसीडब्लू एक्ट 1996 के तहत अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन भत्ते और अन्य सुविधाओं पर कोई भी बोर्ड किसी भी वित्तीय वर्ष में फंड का 5 प्रतिशत से ज्यादा इस्तेमाल नहीं कर सकता है।

लेकिन 2017-18 के ऑडिट से पता चलता है कि बोर्ड ने 16.59 से लेकर 5.89 प्रतिशत तक इस फंड का इस्तेमाल किया है।

इस मामले की अगली सुनवाई इसी महीने होने वाली है। पीआईएल पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्मृति संस्थान की ओर दायर किया गया है।

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