बर्तन बेच कर परिवार का पेट पालने वाली महिला, कूड़ा बीनने को हो गई मज़बूर

rag picker sombati kumari

By  खुशबू सिंह

‘सोमबती कहती हैं उम्मीद है लॉकडाउन जल्दी ही खत्म हो जाएगा। हम फिर से बर्तन बेचने का काम शुरू कर पाएंगे।’ अपने झोले में पानी की खाली बोतलें समेटे सोमबती कुमारी के चेहरे पर मायूसी का भाव साफ़ देखा जा सकता है।

सोमबती और उनका परिवार उन बेरोज़गारों की फौज का हिस्सा है जो लॉकडाउन के चलते अपने रोज़गार से रातों रात हाथ धो बैठे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक देशव्यापी लॉकडाउन घोषित होने के दो महीने होने को आए लेकिन बाज़ार और फैक्ट्रियां अभी भी बंद हैं।

इस लॉकडाउन ने सोमबती कुमारी को इतना मजबूर कर दिया की सड़क किनारे पड़े खाली बोतलों को बिन कर अपने परिवार का पेट पाल रही हैं।

गाज़ियाबाद में मेरठ रोड पर स्थित राधास्वामी सत्संग ब्यास पर मज़दूरों को लेकर रोज़ाना सैकड़ों रोडवेज़ की बसें यूपी के अलग अलग ज़िलों और अन्य प्रदेशों को रवाना होती हैं।

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सोमबती यहीं पर खाली बोतलों को बरोटने और उन्हें कबाड़ मं बेचने का काम करने लगी हैं।

सोमबती उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की रहने वाली हैं। गांव में खेती नहीं होने के कारण सोमबती रोजगार की तलाश में अपने पूरे परिवार के साथ दो साल पहले दिल्ली आ गईं।

इन्हें रोज़गार तो मिल गया पर लॉकडाउन ने उसे छीन भी लिया।

सोमबती और उनके पति रामनिवास दिल्ली के सीलमपुर और बादली गांव की फैक्ट्रियों से बर्तन खरीद कर दिल्ली में लगने वाले साप्ताहिक बाज़ारों में बेच कर गुजर बसर करते थे।

लॉकडाउन के कारण बाज़ार भी बंद हो गए और बर्तन बनाने वाली फैक्ट्रियां भी बंद पड़ गईं।

दो वक्त का खाना मिलता रहे इसलिए दोने पति-पत्नी सड़क किनारे पड़े पानी की खाली बोतलों को उठाने का काम करने लगे।

एक किलो बोतल पर 10 रूपए की आमदनी हो जाती है। इसी तरह ये लोग रोजाना 100-50 रुपए कमा लेते हैं।

लॉकडाउन के समय से ये दोनों इसी तरह अपना और पांच बच्चों का पेट पाल रहे हैं। मोदी सरकार के तमाम दावों के बावजूद ऐसे परिवार सड़क पर आ गए हैं जिनकी रोज़ी रोटी रोज़ाना की कमाई से चलता था।

इन परिवारों को न तो खाना मिला, न राशन। ऊपर से मकान का किराया भी पहाड़ बन चुका है जिसे माफ़ करने की ‘अपील’ मोदी ने पहले लॉकडाउन में ही की थी।

मोदी सरकार ने अंतरराष्ट्री मुद्रा कोष और एशियन डेवलपमेंट बैंक से हज़ारों करोड़ रुपये का कर्ज़ लिया है लेकिन इन मज़दूरों के हिस्से भुखमरी और बेकारी ही आई है।

मोदी ने पीएम केयर्स फंड में दान देने की भी अपील की थी लेकिन तमाम विवादों के बावजूद ये नहीं पता चल सका कि आखिर ये पैसा किस राहत में लगाया जा रहा है।

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